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एकजुट है एनडीए, विपक्ष का दांव नाकाम

भाजपा संगठन के लिए दशकों काम कर चुके, लोकसभा सांसद और राज्यपाल रहे  सी.पी. राधाकृष्णन के अनुभव का लाभ देश को प्राप्त होगा और राज्यसभा का संचालन भी वे तटस्थ और निरपेक्ष होकर करेंगे। उनकी जीत निश्चित है। विपक्ष के पास अब भी समय है कि वह उनका समर्थन करे। नौ सितंबर को मतदान विपक्ष का चाहे जो रुख रहे, देश नए उप राष्ट्रपति और उच्च सदन के नए सभापति के रूप में सी.पी. राधाकृष्णन का स्वागत करने को तैयार है।   

उप राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष का राजनीतिक और क्षेत्रीय विभाजन का दांव नाकाम हो गया है। विपक्षी पार्टियों ने अपनी पारंपरिक विभाजनकारी राजनीतिक सोच में एनडीए के   सी.पी. राधाकृष्णन के मुकाबले जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी को उम्मीदवार बनाया। कांग्रेस और उसके नेतृत्व वाले इंडी गठबंधन की पार्टियों को लग रहा था कि जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी अविभाजित आंध्र प्रदेश में जन्मे हैं तो उनके नाम पर कम से कम दो राज्यों आंध्र प्रदेश और तेलंगाना का समर्थन प्राप्त किया जा सकेगा।   सी.पी. राधाकृष्णन जैसे अनुभवी और पुराने राजनेता के मुकाबले एक अराजनीतिक उम्मीदवार उतारने के पीछे एकमात्र उद्देश्य एनडीए के अंदर राजनीतिक और राज्यों के बीच क्षेत्रीय विभाजन बढ़ाना था। परंतु एनडीए की पार्टियों ने विपक्ष का यह दांव विफल कर दिया।

असल में विपक्ष को अस्मिता की राजनीति के नाम पर विभाजन का एजेंडा चलाना था। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री   चंद्रबाबू नायडू ने इसे तुरंत भांप लिया और घोषणा कर दी कि उनकी पार्टी एनडीए के उम्मीदवार   सी.पी. राधाकृष्णन का समर्थन करेगी। आंध्र प्रदेश की सरकार में शामिल तेलुगू फिल्मों के सुपर सितारे   पवन कल्याण की पार्टी जन सेना पार्टी भी उनका समर्थन कर रही है। यहां तक कि आंध्र प्रदेश की विपक्षी पार्टी   जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस ने भी विपक्ष की इस विभाजनकारी राजनीति का साथ नहीं दिया। इस बात की भी संभावना है कि तेलंगाना की मुख्य विपक्षी पार्टी भारत राष्ट्र समिति का समर्थन भी एनडीए के उम्मीदवार   सी.पी. राधाकृष्णन को ही मिले क्योंकि स्थानीय राजनीतिक कारणों से बीआरएस के सांसद कांग्रेस के साथ जाने की जोखिम नहीं उठा सकते हैं।

तभी ऐसा प्रतीत हो रहा है कि एनडीए की ओर से आम सहमति से तय किए गए तमिलनाडु के वरिष्ठ व अनुभवी नेता के मुकाबले तेलुगू उम्मीदवार उतार कर कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों ने आंध्र प्रदेश व तेलंगाना की पार्टियों को दुविधा में डालने का जो दांव खेला था वह विफल हो गया है।

