डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को मुनीर के साथ लंच के बाद ओवल ऑफिस में मीडिया से कहा कि पाकिस्तानी “ईरान को बहुत अच्छे से जानते हैं, अधिकांश देशों से बेहतर” और फिर कहा कि वे ईरान से “खुश नहीं हैं”। उससे पहले खबर थी कि पाकिस्तान ने ईरान के साथ अपनी नौ सौ किलोमीटर लंबी सीमा को बंद कर दिया है। जाहिर है ट्रंप और नेतन्याहू के ईरान को तबाह करने, अयातुल्लाह खामेनेई की हत्या जैसी किसी भी कार्रवाई पर पाकिस्तान को एतराज नहीं है। यदि अमेरिका लड़ाई में उतरा तो पाकिस्तान की जमीन से अमेरिकी सेना को हर वह सपोर्ट मिलेगा जो वह चाहेगा।
इसका क्या अर्थ है? क्या पाकिस्तान इस्लामी बिरादरी के देशों के बीच इस्लामी हितों की चिंता वाली महाशक्ति है या उलटे वह, खासकर पाकिस्तानी सेना मुसलमानों पर यहूदी कहर की भागीदार है? मेरा मानना है कि नवाज शरीफ हों या भुट्टो या इमरान आदि कोई मुस्लिम नेता, राजनेता इजराइल के हित की ऐसी परोक्ष या प्रत्यक्ष अमेरिकी हिमायत नहीं करता जो अब जनरल मुनीर ने ट्रंप के आगे दिखाई है! ऐसा जनरल अयूब खान के समय भी था तो जनरल जिया उल हक, जनरल मुर्शरफ के समय भी था।
यों अक्टूबर 2023 से इस्लामी देशों के संगठन के लगभग सभी देश अपना दोगला चरित्र दिखलाए हुए हैं। गजा में आम फिलस्तीनी पर इजराइल की कहर पर ईरान के अपवाद को छोड़ कर किसी इस्लामी देश ने कोई कूटनीतिक-सामरिक स्टैंड नहीं लिया। इजराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने पश्चिम एशिया को पूरी तरह अपना प्रभाव क्षेत्र बनाने का जो मिशन बनाया है उसकी क्रूरताएं अपनी जगह हैं लेकिन मुस्लिम भाईचारे में भारत और कश्मीर के मुसलमानों को ले कर खाड़ी-अऱब के देश और पाकिस्तान का जो पाखंड था उसकी असलियत अब क्या दुनिया नहीं देख रही है? जो फिलीस्तीनियों के भी सगे नहीं हुए वे किसके हो सकते है?
पाकिस्तान अपने यहां बसे अफगानों को बेरहमी से अफगानिस्तान में खदेड़ रहा है। उधर ईरान के मामले में ट्रंप-नेतन्याहू के गेम प्लान के इनर सर्कल में है। अपने पड़ोस में चीनी ऊइगर मुसलमानों पर चाईनीज क्रूरताओं की वह अनदेखी किए हुए है। बावजूद इसके जनरल मुनीर अपने को मुसलमानों का ठेकेदार करार देते हैं।
इसलिए ट्रंप और नेतन्याहू की जुगलबंदी के साथ पाकिस्तानी जनरल की जुगलबंदी में सऊदी अरब, कतर आदि देशों का जो परोक्ष रोल है, उससे भी जाहिर है कि पाकिस्तानी सेना सचमुच ईरान के एटमी मंसूबे की तबाही चाहती है। पश्चिम एशिया में ईरान खत्म हो तो अमेरिकी छाया में अब्राहम समझौते की नई भू राजनीति होगी। उसकी धुरी में एक तरफ इजराइल तो दूसरी और पाकिस्तान!
कितनी बेहूदा संभावना है? पर राजनीति में सब संभव है। निश्चित ही इसका सर्वाधिक फायदा पाकिस्तान को होगा। जो इजराइल पहले कभी पाकिस्तान के परमाणु ठिकानों को खत्म करने का इरादा लिए हुए था वह देश यदि परोक्ष तौर पर उसके मिशन से जुड़ा है तो इसके परिणाम में आगे बहुत कुछ बदलेगा। यह न सोचें कि चीन इससे पाकिस्तान से बिदकेगा। नोट रखें कि पाकिस्तान हर तरह से चीन का गोद लिया हुआ देश है। वह अमेरिका के साथ खेले या इजराइल के साथ, उसे कोई एतराज नहीं है।