नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा से उस याचिका को लेकर सवाल किए हैं जिसमें उन्होंने नकदी बरामदगी प्रकरण में उन्हें दोषी ठहराने वाली आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट को अमान्य घोषित करने का अनुरोध किया है।
उच्चतम न्यायालय की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और ए.जी. मसीह शामिल हैं, ने वर्मा की याचिका पर सुनवाई के दौरान पूछा कि “आपने अपनी याचिका में जांच रिपोर्ट संलग्न क्यों नहीं की? और जिन पक्षों की इसमें भूमिका है, उन्हें शामिल क्यों नहीं किया गया?” पीठ ने वर्मा से पूछा कि “आप समिति के सामने पेश क्यों हुए? क्या आप यह मानकर गए थे कि फैसला आपके पक्ष में आएगा?”
इस पर वर्मा के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि “अनुच्छेद 124 के तहत न्यायाधीशों के विरुद्ध कार्रवाई की एक संवैधानिक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में सार्वजनिक बहस, मीडिया ट्रायल, या वेबसाइट पर वीडियो प्रसारित करना संवैधानिक मर्यादा का उल्लंघन है।” सिब्बल ने कहा कि “संविधान यह व्यवस्था करता है कि न्यायाधीशों के खिलाफ आरोप सार्वजनिक रूप से नहीं लगाए जाने चाहिए।”
उल्लेखनीय है कि वर्मा को लेकर बनी आंतरिक समिति की रिपोर्ट में उन्हें कदाचार का दोषी पाया गया था। उन्होंने इस रिपोर्ट को कानूनसम्मत प्रक्रिया के विरुद्ध बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। मामले की सुनवाई आगे बढ़ा दी गई है।