उलटे तमिलनाडु की उसकी सहयोगी पार्टियों के अंदर दुविधा पैदा हो गई है। ध्यान रहे तमिलनाडु में अगले साल अप्रैल में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और उससे ठीक पहले हो रहे उप राष्ट्रपति के चुनाव में जो पार्टियां तमिलनाडु के बेहद लोकप्रिय, सौम्य और जमीनी राजनेता   सी.पी. राधाकृष्णन का समर्थन नहीं करेंगी उनके लिए विधानसभा चुनाव में मुश्किल होगी। डीएमके ने पिछले कुछ दिनों से तमिल बनाम हिंदी का विवाद पैदा करके या सनातन का विरोध करके तमिल अस्मिता का दांव खेला है। मुख्यमंत्री   एमके स्टालिन और उनके बेटे   उदयनिधि स्टालिन दोनों इस खेल में शामिल हैं। लेकिन अब ये दोनों अपने ही दांव में उलझ गए हैं। अगर उनको तमिल अस्मिता का मुद्दा विधानसभा चुनाव में बनाए रखना है तो एनडीए के उम्मीदवार का समर्थन करना होगा। अगर वे   राधाकृष्णन का समर्थन नहीं करते हैं तो उनको इसकी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ेगी। यह सिर्फ डीएमके की दुविधा नहीं है, बल्कि राज्य में सरकार चला रहे सेकुलर प्रोग्रेसिव अलायंस यानी एसपीए के सभी घटक दलों के सांसदों की है। एक तरफ अन्ना डीएमके पूरी तरह से एनडीए उम्मीदवार के साथ एकजुट है तो दूसरी ओर एसपीए की पार्टियों में विभाजन है।

ध्यान रहे उप राष्ट्रपति के चुनाव में पार्टियां व्हिप जारी नहीं कर सकती हैं और न दलबदल विरोधी कानून लागू होता है। इसका मतलब है कि अगर सांसद चाहें तो वे पार्टी लाइन से  अलग हट कर वोट दे सकते हैं। कांग्रेस और डीएमके नेताओं को असली चिंता यही सता रही है कि कहीं उनके गठबंधन के सांसदों ने अंतरात्मा की आवाज पर वोट दिया तो ज्यादातर वोट एनडीए उम्मीदवार के खाते में चले जाएंगे। पहले भी कई बार ऐसा देखने को मिला है कि अलग अलग कारणों से पार्टियां राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति चुनाव में अपने सांसदों को आजाद कर देती थीं और अंतरात्मा की आवाज पर वोट देने को कह देती थीं। कई बार ऐसा भी हुआ है पार्टियों के किसी खास उम्मीदवार के पक्ष में मतदान के लिए कहने के बावजूद नेताओं ने अंतरात्मा की आवाज पर मतदान किया।

इसकी मिसाल 2022 का राष्ट्रपति का चुनाव था, जब झारखंड में कांग्रेस पार्टी के विधायकों ने पार्टी की ओर से निर्देश होने के बावजूद एनडीए की उम्मीदवार  मति द्रौपदी मुर्मू के लिए मतदान किया था। चूंकि इसमें  व्हिप जारी नहीं होता है इसलिए उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। इस बार उप राष्ट्रपति के चुनाव में तमिलनाडु में अगर कांग्रेस और डीएमके गठबंधन के कुछ सांसद अंतरात्मा की आवाज पर   सी.पी. राधाकृष्णन को वोट दें तो हैरानी नहीं होगी। अगर ऐसा होता है तो विपक्ष का विभाजन का दांव न सिर्फ विफल होगा, बल्कि उलटा पड़ जाएगा।

उप राष्ट्रपति के चुनाव में इलेक्टोरल कॉलेज छोटा होता है यानी मतदाताओं की संख्या कम होती है। संसद के दोनों सदनों के सदस्य इस चुनाव में मतदान करते हैं, जिनकी संख्या इस समय 782 है। इसका अर्थ है कि बहुमत का आंकड़ा 391 सदस्यों का है, जबकि एनडीए के पास करीब सवा चार सौ सांसदों का समर्थन है। इसलिए एनडीए के उम्मीदवार   सी.पी. राधाकृष्णन के बड़े बहुमत से जीत कर देश का नया उप राष्ट्रपति होने में कोई संदेह नहीं है। नौ सितंबर को होने वाले चुनाव में दिलचस्पी वाली बात सिर्फ इतनी है कि एनडीए उम्मीदवार को कितने अतिरिक्त वोट मिलते हैं और जीत का अंतर कितने का होता है। ध्यान रहे इससे पहले हर चुनाव में सत्तारूढ़ दल के उम्मीदवार को 60 फीसदी या उससे ज्यादा मत मिलते रहे हैं।

