nayaindia INDIA alliance ‘इंडिया’ दिखाए चुस्ती-फुर्ती, तभी बनेगी बात
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‘इंडिया’ दिखाए चुस्ती-फुर्ती, तभी बनेगी बात

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नाम INDIA बहुत अच्छा है। सत्ता पक्ष में खलबली मचा दी।…नाम ने भोकाल मचा दिया। मगर वही बात है कि नयनसुख रखने से ही तोदुनिया के नजारे नहीं दिखेंगे। घर से निकलना पड़ेगा। जाना पड़ेगा।बंगलुरू की मीटिंग में इन्डिया नाम रखा था। 17 – 18 जुलाई को थी मीटिंग।मगर उसके बाद अगली 31 अगस्त 1 सितम्बर को। इतना गेप क्यों?…रेस में घोड़ा दौड़ता बाद में है पहले तो अपनी चुस्तीफुर्ती से ही दिखाता है कि वह जीत सकता है।

नाम नयनसुख रख दिया। मगर बच्चे को घर से बाहर जाने ही नहीं दे रहे! क्यावह दुनिया देखेगा? क्या वह करेगा ?नाम INDIA बहुत अच्छा है। सत्ता पक्ष में खलबली मचा दी। प्रधानमंत्री तककभी इसकी तुलना ईस्ट इंडिया कंपनी से करते हैं तो कभी घमंडिया कहते हैं।मीडिया से कह दिया कि बिन्दी लगा लगाकर लिखो!

नाम ने तो भोकाल मचा दिया। मगर वही बात है कि नयनसुख रखने से ही तो दुनिया के नजारे नहीं दिखेंगे। घर से निकलना पड़ेगा। जाना पड़ेगा। बंगलुरू की मीटिंग में इन्डिया नाम रखा था। 17 – 18 जुलाई को थी मीटिंग।मगर उसके बाद अगली 31 अगस्त 1 सितम्बर को। इतना गेप क्यों?

समय तो बचा नहीं है। सात महीने से भी कम बचे हैं। मार्च का पहला हफ़्ताखत्म होते ही 2019 में चुनाव की घोषणा हो गई थी। इस बार उस समय तो होगीही। उससे पहले भी घोषणा हो सकती है। मोदी जी ने तो अगले साल फिर लाल किले पर आने का वादा कर दिया। उन्हेंविश्वास है अपनी मेहनत पर। 2019 जीतने के बाद से वे यही तो कर रहे हैं।चुनाव चुनाव! केवल चुनाव की तैयारी। उनकी तैयारी पूरी है। यहां अभीविश्राम की स्थिति है।

पहले ऐसा ही होता था सेना सोती रहती थी हमला हो जाता था। जीतने वाले सभीऐसा ही करते थे। पटना में 23 जून के पहली बैठक हुई थी। इससे पहले एक पटनाकी ही केंसिल हो चुकी थी। विपक्षी दलों को भरोसा नहीं था। एक दूसरे पर भीऔर खुद पर भी। नीतीश कुमार ने इस साल फरवरी में सीपीआई (एमएल) के पटना केराष्ट्रीय अधिवेशन में सबसे पहले विपक्षी एकता की बात करते हुये कहा थाकि अगर हम मिल कर लड़ लिए तो भाजपा को सौ के नीचे रोक देंगे।

उसके बाद से नीतीश लगातार सक्रिय रहे। सारे विपक्षी नेताओं से मिले और 12जून को पटना में पहली मीटिंग रखी। मगर उस समय तक विपक्ष में हौसला नहींआया था। नतीजा 12 जून की बैठक केंसिल हो गई। फिर 23 जून को पटना मेंमिले। 15 दल। उसमें से भी केजरीवाल प्रेस कान्फ्रेंस से पहले निकल गए यहकहते हुए कि जब तक कांग्रेस दिल्ली अध्यादेश का विरोध करने की घोषणा नहींकरेगी वे विपक्ष के एकता के प्रयासों में शामिल नहीं होंगे।

दस साल से मुख्यमंत्री हैं। एक और राज्य पंजाब में सरकार बना ली। मगरक्या इतनी राजनीति नहीं जानते कि कांग्रेस किसी भी हालत में अध्यादेश कासमर्थन कर ही नहीं सकती। इस लेकर बेवजह का विवाद आम आदमी पार्टी ने मचारखा था। कांग्रेस के भी दिल्ली के कुछ नेता इस यह कहकर और बढ़ा रहे थे किकांग्रेस को अध्यादेश पर केजरीवाल का साथ नहीं देना चाहिए। उनकी भी समझमें नहीं आ रहा था कि कांग्रेस का केजरीवाल का साथ देना सैकंडरी बात है।

पहली बात यह है कि अध्यादेश देश के संघीय ढांचे के खिलाफ है। पहले जम्मूकश्मीर के दो भाग करके और पूर्ण राज्य का दर्जा खत्म करके उसके अधिकारखत्म किए गए। अब दिल्ली के। अगर एक होकर इस तानाशाही के खिलाफ नहीं लड़ागया तो फिर सब राज्यों के अधिकारों पर कुल्हाड़ी चलना पक्का है।

कांग्रेस ने अध्यादेश का स्थान लेने के लिए लाए विधेयक का पुरजोर विरोधकिया। और यहां तक कि राज्यसभा में मतदान के लिए पूर्व प्रधानमंत्रीमनमोहन सिंह को व्हील चेयर पर लाया भी गया। केजरीवाल को कुछ तो अहसास हुआहोगा। तभी उन्होंने मनमोहन सिंह को और कांग्रेस को विशेष धन्यवाद दिया।मगर उन्हें मनमोहन सिंह से जाकर माफी मांगना चाहिए थी। क्या क्या नहींकहा था मनमोहन सिंह के खिलाफ। और मनमोहन सिंह ने एक ही बात कही था किइतिहास बताएगा कि कौन सही था?

