भारत के सामने एक बार फिर संकट है तभी फिर आत्मनिर्भर भारत का जुमला बक्से में झाड़ पोंछ कर निकाला गया है। हर जगह प्रधानमंत्री भारत को आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प जता रहे हैं। हर जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह रहे हैं कि आत्मनिर्भरता देश का मंत्र है। इसी मंत्र से देश का कल्याण होगा। उन्होंने एक सभा में कहा कि भारत की सारी बीमारियों को दूर करने का एक रामबाण उपाय आत्मनिर्भर होना है। सरकार का जन संपर्क विभाग आतमनिर्भर भारत के जुमले को जन जन तक पहुंचाने में लगा है। सरकार ने इसे देश के स्वाभिमान से जोड़ दिया है और 140 करोड़ लोगों के कल्याण का रास्ता इसमें से निकलता दिखाया जा रहा है। अमेरिका ने भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगाया। दूसरे देशों पर भी भारत पर टैरिफ बढ़ाने का दबाव बनाया तब जाकर फिर से आत्मनिर्भर भारत के जुमले की याद आई। जबकि ध्यान रहे, लोगों को याद ऱखना चाहिए कि पांच साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार ने आत्मनिर्भर भारत बनाने का जुमला पहली बार बोला था।
वह समय था कोरोना की महामारी का। पूरी दुनिया में कोविड की महामारी के बीच राहत पैकेज की घोषणा हो रही थी। लोगों के खाते में पैसे डाले जा रहे थे तभी आत्मनिर्भर भारत बनाने का जुमला उछाला गया था। सरकार ने कोई 21 लाख करोड़ रुपए के पैकेज का ऐलान किया था। और आश्चर्य है कि एक रुपया किसी के खाते में नहीं जा रहा था। यह लगभग पूरा पैकेज कर्ज लेने के लिए था। उसी समय यानी वर्ष 2020 में सरकार की ओर से आत्मनिर्भर भारत बनाने का जुमला फेंका गया था। फिर कोरोना खत्म हुआ तो इस जुमले को भी बक्से में बंद कर दिया गया। ध्यान रहे 2020 से 2025 के बीच दुनिया के देशों पर भारत की निर्भरता बुरी तरह बढ़ती गई। चीन के साथ कारोबार बढ़ता ही गया। बढ़ते बढ़ते अब भारत का व्यापार घाटा एक सौ अरब डॉलर से ज्यादा का हो गया है। यह आत्मनिर्भर भारत के पहले दौर यानी 2020 से 2025 की कहानी है। अब 2025 में दूसरा दौर शुरू हो गया है। कोरोना के बाद टैरिफ का संकट आया है तो आत्मनिर्भर भारत के जुमले की याद आई और उसे फिर बक्से से निकाला गया।
यह जानना भी दिलचस्प है कि ठीक 10 साल पहले और वह भी सितंबर का महीना था। 28 सितंबर 2014 को बड़े धूमधड़ाके के साथ ‘मेक इन इंडिया’ अभियान लॉन्च किया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका शेर वाला लोगो जारी किया। तब कहा गया था कि भारत विनिर्माण के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनेगा। इसके तीन लक्ष्य तय किए गए थे। एक लक्ष्य था कि 2022 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में विनिर्माण सेक्टर का हिस्सा 20 से बढ़ा कर 25 फीसदी करना है। आज स्थिति यह है कि भारत की जीडीपी में विनिर्माण सेक्टर का हिस्सा 17 फीसदी रह गया है। सरकार ने अब 25 फीसदी का लक्ष्य बढ़ा कर 2030 तक कर दिया है। मेक इन इंडिया का एक लक्ष्य विनिर्माण सेक्टर में 10 करोड़ नौकरियों के अवसर पैदा करने का था। एक लक्ष्य विनिर्माण सेक्टर की विकास दर 12 से 14 फीसदी पहुंचाने का था। इस योजना के लागू होने के 10 साल बाद विनिर्माण सेक्टर की विकास दर 5.4 फीसदी है यानी लक्ष्य के आधे से भी कम। यह योजना अपने तीनों घोषित लक्ष्यों को पूरा करने में पूरी तरह से विफल रही। यह भी आत्मनिर्भर भारत से जुड़ा जुमला था।