nayaindia कांग्रेस की अव्यावसायिकता और विपक्षी एकता की महत्वपूर्ण चुनौती

राहुल गांधी की हिम्मत, विपक्ष की हिम्मत

कांग्रेस की अव्यावसायिकता

यह कांग्रेस का दुर्भाग्य है कि वह अपने सबसे विश्वसनीय, साहसी, अथकपरिश्रम करने वाले राहुल गांधी को वह साथ नहीं देती है जो उसे देना चाहिए। कांग्रेसियों को यह समझना चाहिए कि विपक्ष राहुल की विश्वसनीयता की वजह से ही एक गठबंधन में आने के लिए राज़ी हुआ। विपक्ष की एकता और राहुल की विश्वसनीयता इस चुनाव में सबसे बड़ी ताकत हैं। मोदी और हैटट्रिक के बीच बड़ी दीवार!

यह चुनाव कांग्रेस हारे या जीते राहुल गांधी एक मजबूत नेता के तौर पर स्थापितहो गए हैं। अब यह सवाल खत्म हो गया कि राहुल राजनीति में रहेंगे या नहीं?या उन्हें रहना चाहिए या नहीं ? राहुल एक स्वाभाविक नेता की तरह पूरी ताकत से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं।उन्हीं की मेहनत, हिम्मत, घुटने के असहनीय दर्द के बाद भी दो-दो भारतयात्राओं ने ही विपक्ष को जोड़ा। ममता बनर्जी जो बार बार छिटक रही थीं,बंगाल में कांग्रेस को सीट देने से इनकार कर दिया वे भी दिल्ली कीरामलीला मैदान की रैली में अपनी पार्टी के नेताओं को पहुंचाती हैं औरकहती हैं कि मैं इन्डिया गठबंधन के साथ हूं।

यह सब किस की वजह से? राहुल के बन गए प्रभामंडल की वजह से! कोई माने या न माने आज की तारीख में राहुल भारतीय राजनीति के ऐसे चेहरे बन गए हैं जिनके इर्द गिर्द यह पूरा चुनाव होने वाला है। भाजपा ने हजारों करोड़ रूपया राहुल की छवि खराब करने के लिए ऐसे ही नहीं लगाया! उन्हें राजनीति की समझ है। आज भी प्रधानमंत्री मोदी अगर बार बारवंशवाद की बात करते हैं तो ऐसे ही नहीं करते। वे जानते है कि राहुल गांधी ही एकमात्र ऐसे विरोधी नेता हैं जिनकी वजह से कांग्रेस एक बनी हुई है और जो विपक्ष को भी खींच कर एकजुट कर सकते हैं। और भाजपा, मोदी का आकलन सही निकला भी।

अब विपक्षी एकता बन गई है। कल तक किसी को यकीन नहीं था। आज भी विश्वास नहींहोता था। मगर यह सच है। और दिल्ली के रामलीला मैदान की मीटिंग के बाद लगताहै कि विपक्ष मोदी के सामने दीवार बनकर खड़ा हो गया।

यह मजबूत दीवार राहुल ने ही बनाई है। और इसे भेदना इस बार नरेंद्र मोदी के लिएमुश्किल हो रहा है। इसलिए मोदी बार बार अपने मुद्दे  बदल रहे हैं। उनकेपुराने हिन्दु मुसलमान और उग्र राष्ट्रवाद के मुद्दे इस बार बिल्कुल नहींचल रहे। इसलिए वे कभी भ्रष्टाचार और कभी पांच साल, दस साल बीस साल बादक्या करूंगा, जैसी हवा-हवाई बाते कर रहे हैं। जबकि जनता इस समय राहुल केरोजगार, मंहगाई और लोकतंत्र बचाओ के मुद्दों को सुन रही है।

यह ऐसे ही नहीं हुआ। राहुल ने इसके लिए कड़ी मेहनत की है। बहुत आलोचनासही है। कई बार उन्हें बुरी तरह खारिज कर दिया गया। मगर जैसे आग में तपकर सोना कुंदन हो जाता है वैसे ही राहुल हो गए।

बीस साल कम नहीं होते। उनकी हर तरह की परिक्षाएं ली गईं। और यह काम तोखुद कांग्रेसियों ने किया। राहुल का विरोध उनके रास्ते में बाधाएं खड़ीकरना उनके खिलाफ अफवाहें फैलाकर उनका चरित्रहनन करना जितना भाजपा और संघपरिवार ने किया उससे कम कांग्रेसियों ने नहीं किया। आखिर 2019 में राहुलको कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना ही पड़ा था! और उस पर भीकांग्रेसियों को चैन नहीं आया तो जी 23 के नाम से एक गिरोह बनाकर उन्हेंकांग्रेस से ही बाहर करने का षडयंत्र रचा था।

भाजपा करे। मोदी जी करें तो समझ में आता है। उन्हें लगता है कि जब तकराहुल या गांधी नेहरू परिवार का कोई सदस्य कांग्रेस में है कांग्रेस खतमनहीं होगी। लेकिन अगर गांधी नेहरू परिवार कांग्रेस से हट जाए या राजनीतिसे हट जाए तो कांग्रेस को वे गाजर मूली की तरह उखाड़ फेंकेंगे।

