फ़िल्म की कहानी एक पूर्व क्रांतिकारी, बॉब (लियोनार्डो डिकैप्रियो), की है जो अपनी बेटी विला (चेस इंफिनिटी) की तलाश में एक खतरनाक यात्रा पर निकलता है। फिल्म की पटकथा और निर्देशन में एंडरसन ने राजनीतिक विद्रोह, परिवारिक संबंधों और व्यक्तिगत संघर्षों को बखूबी प्रस्तुत किया है। इसमें हास्य और गंभीरता का संतुलन अद्वितीय है, जो दर्शकों को बांधे रखता है।
सिने-सोहबत
उपन्यासों पर आधारित फिल्में बनाने का प्रचलन हॉलीवुड में तो काफ़ी पुराना है, जिसे अब दुनिया भर के फ़िल्म उद्योगों में अभ्यास में लाया जा रहा है। हालांकि ‘बुक टू स्क्रीन अडैपटेशन’ की अपनी चुनातियाँ होती ही हैं। लेकिन कई मामलों में ये एक अच्छा ट्रेंड है। इस संदर्भ में एक बेहद सकारात्मक पहलू ये है कि अगर कोई कहानी उपन्यास के फॉर्म में पहले से ही पाठकों के दिलों में अपनी जगह बना लेती है तो स्वाभाविक है कि बहुत से लोग उसे फ़िल्म फ़ॉर्म में भी देखना चाहेंगे। यही उत्सुकता फ़िल्म के बनने के पहले से ही उस फ़िल्म के लिए एक दर्शक वर्ग तैयार कर लेती है। हालांकि यही बात चैलेंजिंग भी है। दरअसल, हर पाठक के मन में उसी कहानी पर एक फ़िल्म पहले से ही बन चुकी होती है और वो चाहता है कि जब असल में उस कहानी पर फिल्म बने तो उसके मन वाली फ़िल्म जैसी ही हो, उसी की कल्पना के अनुरूप हो।
ये एक बड़ी वजह है कि कई बार किताबों की कहानियों पर बनी फिल्में देखने के बाद दर्शक कहते हैं कि उन्हें किताब ही ज़्यादा पसंद आई थी। आज के सिने-सोहबत में भी एक ‘बुक टू स्क्रीन’ फ़िल्म पर विश्लेषण करते हैं। फ़िल्म का नाम है “वन बैटल आफ़्टर अनदर” जो कि थॉमस पिंचॉन के उपन्यास “वाइन लैंड” पर आधारित है और अमेरिकी समाज में व्याप्त राजनीतिक संघर्षों और व्यक्तिगत संबंधों की जटिलताओं को उजागर करती है। इसके निर्देशक हैं पॉल थॉमस एंडरसन। मुख्य भूमिका में हैं लियोनार्डो डिकैप्रियो। ये फ़िल्म एक सिनेमाई महाकाव्य की तरह है जो राजनीतिक विद्रोह, व्यक्तिगत संघर्ष और पारिवारिक रिश्तों की जटिलताओं को बखूबी प्रस्तुत करती है।
फ़िल्म की कहानी एक पूर्व क्रांतिकारी, बॉब (लियोनार्डो डिकैप्रियो), की है जो अपनी बेटी विला (चेस इंफिनिटी) की तलाश में एक खतरनाक यात्रा पर निकलता है। फिल्म की पटकथा और निर्देशन में एंडरसन ने राजनीतिक विद्रोह, परिवारिक संबंधों और व्यक्तिगत संघर्षों को बखूबी प्रस्तुत किया है। इसमें हास्य और गंभीरता का संतुलन अद्वितीय है, जो दर्शकों को बांधे रखता है।
अपने यहां के दर्शकों को भी राजनीतिक विद्रोह के साथ साथ आपसी संबंधों और व्यक्तिगत संघर्षों पर बनी फ़िल्में काफ़ी लुभाती रहीं हैं। इस स्पेस में सुधीर मिश्रा की ‘हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी’ और राकेश ओमप्रकाश मेहरा की ‘रंग दे बसंती’ ख़ासी मशहूर हिंदी फ़िल्में रहीं हैं। सुधीर मिश्रा की ‘हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी’ (2003) और राकेश ओमप्रकाश मेहरा की ‘रंग दे बसंती’ (2006), दोनों फ़िल्में युवाओं की बेचैनी, आदर्शवाद और बदलते