सवाल है क्या भारत जैसे देश में, जहां स्वास्थ्य सेवाएं पहले से ही चुनौतियों से भरी हैं, दुर्लभ बीमारियों के मरीजों को जीने का हक मिलेगा? क्या समाज और सरकार मिलकर इन परिवारों के लिए कोई रास्ता निकाल सकते हैं? डीएमडी एक अनुवांशिक बीमारी है, जो डिस्ट्रोफिन जीन में उत्परिवर्तन के कारण होती है। यह जीन शरीर में डिस्ट्रोफिन प्रोटीन का निर्माण करता है, जो मांसपेशियों को मजबूत रखने के लिए जरूरी होता है। इस प्रोटीन की कमी से मांसपेशियां कमजोर होकर धीरे-धीरे नष्ट हो जाती हैं।
ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (डीएमडी) एक ऐसी दुर्लभ और लाइलाज जेनेटिक बीमारी है, जो मुख्य रूप से लड़कों को प्रभावित करती है। यह बीमारी मांसपेशियों को धीरे-धीरे कमजोर करती है, जिससे रोगी का चलना-फिरना, सांस लेना और अंततः जीवित रहना मुश्किल हो जाता है। भारत में हर 3500 पुरुष जन्मों में से एक बच्चा इस बीमारी का शिकार होता है। इसका इलाज इतना महंगा है कि यह सामान्य परिवारों की पहुंच से बाहर है।
ऐसी ही एक मार्मिक कहानी है अमृतसर के जंडियाला गुरु निवासी हरप्रीत सिंह और उनकी पत्नी की, जो अपने 9 वर्षीय बेटे इशमीत को बचाने के लिए दिन-रात संघर्ष कर रहे हैं। इशमीत को डीएमडी है और उसके इलाज के लिए 27 करोड़ रुपये की जरूरत है, एक ऐसी राशि जो किसी सामान्य परिवार के लिए असंभव-सी प्रतीत होती है।
हरप्रीत सिंह भारतीय सेना में सैनिक हैं और उनकी पत्नी का जीवन तब तक सामान्य था, जब तक उनके इकलौते बेटे इशमीत में कुछ असामान्य लक्षण दिखाई नहीं दिए। इशमीत जब चार साल का था तब उसके माता-पिता ने देखा कि वह ठीक से चल नहीं पाता, बार-बार गिरता है और अन्य बच्चों की तरह दौड़-भाग नहीं कर पाता। शुरू में उन्होंने इसे सामान्य कमजोरी समझा, लेकिन जब लक्षण बढ़ने लगे, तो वे उसे स्थानीय डॉक्टरों के पास ले गए। कई जांचों और अस्पतालों के चक्कर काटने के बाद, दिल्ली के एम्स में डॉक्टरों ने पुष्टि की कि इशमीत डीएमडी से पीड़ित है। यह खबर सुनकर हरप्रीत और उनकी पत्नी के पैरों तले जमीन खिसक गई।
डीएमडी एक अनुवांशिक बीमारी है, जो डिस्ट्रोफिन जीन में उत्परिवर्तन के कारण होती है। यह जीन शरीर में डिस्ट्रोफिन प्रोटीन का निर्माण करता है, जो मांसपेशियों को मजबूत रखने के लिए जरूरी होता है। इस प्रोटीन की कमी से मांसपेशियां कमजोर होकर धीरे-धीरे नष्ट हो जाती हैं। डीएमडी से पीड़ित बच्चों की औसत आयु 11 से 21 वर्ष तक होती है और ज्यादातर मरीज किशोरावस्था के अंत तक व्हीलचेयर पर निर्भर हो जाते हैं।
जब हरप्रीत को पता चला कि उनके बेटे का इलाज संभव है तो उनके चेहरे पर उम्मीद की किरण जगी। एम्स के डॉक्टरों ने बताया कि अमेरिका में एक जीन थेरेपी उपलब्ध है, जिसमें एक विशेष इंजेक्शन ज़ोल्जेंस्मा (या समकक्ष दवा) के जरिए डीएमडी का इलाज किया जा सकता है। डॉक्टरों ने आश्वासन दिया कि यह इंजेक्शन इशमीत को पूरी तरह स्वस्थ कर सकता है। लेकिन इस उम्मीद के साथ एक ऐसी सच्चाई भी सामने आई जिसने परिवार को हताश कर दिया। इस इंजेक्शन की कीमत 27 करोड़ रुपये है।