और इतिहास ने मनमोहन सिंह के जीते जी यह बता दिया कि वे ही सही थे।इतिहास न्याय करता है इसमें कोई शक नहीं मगर जीते जी भी करता है यह कमदेखने को मिलता है। मगर इन दिनों जब अन्याय ज्यादा होने लगा है तो इतिहासभी न्याय जल्दी करके यह दिखा रहा है कि जो भी है अच्छा बुरा यहीं इसीदुनिया में देखने को मिलता है।

लालकृष्ण आडवाणी जो भाजपा को बनाने वाले सबसे बडे नेता हैं। वे आजनिर्वासन में जी रहे हैं। अभी इसी 15 अगस्त को मंगलवार को उनका एक चित्रआया। अकेले अपनी बेटी के साथ झंडारोहण कर रहे हैं। भाजपा का कोई नेतानहीं। उनके साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया गया, इसका जवाब किसी के पास नहींहै। और अगर जिन्ना के मजार पर जाना गुनाह है तो प्रधानमंत्री मोदी तोबिना बुलाए अचानक नवाज शरीफ के यहां शादी में पहुंच गए थे। और मुरलीमनोहर जोशी का तो एक अपराध कोई बता नहीं सकता।

उमा भारती से लेकर विनय कटियार, तोगड़िया सबको सीन से हटा दिया गया।क्यों? इसका जवाब किसी के पास नहीं है। मगर शायद इतिहास दे। और इतिहास जबदेता है तो बहुत निर्ममता के साथ देता है। जैसा आडवानी को दे रहा है। देशमें नफरत और विभाजन की राजनीति आडवानी ने ही शुरू की थी। और अपनों की नफरत का शिकार होकर आज वे अकेले पड़े हैं। मीडिया तक को उनकी याद नहींहै। आजाद भारत में मीडिया को उनसे ज्यादा किसी ने नहीं दिया। अपनीविचारधारा के सारे पत्रकारों को उन्होंने संपादक बना दिया। राज्यसभा देदी। जिसने जो चाहा मिला। मीडिया मालिकों को भी। मगर आज कोई उनका हालपूछने नहीं जाता।

भारत का मीडिया सबसे ज्यादा कृतध्न समुदाय है। आज मोदी जी काभक्त बना हुआ है। मगर मोदी जी की एक बात है वे आडवानी और कांग्रेस की तरहमीडिया को कुछ देते नहीं हैं। बस बहुत क्रान्ति कर रहे हो कहकर भय कामाहौल बनाए रखते हैं। और मीडिल क्लास की तरह जिसमें से ही निकलकर यहमीडिया आता है डरता रहता है।

इसलिए राहुल ने सबसे पहले इसी मीडिया से तालकटोरा स्टेडियम में कांग्रेसके सम्मेलन में कहा था “ डरो मत! “ बाकयादा प्रेस गैलरी की तरफ इंगितकरते हुए कहा था। बाद में उसी को राहुल ने अपना मूल मंत्र बना लिया। अब इसलिए लिखा है कि कांग्रेस ने अपनी बड़ी पार्टी होने के सारे गुमानोंको परे रखते हुए इडिंया तो बना दिया। मगर उसे अपनी चाल से बचाएं।कांग्रेस बड़ी पार्टी है। ऐतिहासिक पार्टी। आजादी के आन्दोलन का नेतृत्व करने वाली पार्टी। अधिकांश समय सत्ता में रहने वाली पार्टी। तो उसकी चालशाही अंदाज की है। धीमी। हाथी वाली मस्त चाल। मगर यह समय तेज गति मांगताहै।

INDIA को वही गति दिखाना होगी। मोदी जी को रोकना आसान नहीं है। 26 दलों कीमोर्चाबंदी अच्छी है। मगर मोर्चा लगाकर बैठे रहने से कुछ नहीं होगा।संयोजक जल्दी चुना जाना चाहिए। मुबंई बैठक में ही हो जरुरी नहीं। उससेपहले आपस में बात करके घोषणा की जा सकती है। 11 सदस्यीय समिति बाद मेंमुंबई में बन सकती है। गठबंधनों का कोई संविधान या बायलॉज नहीं होते।जरुरत के हिसाब से निर्णय करना होते हैं।

वहां तो पार्टी में जो सामुहिक नेतृत्व की बात करती है। व्यक्तिवाद काविरोध करती है। वहां मोदी जी ने खुद से कह दिया कि तीसरी बार मैं हीप्रधानमंत्री बनूगा। खलबली तो भाजपा और संघ में मचना चाहिए थी। मगर वहांतो अब मोदी ही भाजपा और मोदी ही संघ हैं। राजनाथ सिंह और गडकरी का कैरियरखत्म। तीसरी बार उन्हें मंत्री पद भी नहीं मिलेगा। वे रविशंकर प्रसाद औरप्रकाश जावड़ेकर बन जाएंगे।

मगर इंडिया को इससे मतलब नहीं। उसे यह देखना है कि वह 2024 में कैसे आसकती है। लड़ाई मुश्किल है। मगर असंभव नहीं। बस मेहनत करना होगी। गतिबढ़ाना होगी। जनता को दिखना चाहिए कि कोई गठबंधन समाने खड़ा है। मोदी कोरोक सकता है तो वह साथ में आ जाएगी। मगर ढुलमुल तरीका रहा तो वह भरोसा नहीं कर पाएगी। रेस में घोड़ा दौड़ता बाद में है पहले तो अपनी चुस्तीफुर्ती से ही दिखाता है कि वह जीत सकता है।

By शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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