nayaindia Rahul Gandhi Disqualification Issue बेताल-युग में झन्नाट-झापड़ की पुण्य-गाथा

बेताल-युग में झन्नाट-झापड़ की पुण्य-गाथा

बावजूद इसके कि हम महिषासुर-नगरी के लाचार बाशिंदे हैं, हमारे आसपास कहीं कोई कात्यायनी उपस्थित है। बावजूद इसके कि कुरु-दरबार में तक़रीबन सब की ज़ुबान पर जंज़ीरें हैं, एक विकर्ण भी किसी कोने में बैठा है। बावजूद इसके कि हम कुरु-क्षेत्र का रण बहुत वक़्त से लड़ रहे हैं, मैं आश्वस्त हूं कि अब हम अगहन महीने की द्वादशी तिथि तक आ पहुंचे हैं। यह संघर्ष कुछ ही वक़्त का और बचा है। किनारा ज़रा-सा दूर ही सही, लेकिन नज़र आने लगा है।…नौ साल से चल रहे मायावी संसार का तिलिस्म ढहना शुरू हो गया है। अय्यारों की अय्यारी दरक रही है।

मैं जानता हूं कि न ज़िल्ल-ए-सुब्हानी में और न उन के कारिंदों में इतनी शर्म-हया है कि वे राहुल गांधी की सज़ा पर रोक से अपने गाल पर पड़े सुप्रीम कोर्ट के तमाचे के बाद भी सुधरने की सोचें। वे उस पूंछ की तरह हैं, जो बारह साल फोंगली में रखने के बाद भी सीधी नहीं होती। इसलिए जो सोच रहे हैं कि राहुल की यह सियासी-सामाजिक-नैतिक जीत बेसुरी शक्तियों को आंखें झुकाने पर मजबूर कर देगी, वे भोले हैं। वे नहीं जानते कि महिषासुर-नगरी की साजसज्जा, लाज के गहनों से नहीं, नरमुंडों की झालर लटका कर की जाती है।

सो, वे जो राहुल को एक खोखले अवमानना-प्रकरण में इसलिए दो साल से एक भी दिन कम की सज़ा नहीं होने देने पर उतारू थे कि उन की संसद सदस्यता ताबड़तोड़ लील जाएं, उन का सरकारी आवास रातोंरात खाली करा लें और उन्हें आठ साल के लिए चुनावी मैदान से बाहर कर दें; क्या वे अब अपने घुटनों में सिर दबा कर बैठ जाएंगे? नहीं, अब वे नए सिरे से अपने कुतर्क खोजेंगे, नई साज़िशों के फंदे तैयार करेंगे और नए कालकूट की फ़सल बोएंगे। वे यही करने के लिए आदतन और इरादतन नियतिबद्ध हैं। उन का जन्म हुआ ही नकारात्मकता-प्रसार के लिए है।

जिनकी दलील थी कि राहुल को तो अदालत ने सज़ा दी है, वे भी मन-ही-मन जानते थे कि उन्हें किसने सज़ा दी है। राहुल को सज़ा अदालत ने नहीं दी थी, अदालत ने तो आज उन्हें न्याय दिया है, उन की अनुचित सज़ा पर रोक लगाई है। देश की किसी भी प्राथमिक, माध्यमिक या उच्च अदालत के लिए इस से ज़्यादा डूब मरने वाली बात क्या हो सकती है कि सर्वोच्च अदालत उस के फ़ैसले पर रोक लगा दे और ऐसा करते हुए यह हैरत भी ज़ाहिर करे कि राहुल को आख़िर अधिकतम सज़ा ही क्यों दी गई? सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले को ‘दिलचस्प’ बताया। यह शब्द इस्तेमाल करने के पीछे सुप्रीम कोर्ट का भाव-मर्म सचमुच समझ में आ जाने पर भी अगर कोई हरकती गर्दन झुकाने के बजाय उसे टेढ़ी किए घूम रहा हो तो उस के ढीठपन को क्या कहें!

पहले दिन से सब जानते थे कि राहुल को दी गई सज़ा इतने थोथे आधारों पर टिकी हुई है कि उसे भरभरा कर गिरना ही है। मगर तब भी उन्हें संसद से निकालने से ले कर घर से निकालने तक की नंगई दिखाने में जिन लोगों ने एक-से-बढ़ कर-एक करतब करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी, वे आज पसोपेश में तो होंगे कि ‘चाय’ से भी ज़्यादा ग़रम केतली की भूमिका निभा कर उन्होंने ठीक किया था या नहीं? सब का न सही, कुछ का ज़मीर तो अब उन्हें झकझोर रहा होगा। आख़िर कुरु-राज में सभी दुर्योधन ही तो नहीं होते। विदुर भी तो उसी में कहीं-न-कहीं होते हैं। कोई विदुर की सुने-न-सुने, चीरहरण का विरोध करना विदुर का हमेशा धर्म रहा है। सो, मैं अभी इतना नाउम्मीद नहीं हुआ हूं कि मुझे लगने लगे कि विदुर-वंश पृथ्वी से समाप्त ही हो चुका है।

इसीलिए मैं मानता हूं कि बावजूद इसके कि हम महिषासुर-नगरी के लाचार बाशिंदे हैं, हमारे आसपास कहीं कोई कात्यायनी उपस्थित है। बावजूद इसके कि कुरु-दरबार में तक़रीबन सब की ज़ुबान पर जंज़ीरें हैं, एक विकर्ण भी किसी कोने में बैठा है। बावजूद इसके कि हम कुरु-क्षेत्र का रण बहुत वक़्त से लड़ रहे हैं, मैं आश्वस्त हूं कि अब हम अगहन महीने की द्वादशी तिथि तक आ पहुंचे हैं। यह संघर्ष कुछ ही वक़्त का और बचा है। किनारा ज़रा-सा दूर ही सही, लेकिन नज़र आने लगा है। राहुल की सज़ा पर रोक उन के लिए वैयक्तिक राहत की बात तो है, मगर उस से कहीं ज़्यादा वह मौसम के बदलाव की चहचहाहट है। वह अब तक दबाव तले लचक कर चलती दिखाई दे रही संवैधानिक संस्थाओं की अंगड़ाई का संकेत है।

राहुल की सज़ा पर रोक लगा कर सुप्रीम कोर्ट ने गंगाजली-कर्तव्य निभाया है। धुलेंगे या नहीं, पता नही, मगर इस गंगाजली ने कइयों के पाप अपनी तरफ़ से तो धो ही दिए हैं। शुक्रवार को अगर सुप्रीम कोर्ट ऐसा करने से हिचक जाता तो लोकतंत्र की पेशानी पर लगा एक धब्बा हमेशा के लिए स्थायी हो जाता। न्याय व्यवस्था सदा के लिए संदेह के जंगल में भटक जाती। आततायी हमेशा के लिए अट्टहास करते डोलते रहते। उन की मदमस्ती के तले देश के सारे सपने कुचल गए होते। सो, भले ही न्याय पाना हर-एक का नैसर्गिक हक़ है, मौजूदा बेताल-युग में सुप्रीम कोर्ट की इस पुण्य-गाथा के गीत कई दशक तक गाए जाएंगे।

राहुल पर चले अवमानना प्रकरण के, उन्हें हुई अधिकतम सज़ा के, सज़ा पर रोक लगाने से इनकार करने के गुजरात हाइकोर्ट के फ़ैसले के और सुप्रीम कोर्ट द्वारा सज़ा पर अंततः लगा दी गई रोक के कई तकनीकी पहलू हैं। अपनी-अपनी भावना के मुताबिक उनकी सुव्याख्या-कुव्याख्या करने का सब को अधिकार है। सब को हक़ है कि वे इस पर अपने-अपने हिसाब से तर्क-कुतर्क करें। लेकिन इस सारे होहल्ले के बीच जिस रश्मिरथी पर समय ने राहुल को स्थापित कर दिया है, वह उन्हें अब तब तक ‘चलते भी चलो, चलते भी चलो’ की धुन सुना कर कहता रहेगा कि ‘अब डेरे मंज़िल ही पे डाले जाएंगे’।

सुप्रीम कोर्ट के झन्नाट झापड़ के बाद भी जो सुधरने को तैयार नहीं होंगे, उन की ख़बर 2024 में लोग लेंगे। ऐसी लेंगे, ऐसी लेंगे कि उन की आंखें फट जाएंगी। संसद, संविधान और जनतंत्र को जेब में डाल कर टहलने के दिन अब तेज़ी से लद रहे हैं। ‘कर लो सब-कुछ मुट्ठी में’ की नीयत पाले बैठे सर्वज्ञाता ‘हन-हन स्वाहा’ मंत्र का जाप कर रहे हैं, लेकिन उन्हें नहीं मालूम कि उन के मंत्र अब अपनी शक्ति खोते जा रहे हैं। इन मंत्रों ने अब उलटी यात्रा आरंभ कर दी है। उन के हथकंडे बूमरेंग-दशा को प्राप्त हो रहे हैं।

सो, थोड़ी-सा इंतज़ार और कीजिए। परदा जल्दी ही उठने वाला है। बिसात तक़रीबन बिछ चुकी है। नौ साल से चल रहे मायावी संसार का तिलिस्म ढहना शुरू हो गया है। अय्यारों की अय्यारी दरक रही है। जब-जब ऐसा होता है, सारी माया एकाएक लुप्त हो जाती है। तमाम पोली अट्टालिकाएं धमाधम गिरने लगती हैं। सब-कुछ रेत के टीले की तरह ढह जाता है। एक आंधी सब ले उड़ती है। उस आंधी की शुरुआत हो गई है। इस आंधी को थामने के लिए सामाजिक धु्रवीकरण की पुरानी चालबाज़ियों की नई बानगी देखना अभी बाकी है। हमारे हुक़्मरानों की हताशा जो न कराए, कम होगा। इसलिए जागते रहिए!

 

By पंकज शर्मा

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स में संवाददाता, विशेष संवाददाता का सन् 1980 से 2006 का लंबा अनुभव। पांच वर्ष सीबीएफसी-सदस्य। प्रिंट और ब्रॉडकास्ट में विविध अनुभव और फिलहाल संपादक, न्यूज व्यूज इंडिया और स्वतंत्र पत्रकारिता। नया इंडिया के नियमित लेखक।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें