delhi election result : आज अगले दस वर्षों की राजनीति की दिशा वाले नतीजे हैं। अरविंद केजरीवाल यदि जीते तो भाजपा के लिए राजनीति वैसे ही उबड़-खाबड़ होगी जैसे 2024 का लोकसभा चुनाव था।
और यदि अरविंद केजरीवाल हार गए तो हरियाणा के क्वार्टर फाइनल, महाराष्ट्र के सेमी फाइनल के बाद दिल्ली का चुनाव नतीजा फाइनल है।
इसके बाद कांग्रेस के अलावा बाकी क्षत्रपों का अर्थ हमेशा के लिए खत्म। न बिहार में आगे भाजपा हारेगी और न उत्तर प्रदेश में। न ही फिर पश्चिम बंगाल, असम में कही हारने वाली है।(delhi election result)
इसलिए क्योंकि नरेंद्र मोदी-अमित शाह के आगे नई जमीनी राजनीति में, जैसे को तैसे के जवाब में अरविंद केजरीवाल आखिरी क्षत्रप हैं।
दिल्ली चुनाव से यह मालूम होगा कि रेवड़ियों की राजनीति चुनाव जीतने का ठोस तरीका है या बूथ लेवल पर एक एक वोट का मैनेजमेंट?(delhi election result)
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कांग्रेस ने आप के वोट काटे(delhi election result)
अरविंद केजरीवाल क्यों कर हारने चाहिए, इसके जवाब में ये दलीलें बताई गई हैं- केजरीवाल बदनाम हो गए हैं, उनकी मूल ‘आम आदमी’ की इमेज को ‘शीशमहल’ ले डूबा है।(delhi election result)
वे भष्ट्र, चोर माने जाने लगे हैं। उन्होंने झुग्गी-झोपड़ी-गरीब, मुसलमान, दलित वोटों में बिजली, शिक्षा, चिकित्सा और रेवड़ियों से अपना जो ठोस वोट आधार बनाया था वह भाजपा के वादों के आगे फीका है।
भाजपा ने क्योंकि केजरीवाल सरकार की फ्री व्यवस्था जारी रखने का वादा करने के अलावा नई मुफ्तखोरी की घोषणाएं की हैं तो लोगों ने ज्यादा लालच में भाजपा को वोट दिया।
फिर कांग्रेस ने आप के वोट काटे हैं तो इससे भी भाजपा को लाभ होगा।(delhi election result)
अहम अज्ञात कारण यह है कि बस्तियों के डेमोग्राफिक प्रोफाइल में मोदी-शाह की मशीनरी ने अपने बनाम आप पार्टी बनाम कांग्रेस के एक एक वोट, जात के हिसाब से वोटर लिस्ट के हिसाब-किताब में जो खेला किया है वह यदि हरियाणा और महाराष्ट्र में कामयाब हुआ था तो दिल्ली में क्यों नहीं होगा?
अपनी जगह ये बातें ठीक हैं। लेकिन अरविंद केजरीवाल भी ग्राउंड राजनीति में कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं। वे नहले पर दहला हैं।
बहुतों को पता नहीं होगा कि उन्होने आईपैक याकि प्रशांत किशोर के पुराने लोगों से भाजपा के वोट प्रबंधों पर नजर बना अपना प्रबंध किया हुआ है।(delhi election result)
पता नहीं यह नैरेटिव कितना गंभीर रहा मगर मैंने घरेलू कामवालियों से सुना है कि केजरीवाल के कारण उनके परिवार को महीने में दस-बारह हजार रुपए तक का फायदा है, वह दस वर्षों से है, तो उन पर भरोसा पुराना है।
उन्हें झुग्गी झोपड़ी टूटने की अब चिंता नहीं होती है तो वे झाड़ू को छोड़ कर क्यों कमल को वोट दें? केजरीवाल से बिजली, पानी, स्कूल, चिकित्सा, बस भाड़े (फ्री राशन है ही) का सालों से फायदा मिल रहा है तो वे तो उन्हें ही वोट देंगे।
चुनाव महाराष्ट्र व दिल्ली के अंदाज में
इसलिए केजरीवाल के कोर वोटों को काटने या लुभाने के लिए मोदी-शाह ने इस चुनाव में जमीनी तौर पर गजब माइक्रो राजनीति की होगी।
मगर केजरीवाल भूपिंदर सिंह हुड्डा, उद्धव ठाकरे और शरद पवार नहीं हैं। उनकी पार्टी ने हर बूथ की वोटर लिस्ट पर चुनाव पूर्व नजर बनाई।(delhi election result)
तभी उन्होंने वोटर लिस्ट में नए नाम जुड़ने या पुराने कटने का हल्ला बनाया। चुनाव आयोग को लगातार टारगेट बनाया।
मोदी-शाह ने इस चुनाव के लिए अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया आदि को जेल में डाल इनकी मूल इमेज को ध्वस्त करने की हर बड़ी-छोटी कोशिश की।
ताकि वे लोग उन्हें झूठा, बेईमान, ‘शीशमहल’ में रहने वाला मान छिटकें जो आप के स्थायी वोट थे। हिंदू राजनीति या कुंभ से अलौकिक दर्शनों से मोदी की भक्ति का प्रभाव भक्त वोटों को मोबिलाइज करने के लिए होता है।(delhi election result)
मतदान से ठीक पहले मतदान केंद्रों की ओर भक्तों को पहुंचाने का यह अब एक स्थायी नुस्खा है। असल बात केजरीवाल की इमेज को ‘शीशमहल’, तिहाड़ वाला बनाने से उनके वोट बिखरने और अधिक रेवड़ियों के वादों से नए लोगों को कमल की और रिझाने की है।
यदि यह रणनीति कामयाब हुई, एक तेजतर्रार सत्तावान (जैसे ममता बनर्जी) क्षत्रप केजरीवाल को भाजपा ने आज हरा दिया तो तय मानें मोदी-शाह के आगे के सभी चुनाव महाराष्ट्र व दिल्ली के अंदाज में ही होंगे।
अर्थात इसके बाद कांग्रेस, अखिलेश यादव, तेजस्वी आदि के लिए नई तरह की भाजपा बिसात में लड़ना बहुत मुश्किल होगा।(delhi election result)
वही यदि केजरीवाल जीतते हैं तो मेरा मानना है तब कांग्रेस सहित पूरे विपक्ष को उन्हें अपना प्रधानमंत्री चेहरा घोषित कर मोदी-शाह के सामने केजरीवाल को सीधे उतार देना चाहिए।