उनको यह लगना सही भी है। परिवार का कोई सदस्य कांग्रेस में न रहने परकांग्रेस कितने टुकड़े हो जाएगी कहना मुश्किल है। और केवल कांग्रेस ही खत्म नहीं होगी विपक्ष की राजनीति भी छिन्न भिन्न हो जाएगी। देश में कोईदूसरा राष्ट्रीय दल नहीं होगा। राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी का अकेला साम्राज्य होगा। और मोदी जी चक्रवर्ती सम्राट! लगता है कांग्रेस को इसमें ज्यादा आपत्ति नहीं होगी।

विपक्ष के दूसरे दलों को भी नहीं उन्हें अपने विस्तार की संभावनाएं दिखाई देंगी। थोड़ी भाजपा नेताओं को होगी क्योंकि मोदी को कोई चुनौती न होने के बाद उनका अस्तित्व और कमजोर हो जाएगा। अभी वैसे ही भाजपा का कोई नेता अपना कोईसम्मान या महत्व नहीं रखता है। और जब मोदी जी के लिए कोई चुनौती ही नहींबचेगी तो फिर भाजपा नेता बिल्कुल ही महत्वहीन हो जाएंगे।

किसी के बदल भीकोई भी बिठाया जा सकता है। आज राजनाथ सिंह और गडकरी को टिकट मिल गया।लेकिन जैसा कि एक आकलन हम बता रहे हैं उसके बाद राजनाथ या गडकरी, डाहर्षवर्धन और विजय गोयल की श्रेणी में चले जाएंगे।

लेकिन इस पर केवल आपत्ति नहीं अस्वीकार्य होगा भारत की जनता को। देश की गरीब आमजनता को। गांधी नेहरू परिवार का कोई सदस्य कांग्रेस में न होना तो जनता कोअनाथ कर जाएगा। बेसहारा। यह कोई वंशवाद नहीं है। आम जनता की दुःख तकलीफों के साथ अगर कोई सबसे ज्यादा खड़ा हुआ है तो वह यही परिवार है।

मोतीलाल नेहरू से लेकर आज राहुलतक और किसने इतने संघर्ष किए हैं?  त्याग, बलिदान किया। दो दो सदस्य देश कीएकता और अखंडता के लिए शहीद हुए। इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी जैसी कुर्बानियां कोई दे सकता है? यहां तो आज के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी किसान आंदोलन में यह कहते हुए आते हैं कि कह देना अपने मुख्यमंत्री सेजिन्दा वापस जा रहा हूं! किसानों से ऐसा डर!

तो भारत की जनता नेहरू-गांधी परिवार से प्यार करती है तो नाराज भी होती है। उसे हकहै इसका। इन्दिरा गांधी से भी हुई थी। उन्हें हराया। फिर वापस भी लाई।ऐसे ही 2014 और 2019 में हराया। और अगर उसे लगेगा कि फिर उसे परिवार केगरीब समर्थक रवैये की, बेरोजगार को रोजगार देने का वादा करने वाले राहुल की, महंगाई के खिलाफ लड़ने वाले की, उसके बच्चों के लिए सरकारी शिक्षा देने वाले की, उसके लिए सरकारी इलाज का इतंजाम करने वाले की जरूरत है तोवह राहुल को लाएगी। राहुल की मेहनत और धैर्य सफल होगा।

लोकतंत्र की यही खूबी है। जनता चाहती है तो वापस भी लाती है। वह वंशवाद,परिवार इन सब नकली मुद्दों पर यकीन नहीं रखती। वंशवाद क्या? क्या इस आरोपके कारण राहुल जनता के दुःख दर्द सुनना बंद कर दें ? ठीक है तो और कौनसुन रहा है? अग्निवीरों का दर्द राहुल ने उठाया ना! उसी के बादर क्षामंत्री राजनाथ सिंह को ठीक चुनाव में कहने पर मजबूर होना पड़ा किजीत गए तो इस समस्या पर विचार करेंगे। अभी तक तो मान ही नहीं रहे थे। और फिर यह युवाओं को पूछना चाहिए कि जीत गए से क्या मतलब? आज और अभी इसयोजना को निरस्त करने की घोषणा करो। क्या हो जाएगा। आपकी पार्टी पर कौनसी आचार संहिता लगती है?

तो यह राहुल इम्पैक्ट है। राहुल ने इतने सालों में यही कमाया है कि अब उनकी बोली हुई कोई बात खाली नहीं जा रही है। यह कांग्रेस का दुर्भाग्य है कि वह अपने सबसे विश्वसनीय, साहसी, अथक परिश्रम करने वाले राहुल गांधी को वह साथ नहीं देती है जो उसे देना चाहिए।कांग्रेसियों को यह समझना चाहिए कि विपक्ष राहुल की विश्वसनीयता की वजहसे ही एक गठबंधन में आने के लिए राज़ी हुआ।विपक्ष की एकता और राहुल की विश्वसनीयता इस चुनाव में सबसे बड़ी ताकतहैं। मोदी और हैटट्रिक के बीच बड़ी दीवार!

 

यह भी पढ़ें:

कांग्रेस का पैसे का संकट और बढ़ेगा

भाजपा में जाकर असुरक्षित होते नेता!

 

 

By शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें