अगर वे 2014 की ही तरह 2024 में भी प्रधानमंत्री बनने के लिए अड़े रहे तो अपनी डोली ढोने वाले कहार इस बार कहां से लाएंगे? कहारों की यह अनुपस्थिति ही आगामी ओस-बूंदों का आश्वासन है।
नरेंद्र भाई मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने का नैतिक हक़ भी खो चुके हैं और तकनीकी हक़ भी। बावजूद इस के अगर वे ख़ुद को रायसीना की पहाड़ी पर लादने की कोशिश करेंगे तो मैं पूरी तरह आश्वस्त हूं कि उन की इस ढिठाई पर देशवासियों के मन से तो वे और भी ज़्यादा तिरस्कृत होंगे ही, भारतीय जनता पार्टी और उस के पितृ-संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक बड़ा तबका भी उन के इस एकलखुरेपन की हिमायत में साथ खड़ा होने से खुल कर कतराएगा।
अपनी हेकड़ अदाओं के चलते भाजपा को 303 से 240 के आसपास पटक देने वाले और भाजपा के मत-प्रतिशत में छदाम भर भी बढ़ोतरी नहीं करा पाने वाले नरेंद्र भाई के लिए सब से मौजूं तो यही होगा कि विवेकानंद शिला से मिले शील और संयम के ताज़ा गुणों का सार्वजनिक इज़हार करते हुए स्वयं को प्रधानमंत्री पद की दौड़ से स्वयं ही अलग कर लें। इस से पहले कि भाजपा के भीतर कुनमुनाहट शुरू हो और इस से पहले कि संघ अपनी दक्षः मुद्रा में आ जाए, नरेंद्र भाई कोई संकरी गली तलाश कर निकल लें।
मगर मैं जानता हूं कि नरेंद्र भाई ने वह झोला इन दस बरस में कभी का कहीं छिपा दिया है, जिसे ले कर वे फ़कीराना अंदाज़ में चल पड़ने की बातें किया करते थे। सो, वे चुपचाप कहीं नहीं जाएंगे। उन्हें मालूम है कि ऐसी कोई भी पेशकश अगर उन्होंने की तो कोई उन्हें मनाने के लिए लोक कल्याण मार्ग की दहलीज़ पर आ कर अपना सिर नहीं पीटेगा। चंद घनघोर लाभार्थी अनुचरनुमा-हमजोलियों को छोड़ दे ंतो बाक़ी सब तो नरेंद्र भाई को बेहद सलीके से मार्गदर्शन मंडल में भेजने को आतुर बैठे हैं।
2024 का जनादेश सामुदायिक नफ़रत के ज़हर बोने वालों के खि़लाफ़ आया है; अर्थव्यवस्था को कृत्रिम फुगावा दे कर उस की असली चूलें बुरी तरह हिला देने वालों के खि़लाफ़ आया है; एकाधिकारवादी और अहंकारी प्रवृत्ति के बेरहम नाच के खि़लाफ़ आया है; लफ़्फाज़ी, जुमलेबाज़ी, सर्वज्ञाता-भाव और आत्ममुग्धता के ख़िलाफ़ आया है। दुर्भाग्यवश नरेंद्र भाई पिछले एक दशक इन तमाम अ-गुणों के जीवंत प्रतीक-पुरुष बन गए हैं। इसलिए यह जनादेश भाजपा के नहीं, उन के और उन की सियासी-कारकूनी चौकड़ी के ख़िलाफ़ आया है। तब भी अगर वे प्रधानमंत्री के सिंहासन पर काबिज़ हुए बिना नहीं मानेंगे तो भाजपा को नाश की और एनडीए को सर्वनाश की खाई में धकेलने का पाप करेंगे।
सो, नरेंद्र भाई का इस बार का रवैया भाजपा का सकल-आयुष्य तय करेगा। अगर उन्होंने अपने ज़िद्दीपन को तिलांजलि नहीं दी तो भाजपा का अल्पायु योग आरंभ हुआ समझिए। मगर सवाल तो यह है कि अगर वे 2014 की ही तरह 2024 में भी प्रधानमंत्री बनने के लिए अड़े रहे तो अपनी डोली ढोने वाले कहार इस बार कहां से लाएंगे? कहारों की यह अनुपस्थिति ही आगामी ओस-बूंदों का आश्वासन है। रामलला देश और भाजपा के भविष्य की रक्षा करें!