नई दिल्ली। समान नागरिक संहिता पर विधि आयोग की ओर से राय लिए जाने के बाद सोमवार को संसद की कानून व्यवस्था की समिति की एक अहम बैठक हुई, जिसमें इस मसले पर विचार किया गया। भाजपा के राज्यसभा सांसद सुशील मोदी की अध्यक्षता में यह बैठक हुई, जिसमें मोदी ने आदिवासी समुदाय को समान नागरिक संहिता से बाहर रखने का प्रस्ताव दिया। माना जा रहा है कि समान नागरिक संहिता का आदिवासी समुदाय की ओर से विरोध किया जा सकता है।
बहरहाल, सोमवार को हुई बैठक में सुशील मोदी ने पूर्वोतर और अन्य क्षेत्रों के आदिवासियों को किसी भी संभावित समान नागरिक संहिता के दायरे से बाहर रखने की वकालत की। बैठक में शिव सेना उद्धव गुट के संजय राऊत, कांग्रेस के विवेक तन्खा के अलावा तृणमूल कांग्रेस, डीएमके आदि कई विपक्षा पार्टियों के नेता मौजूद थे। विपक्षी नेताओं ने विधि आयोग की पहल पर सवाल उठाते हुए इस पर चर्चा करने की मांग की।
बताया जा रहा है कि कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और डीएमके सहित ज्यादातर विपक्षी पार्टियों ने समान नागरिक संहिता का मुद्दा उठाने की सरकार की टाइमिंग पर सवाल उठाए। कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा और डीएमके सांसद पी विल्सन ने बैठक में लिखित बयान पेश किए, जिसमें उन्होंने समान नागरिक संहिता को अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से जोड़ा। शिव सेना सांसद संजय राउत ने कहा कि कई देशों में समान नागरिक कानून की व्यवस्था लागू है, लेकिन इस पर कोई फैसला लेने से पहले विभिन्न समुदायों और क्षेत्रों की चिंताओं पर ध्यान देने की जरूरत है।
दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी के सांसद महेश जेठमलानी ने संसदीय समिति की बैठक में संविधान सभा में हुई बहस का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि इसे हमेशा अनिवार्य माना गया है। गौरतलब है कि विधि आयोग ने इस मसले पर लोगों की राय मांगी है और एक महीने का समय दिया है। एक महीने की समय सीमा 13 जुलाई को खत्म होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी समान नागरिक संहिता की वकालत की है।