राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

बांग्लादेशी निकालने हैं तो पुनरीक्षण से क्यों?

बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण चल रहा है। चुनाव आयोग, केंद्र व बिहार सरकार और एनडीए के घटक दलों का दावा है कि चुनाव आयोग की ओर से नियुक्त बूथ लेवल अधिकारी यानी बीएलओ घर घर जाकर मतदाताओं की सत्यापन कर रहे हैं। सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि इस प्रक्रिया में बहुत से बांग्लादेशी, रोहिंग्या और नेपाली मिले हैं। सोचें, सीमा की सुरक्षा करने वाली फोर्स या सीआईडी और दूसरी खुफिया एजेंसियां नहीं, बल्कि बीएलओ विदेशी नागरिक खोज रहे हैं! दूसरी ओर विपक्ष और स्वतंत्र मीडिया का दावा है कि बीएलओ घर घर नहीं जा रहे हैं। वे एक जगह बैठ कर मनमाने तरीके से मतगणना प्रपत्र भर रहे हैं। कई जगह मतदाताओं से फॉर्म भरने के पैसे मांगे जाने की खबरें आईं और बीएलओ निलंबित हुए।

दस्तावेजों को लेकर अलग कंफ्यूजन है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई तो अदालत ने चुनाव आयोग को सलाह दी कि वह सत्यापन के दस्तावेजों में आधार कार्ड, मनरेगा कार्ड और राशन कार्ड को भी शामिल करे। एक हफ्ते बाद तक भी चुनाव आयोग ने आधिकारिक रूप से इस सलाह पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी लेकिन सूत्रों के हवाले से कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के कहने से पहले ही बीएलओ आधार स्वीकार करने लगे थे। यह सही भी क्योंकि कई जगह आधार लिए जा रहे हैं।

अब सवाल है कि चुनाव आयोग ने पहले कहा कि आधार से नागरिकता प्रमाणित नहीं होती है फिर उसने क्यों मतदाता बनने के लिए आधार स्वीकार करना शुरू कर दिया? ध्यान चुनाव आयोग ने दो टूक अंदाज में कहा हुआ है कि वह नागरिकता का सत्यापन कर रहा है क्योंकि मतदाता होने के लिए नागरिक होना अनिवार्य शर्त है। यह बात उसने सुप्रीम कोर्ट में कही। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जब यह पूछा गया कि नागरिकता का सत्यापन करना तो गृह मंत्रालय का काम है, चुनाव आयोग क्यों कर रहा है तो चुनाव आयोग का जवाब था कि जन प्रतिनिधित्व कानून में यह स्पष्ट किया गया है कि जो भारत का नागरिक होगा वहीं मतदाता हो सकता है। इसलिए चुनाव आयोग को संवैधानिक अधिकार है कि वह नागरिकता का सत्यापन करे और भारत के नागरिक के नाम ही मतदाता सूची में शामिल करे।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *