nayaindia Loksabha election 2024 ‘इण्डिया’ एकजुटता परोसे; भाजपा राम भरोसे...!

‘इण्डिया’ एकजुटता परोसे; भाजपा राम भरोसे…!

लोकसभा चुनाव

भोपाल। यद्यपि लोकसभा के आम चुनाव में अभी करीब एक सौ दिनों का समय शेष है, किंतु सभी राजनीतिक दलों पर चुनाव अभी से हावी हो गया है, देश पर राज कर रही भारतीय जनता पार्टी को जहां अपने नेता नरेन्द्र भाई मोदी के नेतृत्व पर पूरा भरोसा है और वह तीसरा कार्यकाल सुनिश्चित मान रही है, वहीं मोदी की आंधी का सामना करने के लिए सभी प्रतिपक्षी दल ‘इण्डिया’ गठबंधन के माध्यम से एकजुट होने लगे है, अर्थात् मुख्य प्रतिपक्षी दल कांग्रेस सहित सभी प्रतिपक्षी दलों ने यह सुनिश्चित कर लिया कि कोई भी एक अकेला दल मोदी की आंधी का सामना नहीं कर सकता इसलिए इसके लिए एकजुट होकर सामना करना जरूरी है, मतलब यह कि ‘‘इतिहास स्वयं को दोहराता है’’ की तर्ज पर फिर एक बार मजबूत सत्तारूढ़ दल के सामने समूचा प्रतिपक्ष एकजुट होने को मजबूर है, अस्सी के दशक मेें इंदिरा जी की सत्ता के सामने भी प्रतिपक्ष इसी स्थिति में था और एकजुट होने का उपक्रम किया था और उसे पूरी तो नहीं पर आंशिक सफलता अवश्य मिली थी।

किंतु अब जैसे-जैसे चुनाव निकट आते जा रहे है, वैसे-वैसे चुनावी पैतरों में भी बदलाव सामने आने लगे है, प्रतिपक्ष ने जहां ‘इण्डिया’ नामक एक गठबंधन तैयार करके संयुक्त चुनावी रणनीति पर मंथन शुरू कर दिया है वहीं देश पर करीब एक दशक से राज कर रहे नरेन्द्र भाई मोदी को अपनी आंशिक अलोकप्रियता का भी अहसास हो गया है और उन्होंने 2014 और 2019 की तरह स्वयं को चुनावी प्रतीक बनने से इंकार करके पुनः भगवान राम का आसरा ले लिया है, जिससे कि भगवान राम के पूजक हिन्दू एकजुट होकर उनके (मोदी के) समर्थन में खड़े हो जाए, क्योंकि गैर-हिन्दू मतदाताओं से तो भाजपा वैसे भी निराश ही रही है, अब अपना हिन्दू वोट पक्का करने के लिए भाजपा फिर रामजी की शरण में चली गई है और इसी के मद्देनजर अयोध्या राम मंदिर के समर्पण की तिथि 22 जनवरी तय की गई है, स्वयं प्रधानमंत्री जी उस दिन अयोध्या जाकर इस धार्मिक प्रक्रिया को पूरा करेगें।

भारतीय जनता पार्टी ने नए वर्ष के एजेण्डे में राम मंदिर के मुद्दें को प्रथम स्थान पर रखा है, इसके साथ ही राष्ट्रªव्यापी भाजपा कार्यकर्ताओं को भी सम्मेलन तथा सम्बोधन के माध्यम से लगातार एकजुटता के साथ चुनावी प्रचार में सक्रिय होने के संदेश प्रसारित किए जा रहे है, अर्थात् कुल मिलाकर भाजपा इस बार मोदी जी के नाम पर नहीं बल्कि भगवान राम के नाम पर पुनः अपनी सत्ता की तीसरी पारी का खेल खेलना चाहती है और उसे पूरी उम्मीद भी है कि वह अपने इन प्रयासों में सफल होगी। यही नही अयोध्या राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा से देश के हर मंदिर व गांव को जोड़ने की तैयारी कर रही है, जिसका प्रचार-प्रसार अभी से शुरू कर दिया गया है इसके लिए अपने साथ किसान मोर्चे को जोड़ा जा रहा है जिससे कि इसका व्यापक प्रचार-प्रसार हो सके। भाजपा के शीर्ष नेता पन्द्रह जनवरी के बाद पूरे देश में सभाओं के माध्यम से इस प्रचार की शुरूआत करेगें।

इस धार्मिक अभियान के साथ ही भाजपा ने अपने राष्ट्रªस्तरीय पदाधिकारियों की बैठकों में यह भी तय किया कि राज्यों के क्षेत्रिय दलों से भाजपा सीधे मुकाबला करेगी और भाजपा का पूूरा फोकस मोदी की ग्यारंटी पर होगा, अपने कमजोर भाग दक्षिण भारत के लिए भी भाजपा ने अपना ‘रोड मैप’ तैयार किया है और वहां के क्षेत्रिय दलों से समझौते की तैयारी की गई है, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडू व केरल के लिए अलग-अलग पॉलिसी तय की गई है और उस पर विचार-विमर्श भी शुरू कर दिया गया है। इन सब प्रयासों के बावजूद भाजपा कोई ‘रिस्क’ लेना नहीं चाहती, इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पचास फीसदी वोट का नया नारा शुरू किया है और राष्ट्रव्यापी स्तर पर अपने पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं को इस लक्ष्य को अच्छी तरह समझा भी दिया गया है।

इसके साथ ही भाजपा ने समय के साथ अपने नारों में भी बदलाव किया है, 2014 में जहां उसने ‘‘अबकी बार मोदी सरकार’’ का नारा तथा 2019 में ‘‘अब की बार तीन सौ पार’’ का नारा दिया था, वही इस बार ‘‘अब की बार चार सौ पार’’ का नारा तैयार किया है, अब इन नारों का मैदानी स्तर पर क्या असर होता है यह तो अगले चुनाव परिणामों के बाद ही पता चलेगा, किंतु यह तय है कि इस बार भाजपा अपने भविष्य को लेकर पिछले दो आम चुनावों के मुकाबले ज्यादा चिंतित है और उसकी चिंता झलक भी रही है। ….और जहां तक प्रतिपक्षी दलों खासकर कांग्रेस का सवाल है, उसने भी यह भली प्रकार महसूस कर लिया है कि वह अकेले अब भाजपा का मुकाबला नहीं कर सकती, इसलिए उसने पहल करके प्रतिपक्षी दलों का संयुक्त गठबंधन ‘इण्डिया’ खड़ा किया है और उसी के बैनर तले संयुक्त रूप से मोदी की आंधी का मुकाबला करने की रणनीति तैयार की गई है। इस तरह कुल मिलाकर अब यह स्पष्ट हो गया है कि भाजपा को जहां स्वयं के अस्तित्व पर आशंका होने लगी है, वहीं कांग्रेस भी अन्यों के भरोसे राजनीति करने को मजबूर हो रही है, अब इसका प्रतिफल तो आम चुनावों के बाद भी सामने आ पाएगा।

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