भोपाल। नाइन इयर के कार्यकाल में प्रधानमंत्री ने अनेक परदेशों के नेत्रत्व को झटका दिया है। पहला झटका उत्तराखंड फिर गुजरात और महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के मुख्य मंत्रियों को लगा। इन लोगों को जिस प्रकार बेबस कर के पैदली मात दी वह उनके अपराजेय व्यक्तित्व का विज्ञापन ही है। अब इस बार उनका निशाना उत्तर प्रदेश के भगवाधारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ है ! हाल में ही हुए पाँच राज्यों मंे से चार में अपनी पार्टी की गिरती साख और आसन्न पराजय का आभास मिलते ही, राहुल गांधी के एजेंडा पिछड़ी जातियों की जनगणना के सामने झुकते हुए बीजेपी शासित राज्यों में इन्ही वर्गों का नेत्रतव देने की कवायद में जुट गए हैं। इसका पहल प्रयोग उत्तर प्रदेश से शुरू होगा, जहां लोकसभा की सर्वाधिक सीटे हैं। जो मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के लिए बेहद जरूरी है।
इसीलिए नवंबर माह की गृह विभाग की बैठक की अध्यक्षता उप मुख्य मंत्री केशव प्रसाद मौर्य द्वारा लिया जाना इस बात का संकेत है कि बदलाव की घंटी बज चुकी है। गौरतलब है कि विभागीय मंत्री ही ऐसी बैठकों की अध्यक्षता करता है। योगी जी सरकार के गठन के समय से ही गृह मंत्री है। ऐसे में जबकि मुख्यमंत्री भी राज्य में ही है तब किसी दूसरे मंत्री द्वारा बैठक लिया जाना भरी परिवर्तन का सूचक ही है। आमतौर पर ऐसा तब है जब मुख्यमंत्री बाहर हो अथवा अस्वस्थ हो तब होता है। परंतु इस बार योगी जी भी लखनऊ में ही है और स्वस्थ्य भी है। तब ऐसा होना निश्चित रूप से उनकी विदाई का संकेत देता है। जो कि बीजेपी की सरकार और संगठन के लिए कोई शुभ संकेत नहीं लगता।
अब अगर इस संभावित परिवर्तन के पृष्ठभूमि में बात करे तब पार्टी के लिए लाभ से ज्यादा हानि की संभावना ज्यादा इंगित करता है। साथ ही प्रदेश में वोटों के ध्रुवीकरण को भी प्रभावित करेगा। अभी तक बीजेपी को सवर्णों के वोटों की गारंटी – उसके हिन्दू और रामलला के मंदिर के वादे पर ही है। अब उसका पिछड़ी जातियों का वोट पाने के लिए नेत्रत्व परिवर्तन कितना सफल होगा कहा नहीं जा सकता। क्यूंकि मौर्य जाति प्रदेश के मध्य भाग में ही बहुतायत से है। पूर्वांञ्चल और मेरठ आदि में इस जाति के गोलबंद वोट नहीं के बराबर है। आमतौर पर इस जाति को सब्जी भाजी का उत्पादन करने वाला माना जाता है। वे सब्जी का व्यापार भी करते हैं। सब्जी मंडियों में इनके साइन बोर्ड देखे जा सकते हैं। परंतु संख्या बल मे ये वोट बैंक बन सके ऐसी गिनती इनके पास नहीं है। व्यक्तिगत रूप से ये राजनीति में जगह बना सकते हंै, परंतु मौर्य साम्राज्य जैसा दम अब नहीं है।
यह भी है कि यादव और कुर्मी वोटों की निर्णायक स्थिति के सामने मौर्य वोट बैंक नगणय ही है। जहां तक केशव प्रसाद मौर्य को पिछड़ी जातियों का नेता घोषित तो मोदी जी कर सकते है परंतु यादव और कुर्मी मतदाता उन्हंे नेता तो मान ही नहीं सकते। जो कि प्रदेश की राजनीति की एक धुरी है। रहा अनुसूचित जाति के मतों को प्रभावित करने का तो इस वर्ग के वोटर मौर्य नेत्रत्व को सहज और स्वीकार हो सकते हैं, क्यूंकि ना तो यह वर्ग कोई बड़ा खेतिहर है और ना ही कोई ऐसा इलाका है जहां मात्र इनके वोटों से चुनाव फल निर्णायक होता हो। कुल मिलाकर नरेंद्र मोदी की यह चाल भी कोई सुखद परिणाम देने वाली नहीं है। क्या इस बदलाव से सरकार में
कोई परिवर्तन होगा ?
अगर यह मान भी ले कि मोदी जी की इस शतरंजी चाल को अमलीजामा पहनाया जाता है तब क्या दृश्य होगा ? यहां योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के समय हुए घटनाक्रम को समझना जरूरी है। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों में बीजेपी की जीत के बाद जब मुख्यमंत्री बनाने का सवाल हुआ तब योगी जी मोदी की लिस्ट में नहीं थे| परंतु नेता के चुनाव की सरगर्मी के बीच ही योगी जी की हिन्दू वाहिनी ने गोरखपुर और अगल बगल के जिलों में योगी जी के समर्थन में रैली – जुलूस निकालना शुरू कर दिया था। इस वाहिनी में दबंगों का ही नेत्रत्व था। जिसमें ठाकुर लोगों की बहुलता थी। ऐसा कहते हंै कि योगी जी ने आरएसएस के सूत्रों से मोदी जी तक यह संदेशा भिजवा दिया कि अगर उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाता है, तो वे उनकी हिन्दू समर्थन की हवा निकाल देंगे। बताते है कि प्रधानमंत्री इस चाल से बहुत नाराज़ थे। परंतु आरएसएस नेत्रत्व की सिफारिश पर उन्होंने हामी भर दी। परंतु यह भी साफ कर दिया कि उन्हें दिल्ली के आदेशों का पालन करना होगा।
कई साल तक यह चलता रहा, परंतु गोरखपुर के राज्यसभा सांसद डॉ. अगरवाल को विधानसभा में पराजित करवाने से वे मोदी जी के कोप भजन बन गए। फलस्वरूप अग्रवाल को गोरखपुर की राजनीति में मोदी जी की आवाज माना जाने लगा। जो योगी की हैसियत को काटता रहता है। मोदी जी को अगरवाल का राज्यसभा में जाना बहुत अखरा परंतु वे काशमशा के रह गए – आखिर कर भी क्या सकते थे। उसके बाद कई ऐसे मामले हुए, जैसे मोदी जी के आईएएस सहायक को योगी जी मंत्रिमंडल में रखने से इंकार कर दिया। इस बात से अमित शाह तक ने योगी जी को खरी खोटी सुना दिया था। कहते है कि जब उन्हें विधान परिषद में भेजा जाना था – तब भी योगी जी बहुत अड़े, परंतु केंद्र समर्थक विधायकों की मदद से वे परिषद पहुँच गये। कहते हैं कि गृह सचिव के पद को लेकर भी तनातनी हुई थी। मसला यह कि योगी जी अपने खिलाफ 16 आपराधिक मुकदमों को हाई कोर्ट से खारिज करा लिया। तब हजारों संघ और बीजेपी कार्यकताओं ने अपने विरुद्ध चल रहे मुकदमों को वापस लिए जाने की बात नेत्रत्व से उठाई थी। परंतु सिर्फ ठाकुर नेताओं के मामलों पर विचार तो हुआ। इस मामले को लेकर बीजेपी कार्यकर्ताओं में योगी के नेत्रत्व को लेकर आशंतोष बड़ा।