nayaindia communalism नफरत के नए-नए जुमले आ रहे है!

नफरत के नए-नए जुमले आ रहे है!

कहते है जब से  देश में मोदी सरकार आई है, तब से देश में ‘असहिष्णुता’ बढ़ गई है। सच तो यह है कि भारत में ‘घृणा’ न तो मई 2014 से बढ़ी है और न ही इसका संबंध कुछ दशक पुराना है। इसकी जड़े सदियों पुरानी है। कालांतर में छल-बल से मतांतरण, नरसंहार, गोवा इंक्विज़िशन, भारत का रक्तरंजित विभाजन और कश्मीर का 1989-91 घटनाक्रम आदि इसके प्रमाण है। विडंबना है कि जो लोग ‘मोहब्बत की दुकान’ खोलकर बैठे है, उनके गोदाम से घृणा के उत्पाद एक-एक करके बाहर आ रहे है।

मंगलवार (5 दिसंबर) को आई.एन.डी.आई. गठबंधन के महत्वपूर्ण अंग द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (द्रमुक) सांसद डीएनवी सेंथिल कुमार ने लोकसभा में हिंदी भाषी राज्यों को ‘गौमूत्र प्रदेश’ कहकर संबोधित किया। इसी वर्ष सितंबर में इसी द्रमुक के अन्य नेता, तमिलनाडु सरकार के मंत्री और मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के पुत्र उदयनिधि ने सनातन संस्कृति को मिटाने की बात कही थी। तब उदयनिधि ने कहा था, “कुछ चीजें हैं, जिनका हमें उन्मूलन करना है और हम केवल उनका विरोध नहीं कर सकते। मच्छर, डेंगू, मलेरिया, कोरोना, ये सभी चीजें हैं, जिनका हम विरोध नहीं कर सकते, हमें इन्हें मिटाना है। सनातन धर्म भी ऐसा ही है, इसे खत्म करना… हमारा पहला काम होना चाहिए।” इसका कार्ति चिदंबरम और प्रियांक खड़गे आदि कांग्रेसी नेताओं ने समर्थन किया था।

हालिया विधानसभा चुनाव में भाजपा की तीन राज्यों— मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में प्रचंड विजय हुई। इससे बौखलाकर इसी राजनीतिक गठजोड़ ने देश में ‘उत्तर भारत बनाम दक्षिण भारत’ की चर्चा पुन: आरंभ कर दी। इसके संकेत कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने सोशल मीडिया पर परोक्ष रूप से ‘साउथ’ लिखकर दिए थे। डीएनवी सेंथिल कुमार द्वारा हिंदी राज्यों को गौमूत्र प्रदेश कहना— चिदंबरम के उसी विभाजनकारी विचार का विस्तार है। वास्तव में, द्रमुक का जन्म इसी घृणा युक्त वैचारिक अधिष्ठान में हुआ था। अंग्रेजों ने इसे भारत में अपने राज को अक्षुण्ण बनाने हेतु भारतीयों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करने के लिए शुरू किया था। इसी विचार के मानसपुत्र अपने राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति हेतु आज भी उसी विषबेल को सेकुलरवाद के नाम पर सींच रहे है। विडंबना है कि स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने का दावा करने वाली और वर्तमान राष्ट्रीय दल कांग्रेस उसी जहरीली विचारधारा की न केवल सहयोगी बन गई है, अपितु उसका नेतृत्व भी करने को आतुर दिख रही है।

देश में इस घृणा युक्त उपक्रम के कई उप-उत्पाद है। उत्तरप्रदेश के गाजियाबाद में क्या हुआ? यहां ट्रॉनिका सिटी में 30 नवंबर को हुए सामूहिक दुष्कर्म मामले में पुलिस ने आरोपियों से पूछताछ के बाद एक खुलासा किया है। इसके अनुसार, युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म उसका मजहब पूछकर किया गया था। आरोपियों की मंशा पीड़िता के साथ स्कूटी पर जा रही सहेली के साथ भी दुष्कर्म करने की थी, परंतु जब उन्हें पता चला कि वह उन्हीं के मजहब से है, तो उसे छोड़ दिया। मामले में पुलिस ने इमरान और जुनैद को मुठभेड़ के बाद, तो चांद, गोलू और सुल्तान गिरफ्तार किया है। स्पष्ट है कि यह भयावह मामला बलात्कार रूपी जघन्य अपराध तक सीमित नहीं है। इसके पीछे की मानसिकता ही जहरीली है।