अगस्त 2022 के चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार   जगदीप धनखड़ को 74 फीसदी से कुछ ज्यादा वोट मिले थे और विपक्ष की उम्मीदवार मारग्रेट अल्वा को 26 फीसदी से कुछ कम वोट मिले। जीत का अंतर लगभग 50 फीसदी वोट का था। उससे पहले 2017 के उप राष्ट्रपति चुनाव में भी एनडीए के उम्मीदवार   वेंकैया नायडू को 68 फीसदी और विपक्ष के उम्मीदवार   गोपाल गांधी को 32 फीसदी के करीब वोट मिले थे। तब भी जीत का अंतर 36 फीसदी वोट का था। पिछले साल लोकसभा चुनाव के बाद समीकरण थोड़ा बदला है फिर भी एनडीए उम्मीदवार की जीत बड़े अंतर से होगी, यह तय है।

विपक्ष ने टकराव और विभाजन की राजनीति जारी रखी है परंतु उनके सांसदों के पास अब भी समय है कि वे अंतरात्मा की आवाज सुनें और जमीनी राजनीतिक समझ वाले, अनुभवी राजनेता   सी.पी. राधाकृष्णन के पक्ष में मतदान करें। वे दो बार तमिलनाडु की कोयम्बटूर सीट से लोकसभा का चुनाव जीते हैं। जिस समय तमिलनाडु में भारतीय जनता पार्टी का राजनीतिक आधार बहुत मजबूत नहीं था उस समय   राधाकृष्णन ने वहां राजनीति की। उन्होंने पार्टी को मजबूत किया और अपनी जगह बनाई। इसलिए कह सकते हैं कि वे जमीनी राजनीतिक सचाइयों को जानते हैं और जन भावना को भी पहचानते हैं।

दो बार सांसद रहने के कारण वे संसदीय कार्यवाही, संसदीय नियम और परंपराओं के बारे में बखूबी जानते हैं। उनके मुकाबले विपक्ष के उम्मीदवार जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी संसदीय अनुभव, नियम और परंपराओं से अनभिज्ञ हैं। कानून और न्याय की उनकी समझ पर सवाल नहीं है लेकिन संसद की अपनी परंपरा होती है, उसके नियम होते हैं और उसके लिए कुछ अनुभव की आवश्यकता इसलिए होती है क्योंकि उप राष्ट्रपति को संसद के उच्च सदन यानी राज्यसभा का संचालन करना होता है। उप राष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति होते हैं और राज्यसभा का संचालन एक बेहद जवाबदेही का काम होता है।

सी.पी. राधाकृष्णन दो राज्यों के राज्यपाल भी रहे। वे आदिवासी बहुल झारखंड के राज्यपाल रहे थे। यह संयोग है कि देश की महामहिम राष्ट्रपति  मति द्रौपदी मुर्मू भी झारखंड की राज्यपाल रही हैं।   राधाकृष्णन झारखंड के बाद महाराष्ट्र के राज्यपाल बनाए गए। वे महाराष्ट्र के राज्यपाल के तौर पर ही उप राष्ट्रपति का चुनाव लड़ रहे हैं। इसलिए आश्चर्य नहीं होगा अगर महाराष्ट्र में भी विपक्षी पार्टियों में फूट पड़े और कुछ सांसद अंतरात्मा की आवाज पर उनको वोट दें। दोनों राज्यों के राज्यपाल के रूप में उनका कामकाज बहुत अच्छा रहा और सरकारों के साथ उनके संबंध सद्भाव वाले रहे। बहरहाल, भाजपा संगठन के लिए दशकों काम कर चुके, लोकसभा सांसद और राज्यपाल रहे   सी.पी. राधाकृष्णन के अनुभव का लाभ देश को प्राप्त होगा और राज्यसभा का संचालन भी वे तटस्थ और निरपेक्ष होकर करेंगे। उनकी जीत निश्चित है। विपक्ष के पास अब भी समय है कि वह उनका समर्थन करे। अगर विपक्ष राजनीतिक कारणों से समर्थन नहीं करता है तो उनके सांसद अंतरात्मा की आवाज पर उनको वोट दें। नौ सितंबर को मतदान विपक्ष का चाहे जो रुख रहे, देश नए उप राष्ट्रपति और उच्च सदन के नए सभापति के रूप में   सी.पी. राधाकृष्णन का स्वागत करने को तैयार है।   (लेखक दिल्ली में सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तामंग (गोले) के कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त विशेष कार्यवाहक अधिकारी हैं।)

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