भारत के संघर्ष की प्रतीक हैं लेकिन इनकी पृष्ठभूमि और दृष्टिकोण अलग हैं। ‘हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी’ 1970 के दशक के राजनीतिक अस्थिर भारत में सेट है, जहां तीन युवाओं—सिद्धार्थ, गीता और विक्रम की ज़िंदगियां विचारधाराओं के टकराव में उलझ जाती हैं। सिद्धार्थ समाजवादी क्रांति का सपना देखता है, गीता पश्चिमी शिक्षा और भारतीय भावनाओं के बीच झूलती है, जबकि विक्रम व्यावहारिक सफलता की ओर बढ़ता है। यह फ़िल्म एक आदर्शवादी पीढ़ी के मोहभंग की दास्तान है, जो सिस्टम को बदलना चाहती थी लेकिन उसी सिस्टम में गुम हो गई। वहीं ‘रंग दे बसंती’ आज़ाद भारत की नई पीढ़ी की कहानी है, जो शुरुआत में बेपरवाह और मस्ती में डूबी दिखती है। पर जब उनके एक मित्र की मौत भ्रष्ट व्यवस्था के कारण होती है, तो वही युवा भगत सिंह और उनके साथियों की प्रेरणा लेकर व्यवस्था के ख़िलाफ़ उठ खड़े होते हैं। यह फ़िल्म दर्शाती है कि आज़ादी सिर्फ़ अंग्रेज़ों से नहीं, बल्कि अन्याय और भ्रष्टाचार से लड़ने का नाम भी है।
बहरहाल, “वन बैटल आफ़्टर अनदर” के सभी कलाकारों का प्रदर्शन क़ाबिल ए ग़ौर है। लियोनार्डो डिकैप्रियो का बॉब के किरदार में अभिनय दिल को छूने वाला है। एक थके हुए, लेकिन दृढ़ नायक के रूप में उनकी भूमिका काफ़ी सराहनीय है। सीन पेन का प्रदर्शन एक ठंडे, लेकिन प्रभावशाली प्रतिपक्षी के रूप में उल्लेखनीय है। एक तरफ जहां विला के किरदार में चेस इंफिनिटी की भूमिका ताज़गी और ऊर्जा से भरपूर है। वहीँ दूसरी तरफ टेयाना टेलर और बेनिसियो डेल टोरो ने सहायक भूमिकाओं में अपनी ज़बरदस्त छाप छोड़ी है।
जॉनी ग्रीनवुड का संगीत फिल्म की नाटकीयता और तनाव को काफ़ी मैलोड्रामैटिक कर देता है। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी ने इसे एक दृश्यात्मक कृति बना दिया है।कह सकते हैं कि ‘वन बैटल आफ़्टर अनदर’ एक्शन, सस्पेंस और भावनात्मक गहराई का बेहतरीन मिश्रण है। इसके पहले भी निर्देशक पॉल थॉमस एंडरसन ने ‘बूगी नाइट्स’ और ‘लिकोरिस पिज़्ज़ा’ जैसी उम्दा फिल्में बनाई हैं।
ग़ौरतलब है कि किसी भी अंग्रेज़ी फिल्म को हिंदी के दर्शक हाथों हाथ तब ले लेते हैं जब वो हिंदी डबिंग के साथ आई हो लेकिन “वन बैटल आफ़्टर अनदर” को सिर्फ अंग्रेज़ी में ही रिलीज़ किया गया है। ऐसा होने की वजह से फ़िल्म के कारोबार पर इसका सीधा असर छोटे शहरों के सिनेमाघरों पर पड़ेगा। इसका कारण है कि महानगरों के बाहर के दर्शकों को दुनिया भर के कॉन्टेंट को अपनी मनचाही भाषा के सबटाइटल्स और डबिंग के साथ देखने की आदत पड़ चुकी है।
बहरहाल, “वन बैटल आफ़्टर अनदर” एक ऐसी फिल्म है जो न केवल मनोरंजन करती है, बल्कि समाज और परिवार के जटिल पहलुओं पर भी विचार करने के लिए मजबूर करती है। यदि आप गहन कथानक, उत्कृष्ट अभिनय और प्रभावशाली निर्देशन की तलाश में हैं, तो यह फ़िल्म पसंद आएगी। नज़दीक़ी सिनेमाघर में है। देख लीजिएगा। (पंकज दुबे मशहूर बाइलिंग्वल उपन्यासकार और चर्चित यूट्यूब चैट शो, “स्मॉल टाउन्स बिग स्टोरीज़” के होस्ट हैं।)