27 करोड़ रुपये की यह राशि किसी मध्यमवर्गीय परिवार के लिए कल्पनातीत है। हरप्रीत सिंह ने अपनी सारी जमा-पूंजी, जमीन, और अन्य संसाधनों को बेचने की कोशिश की, लेकिन इससे भी इस राशि का एक छोटा सा हिस्सा ही जुट पाया। भारत में डीएमडी का कोई किफायती इलाज उपलब्ध नहीं है और स्टेरॉयड जैसी दवाएं केवल लक्षणों को कुछ समय के लिए नियंत्रित कर सकती हैं, जिनके गंभीर दुष्प्रभाव भी हैं।
हरप्रीत और उनकी पत्नी ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपने बेटे को बचाने के लिए क्राउड फंडिंग का सहारा लिया। सोशल मीडिया, स्थानीय समुदाय और विभिन्न संगठनों के माध्यम से उन्होंने लोगों से मदद की अपील की। श्री हरिमंदिर साहिब के बाहर खड़े होकर उन्होंने गुहार लगाई, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग उनकी कहानी सुन सकें। उनकी मेहनत रंग लाई और अब तक करीब दो करोड़ रुपये जमा हो चुके हैं। लेकिन अभी भी पच्चीस करोड़ रुपये की जरूरत है और समय तेजी से बीत रहा है।
डीएमडी जैसी दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिए भारत में कोई ठोस नीति या सरकारी सहायता नहीं है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट में बताया था कि देश में करीब पांच लाख लोग डीएमडी से पीड़ित हैं और प्रत्येक मरीज के इलाज पर सालाना पांच करोड़ रुपये का खर्च आता है। लेकिन बजट की कमी के कारण सरकार इस दिशा में कोई कदम नहीं उठा पा रही। हरप्रीत ने कई बार सरकार से मदद की गुहार लगाई, लेकिन उन्हें केवल आश्वासन ही मिले। डीएमडी के मरीजों के लिए न तो मुफ्त दवाएं उपलब्ध हैं, न ही फिजियोथेरेपी जैसी सहायक सेवाएं। ऐसे में परिवार अकेले ही इस जंग को लड़ने के लिए मजबूर हैं।
डीएमडी के बारे में भारत में जागरूकता का अभाव भी एक बड़ी समस्या है। बहुत कम लोग इस बीमारी को समझते हैं, जिसके कारण मरीजों और उनके परिवारों को सामाजिक समर्थन नहीं मिल पाता। 2023 में दिल्ली के जंतर-मंतर पर डीएमडी जागरूकता के लिए एक रैली निकाली गई थी जिसमें 21 राज्यों से करीब 500 परिवार शामिल हुए। इस रैली में माता-पिता ने सरकार से सस्ती दवाओं, शोध के लिए फंड और मुफ्त इलाज की मांग की थी। हरप्रीत जैसे परिवारों का मानना है कि अगर समाज इस बीमारी को समझे और सरकार इसमें शोध को प्रोत्साहित करे, तो शायद भविष्य में इलाज किफायती हो सके।
हरप्रीत और उनकी पत्नी का संघर्ष केवल इशमीत के लिए नहीं, बल्कि उन सभी परिवारों के लिए एक मिसाल है, जो डीएमडी जैसी बीमारियों से जूझ रहे हैं। उनकी कहानी यह सवाल उठाती है कि क्या भारत जैसे देश में, जहां स्वास्थ्य सेवाएं पहले से ही चुनौतियों से भरी हैं, दुर्लभ बीमारियों के मरीजों को जीने का हक मिलेगा? क्या समाज और सरकार मिलकर इन परिवारों के लिए कोई रास्ता निकाल सकते हैं? यह न केवल हृदयविदारक है, बल्कि यह समाज और सरकार के लिए एक आंख खोलने वाली सीख भी है। 27 करोड़ रुपये का इलाज एक असंभव लक्ष्य जरूर है, लेकिन अगर समाज एकजुट हो जाए और सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठाए, तो इशमीत जैसे बच्चों को नया जीवन मिल सकता है। डीएमडी से जूझ रहे बच्चों के लिए जागरूकता, शोध और किफायती इलाज की जरूरत है।