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21-06-2025 Vol 19

मोक्षदायिनी, हिमालयपुत्री गंगा

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गंगा एक नदी मात्र नहीं, अपितु भारत के समस्त विकास, उत्थान और वैभव की युगों -युगों की साक्षी है। गंगा संपूर्ण भारतीय सभ्यता -संस्कृति, आस्था-विश्वास, धर्म, दर्शन, चिंतन, मनन का जीवंत इतिहास है।… गंगा का सम्बन्ध कार्तिकेय के मातृत्व से भी है। पुराणों के अनुसार विवद्गंगा, आकाशगंगा अथवा स्वर्गगंगा विष्णु के अँगूठे से निकली हैं, जिसका पृथ्वी पर अवतरण भगीरथ के स्तवन से कपिल मुनि द्वारा भस्मीकृत राजा सगर के 60,000 पुत्रों की अस्थियों को पवित्र करने के लिए हुआ।

3 मई – गंगा सप्तमी

भारतीय परंपरा, भारतीय सभ्यता- संस्कृति एवं समस्त भारतीयों के हृदय का स्पंदन, कलयुग में मोक्ष का पर्याय समझी जाने वाली भगवती माता गंगा भारत में अत्यंत प्राचीन काल से स्मरणीय, पूजनीय मानी जाती रही है। मान्यता है कि गंगा के स्मरण से मनुष्य अपने दूषित कर्म से मुक्त, दर्शन से अपने संपूर्ण पाप कर्म से मुक्त और स्पर्श से इस जन्म में सद्गति प्राप्त कर मोक्ष को प्राप्त हो जाता है। इसलिए प्रत्येक भारतीय गंगा को माता सदृश्य मानते हैं। गंगा का नाम मुख पर आते ही जिह्वा शुद्ध, पवित्र और हृदय श्रद्धा से आप्लावित हो उठता है। व्यक्ति गंगा में स्नान का अवसर पाकर कृत-कृत्य हो जाते हैं। गंगाजल को भारतीय अमृत तुल्य मानकर उसका पान करते हैं।

गंगा के प्रवाह में अपने पूर्वजों की अस्थियों का विसर्जन कर भारतीय अपने को पूर्वजों के क़र्ज़ से मुक्त कर मानते हैं। यही कारण है कि विष्णु के चरण से उत्पन्न हुई, विष्णु से भक्ति रखने वाली और विष्णु की पूजा करने वाली गंगा से जन्म से मरण तक किये गए समस्त पापों से रक्षा करने की प्रार्थना करते हैं। स्वर्ग, अन्तरिक्ष एवं पृथ्वी में अवस्थित 35 करोड़ तीर्थ सभी जाह्नवी गंगा के ही देव हैं। देवगण उन्हें आनन्द प्रदायिनी नंदिनी और नलिनी कहकर पुकारते हैं। वस्तुतः गंगा भारतीयों के मन में कुछ इस प्रकार रच-बस गई है, हृदय में इस तरह समाहित हो गई है कि इसे भारतीय जनमानस से भिन्न किया ही नहीं जा सकता।

भारत की सर्वाधिक महिमामयी नदी गंगा को देवनदी, मंदाकिनी, भगीरथी, विष्णुपगा, देवपगा, दक्षा, पृथ्वी, विहगा, विश्वकाया, अमृता, शिवा, विद्याधरी, सुप्रशान्ता, शान्तिप्रदायिनी आदि नामों से भी जाना जाता है। भारत के उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार और बंगाल आदि राज्यों से होकर गुज़रने वाली गंगा नदी भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। गंगा एक नदी मात्र नहीं, अपितु भारत के समस्त विकास, उत्थान और वैभव की युगों -युगों की साक्षी है। गंगा संपूर्ण भारतीय सभ्यता -संस्कृति, आस्था-विश्वास, धर्म, दर्शन, चिंतन, मनन का जीवंत इतिहास है। यही कारण है कि महिमामयी विशाल हृदयवाली, दुःख  हारिणी पतितपावनी, जाह्नवी, भागीरथी माता गंगा को भारत में पवित्र, शुभ मानकर एक देवी की भांति पूजा जाता है।

पौराणिक मान्यतानुसार कपिल मुनि के शाप से शापित राजा सगर के साठ हजार पुत्रों के जलकर भस्म हो जाने पर उनके उद्धार के लिए राजा सगर के वंशज भगीरथ के द्वारा की गई  घोर व कठिन तपस्त्या से प्रसन्न होकर माता गंगा वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को स्वर्गलोक से भगवान शिव की जटाओं में पहुंची थीं। स्वर्गलोक से उतर शिव की जटा में समाहित होने अर्थात गंगोत्पति की इस तिथि बैशाख शुक्ल सप्तमी को गंगा सप्तमी, गंगा जयंती, गंगा पूजन अथवा गंगा जन्मोत्सव के नाम से जाना, पूजा जाता है। शिव की जटाओं से गंगा का इस पृथ्वी पर अवतरण ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को हुआ, जिसे गंगा दशहरा के नाम से संज्ञायित किया जाता है।

गंगा को भारत भूमि और भारतीय संस्कृति में अत्यंत ही उच्च व सम्मानित स्थान प्राप्त है। मान्यतानुसार गंगा के स्पर्श से ही राजा सगर के साठ हज़ार पुत्रों का उद्धार हो सका। गंगा को मोक्षदायिनी भी कहा जाता है। गंगोत्पति और गंगावतरण की इन दोनों ही तिथियों में गंगा को स्मरण, नमन, पूजन, वंदन की वृहद परिपाटी है। इन तिथियों में स्नान- दान-पुण्य का विशेष महत्व है। कुंभ पर्व, गंगा दशहरा, पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा, माघी पूर्णिमा, मकर संक्रांति, गंगा सप्तमी आदि प्रमुख अवसरों पर जीवनदायिनी गंगा नदी के तट पर मेले और गंगा स्नान आदि के आयोजन होते हैं, जिनमें करोड़ों श्रद्धालु देश- विदेश से शामिल होने के लिए आते हैं।

वेद, उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत आदि भारत के प्राचीन ग्रंथ भगवती गंगा की शुभता, महत्ता व पवित्रता का गान करते हैं। भारत के प्रयाग, वाराणसी आदि अनेक तीर्थ गंगा तट पर ही स्थित हैं। मान्यतानुसार गंगा देव नदी है। जिसका पृथ्वी पर अवतरण पापियों के मोक्ष के लिए हुआ है। गंगा के मात्र स्मरण, दर्शन, पान व स्नान करने से ही मनुष्य तर जाता है। गंगा माता इस संसार के अपने हर एक पुत्र को अपनी गोद में जन्म लेना चाहती है। अपने पुत्रों को समस्त सुख प्रदान करती है और दुःख को मूल से हरती है। प्रचलित मान्यतानुसार मृत्युशय्या पर पड़े व्यक्ति के मुख में गंगाजल डाल देने से वह बंधनों से मुक्त हो जाता है। वा

राणसी के गंगा तट पर मणिकार्णिका घाट पर मृत शरीर का अंतिम संस्कार होने से उस प्राणी को मोक्ष मिलता है। लौकिक मान्यतानुसार गंगा जल सर्वथा पवित्र है। इसमें किसी भी मलिन वस्तु के संपर्क से मलिनता नहीं आती, अपितु जिस वस्तु से उसका स्पर्श हो जाता है, वह निश्चित रूप से पवित्र व शुद्ध हो जाती है। समस्त संस्कारों में गंगाजल का उपयोग आवश्यक है। पंचामृत में भी गंगाजल को अमृत माना गया है। गंगा के साथ अनेक पर्व व उत्सवों का सीधा संबंध है। वैज्ञानिक मान्यतानुसार गंगाजल में विविध शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति दिलाने के औषधीय गुण हैं। इसके पान, स्नान, स्पर्शन से नव प्राणशक्ति का संचार होता है। वृद्धावस्था में शरीर के जर्जर और व्याधिग्रस्त हो जाने पर केवल गंगाजल ही इसका उपचार है। वैज्ञानिकों के अनुसार गंगा जल में बैक्टीरिया को खाने वाले बैक्टीरियोफ़ाज वायरस होते हैं। ये वायरस बैक्टीरिया की संख्या मे वृद्धि होते ही  सक्रिय होते हैं और बैक्टीरिया को मारने के बाद फिर छिप जाते हैं। गंगा जल में बैक्टीरिया को मारने की क्षमता है।

पवित्र व पुनीततम नदी गंगा के तटों पर हरिद्वार, कनखल, प्रयाग एवं काशी जैसे परम प्रसिद्ध तीर्थ अवस्थित हैं। प्रसिद्ध नदीसूक्त ऋग्वेद 1/ 75/ 5-6 में सर्वप्रथम गंगा का ही आह्वान व स्तवन किया गया है। शतपथ ब्राह्मण 13/5/4/11 एवं 13 तथा ऐतरेय ब्राह्मण 39/ 9 में गंगा एवं यमुना के किनारे पर भरत दौष्यंति की विजयों एवं यज्ञों का उल्लेख हुआ है। महाभारत अनुशासन पर्व 26/26-103 एवं नारदीय पुराण, उत्तरार्ध, अध्याय 38-45 एवं 51/1-48, पद्म पुराण 5/60/1-127, अग्नित्र अध्याय 110, मत्स्य पुराण, अध्याय 180-185, पद्म पुराण, आदिखण्ड, अध्याय 33-37, स्कन्द पुराण काशीखण्ड, अध्याय 33-37 में गंगा की महत्ता एवं पवित्रीकरण के विषय में सैकड़ों प्रशस्तिजनक श्लोक हैं।

स्कन्द पुराण में गंगा के एक सहस्र नामों का उल्लेख है। मत्स्य, कूर्म, गरुड़ एवं पद्म पुराणों में भी गंगा, गंगा स्नान, गंगा महिमा का अतिशय वर्णन प्राप्य हैं। पद्म पुराण 6/267/47 के अनुसार गंगा मंदाकिनी के रूप में स्वर्ग में, गंगा के रूप में पृथ्वी पर और भोगवती के रूप में पाताल में प्रवाहित होती है। विष्णु पुराण 2/8/109 पद्म, पुराण 5/25/188 में गंगा को विष्णु के बायें पैर के अँगूठे के नख से प्रवाहित माना गया है। मत्स्य पुराण 121/38-41, ब्रह्माण्ड पुराण 2/18/39-41 एवं 1/3/65-66) आदि पुराणों के अनुसार शिव ने अपनी जटा से गंगा को सात धाराओं में परिवर्तित कर दिया, जिनमें तीन (नलिनी, ह्लदिनी एवं पावनी) पूर्व की ओर, तीन (सीता, चक्षुस एवं सिन्धु) पश्चिम की ओर प्रवाहित हुई और सातवीं धारा भागीरथी हुई। कूर्म पुराण 1/46/30-31 एवं वराह पुराण अध्याय 82 के अनुसार गंगा सर्वप्रथम सीता, अलकनंदा, सुचक्ष एवं भद्रा नामक चार विभिन्न धाराओं में बहती है। अलकनंदा दक्षिण की ओर बहती है, भारतवर्ष की ओर आती है और सप्तमुखों में होकर समुद्र में गिरती है।

ब्रह्माण्ड पुराण 73/68-69 में गंगा को विष्णु के पाँव से एवं शिव के जटाजूट में अवस्थित माना गया है। एक दूसरे पौराणिक आख्यान के अनुसार गंगा हिमालय और मैना की पुत्री तथा उमा की भगिनी थीं। महाभारत की एक कथा उसे कुरुराज शान्तनु की पत्नी और भीष्म की माता बताती है। जिसमें भीष्म का दूसरा नाम गांगेय भी है। गंगा का सम्बन्ध कार्तिकेय के मातृत्व से भी है। पुराणों के अनुसार विवद्गंगा, आकाशगंगा अथवा स्वर्गगंगा विष्णु के अँगूठे से निकली हैं, जिसका पृथ्वी पर अवतरण भगीरथ के स्तवन से कपिल मुनि द्वारा भस्मीकृत राजा सगर के 60,000 पुत्रों की अस्थियों को पवित्र करने के लिए हुआ।

भगीरथ के साथ इसी संयोग के कारण गंगा का एक नाम भागीरथी पड़ा। स्वर्ग से उतरने के कारण गंगा अत्यन्त कुपित हो उठी थीं और उसके कोप के कारण पृथ्वी पर उसकी धारा पड़ते ही उनके बहकर नष्ट हो जाने के भय से शिव ने अपनी जटा में उसे समेट लिया, जिससे उनकी जटाओं में उलझ जाने के कारण धारा पृथ्वी पर सीधी नहीं पड़ी और गंगा की गति मंद हो गई। इसी कारण शिव का एक नाम गंगाधर भी पड़ा। गंगा का अवतरण तपस्वी जह्नु के यज्ञ के लिए घातक हुआ, जिससे क्रुद्ध होकर उस तापस ने गंगा को पी डाला और प्रार्थना के बाद उसने कान से गंगा की धारा निकाल दी, जिससे वह जाह्नवी कहलाई हैं। गंगा से संबंधित श्रीगंगा सहस्रनामस्तोत्रम् और आरती अत्यंत लोकप्रिय हैं, जिनका पाठ व प्रयोग लोग अपने दैनिक जीवन में श्रद्धा के साथ करते हैं।

अशोक 'प्रवृद्ध'

सनातन धर्मं और वैद-पुराण ग्रंथों के गंभीर अध्ययनकर्ता और लेखक। धर्मं-कर्म, तीज-त्यौहार, लोकपरंपराओं पर लिखने की धुन में नया इंडिया में लगातार बहुत लेखन।

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