अभी प्रयागराज में 24 नवंबर को क्या हुआ? यहां लारेब हाशमी नामक बी.टेक के छात्र ने मजहबी नारा लगाते हुए बस कंडक्टर हरकेश विश्वकर्मा को तेज धारदार हथियार मारकर लहुलहान कर दिया। उसके बाद हाशमी ने एक वीडियो बनाया और दावा किया कि उसने एक ऐसे ‘काफिर’ को मारा है, जिसने उसके नबी की शान में गुस्ताखी की थी। बस चालक का दावा है कि पूरा विवाद किराए की कीमत को लेकर था। बकौल मीडिया रिपोर्ट, जब लारेब को हरकेश उसके बचे हुए पैसे दे रहा था, तभी लारेब ने अपने बैग से चापड़ निकाला और ‘जिहाद अभी जिंदा है‘ व ‘अल्लाह-हू-अकबर’ नारा लगाते हुए हरकेश की गर्दन पर दनादन वार करना शुरू कर दिया। मुठभेड़ के बाद लारेब पुलिस की गिरफ्त में है। यह घटनाक्रम गत वर्ष राजस्थान स्थित उदयपुर में कन्हैयालाल की निर्मम हत्या का स्मरण कराता है, जिसमें हत्यारे मोहम्मद रियाज और गौस मोहम्मद द्वारा भी वीडियो बनाया गया था।

इस घृणा से हरियाणा भी अछूता नहीं। यहां नूंह में 16 नवंबर को कुआं पूजन के लिए जा रही महिलाएं जैसे ही शिव मंदिर जाने हेतु स्थानीय मस्जिद के आगे से गुजरी, तभी वहां बीस से अधिक किशोरों ने उनपर पथराव कर दिया। इससे पहले इसी वर्ष 31 जुलाई को ब्रज मंडल शोभायात्रा के दौरान भी विशेष समुदाय के लोगों ने अपने घरों से पत्थर बरसाकर और लाठी-तलवारों से श्रद्धालुओं पर औचक हमला कर दिया था। तब न केवल कई वाहनों को भी फूंक दिया गया था, साथ ही नल्हड स्थित प्राचीन मंदिर को निशाना बनाकर गोलीबारी भी की गई थी।

ऐसे ही बिहार के बगहा और मोतिहारी में 21 अगस्त को नागपंचमी के अवसर पर निकाले गए महावीरी जुलूस पर भी पथराव हुआ था। बगहा में शोभा यात्रा जैसे ही एक मस्जिद से होकर गुजरी, वहां मौजूद लोगों ने इसका विरोध किया, फिर झड़प शुरू कर दी। इसी दिन राजस्थान में अलवर स्थित रामगढ़ से खाटू श्याम धाम के लिए प्रारंभ हुई ध्वजयात्रा पर भी हमला कर दिया गया था। इस दौरान पदयात्रियों की आस्था को आहत करने के लिए हमलावरों ने एक बस पर लगें पोस्टरों और बैनर को फाड़ दिया। जब बस चालक ने इसका विरोध किया, तो उसे मारा-पीटा गया। इतना ही नहीं, बस पर लगे खाटू श्याम बाबा के बैनरों को पैरों तले कुचलकर श्रद्धालुओं की भावना को भी ठेस पहुंचाने का काम किया गया था।

यह घृणा केवल हिंदू शोभायात्रा पर हमलों तक सीमित नहीं है। गाजियाबाद के मसूरी थाना क्षेत्र स्थित मिशनरी स्कूल के डेस्क पर सातवीं कक्षा के छात्र ने ‘जय श्रीराम’ लिख दिया था, तब इसे देखकर बौखलाए शिक्षक ने छात्र के मुंह पर फ्लूड लगा दिया। मामला तूल पकड़ने पर आरोपी शिक्षक को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इससे पहले गाजियाबाद के ही एक कॉलेज में छात्र को मंच पर ‘जय श्रीराम’ बोलने पर निष्कासित कर दिया गया था।

अक्सर, वाम-जिहादी-सेकुलर गिरोह द्वारा विश्वभर में विकृत नैरेटिव बनाया जाता है कि जब देश में मोदी सरकार आई है, तब से देश में ‘असहिष्णुता’ बढ़ गई है। सच तो यह है कि भारत में ‘घृणा’ न तो मई 2014 से बढ़ी है और न ही इसका संबंध कुछ दशक पुराना है। इसकी जड़े सदियों पुरानी है। कालांतर में छल-बल से मतांतरण, नरसंहार, गोवा इंक्विज़िशन, भारत का रक्तरंजित विभाजन और कश्मीर का 1989-91 घटनाक्रम आदि इसके प्रमाण है। विडंबना है कि जो लोग ‘मोहब्बत की दुकान’ खोलकर बैठे है, उनके गोदाम से घृणा के उत्पाद एक-एक करके बाहर आ रहे है।

By बलबीर पुंज

वऱिष्ठ पत्रकार और भाजपा के पूर्व राज्यसभा सांसद। नया इंडिया के नियमित लेखक।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें