आखिरकार राहुल गांधी, सोनिया गांधी, सैम पित्रोदा और सुमन दुबे के खिलाफ नेशनल हेराल्ड मामले में ईड़ी ने अदालत में चार्जशीट दायर कर दी? सोचें, कितनी पूछताछ, कितने साल बाद यह किया? सवाल है इन्हें चार्जशीट से पहले जेल में क्यों नहीं डाला? जबकि हर मामले में ईडी ने ऐसा किया है? सरकार को डालना चाहिए सोनिया और राहुल को जेल में। ताकि सियासी पारा सौ डिग्री पहुंचे और इतिहास लिखा जाए कि मोतीलाल-जवाहरलाल की जेल यात्रा से सोनिया-राहुल की जेल यात्रा तक! एक थी अंग्रेज सरकार और एक थी मोदी सरकार!
स्वाभाविक था जो इस सप्ताह कांग्रेसजनों ने प्रदर्शन और विरोध किया। कांग्रेसियों को भी समझ नहीं आ रहा होगा कि जब चुनाव दूर है, ‘इंडिया’ ब्लॉक बिखरा हुआ है तो ऐसा क्या जो सोनिया और राहुल गांधी को सियासी कड़ाव में उबालना?
लगता है राहुल गांधी ने यह कह कर डरा दिया कि दिल्ली की सत्ता गुजरात जीत कर ही मिलेगी! जरा कल्पना करें कि गुजरात के अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस व आप समझदारी से चुनाव लड़ें और भाजपा के हारने का खतरा बने तो नरेंद्र मोदी, अमित शाह क्या करेंगे? क्या वे सब कुछ दांव पर नहीं लगाएंगे? गुजरात में हालात इसलिए खराब हैं क्योंकि प्रदेश में नरेंद्र मोदी के बाद प्रशासन संभाले रखने वाले कैलाशनाथन उम्र के तकाजे में पुडुचेरी के उप राज्यपाल बन गए। ध्यान रहे प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव पीके मिश्रा और कैलाशनाथन वे दो अफसर हैं, जिन पर गुजरात में नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री बनने के बाद से निर्भर रहे हैं।
गुजरात में असंतोष और राजनीतिक गर्मी: मोदी का नुस्खा
प्रधानमंत्री ने हाल में गुजरात में कुछ दिन गुजारे थे। दिखावे के कार्यक्रमों के अलावा उनका सरोकार गुजरात के हालातों को समझना, सुधरवाने का था। गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल वैसे ही निराकार हैं, जैसे भाजपा में नए बनते मुख्यमंत्री हैं। सब कुछ प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की छत्रछाया में। अकेले योगी आदित्यनाथ हैं जो अपने हिसाब से चल रहे हैं। और उनके कारण यूपी में वोट है। गुजरात की धड़कन व्यापार-कामधंधे हैं। लेकिन डायमंड, कपड़ा, दवा उद्योग से ले कर लघु और मझोले कामधंधों में जैसी दशा देश में है उससे अधिक बुरी मार में गुजरात के कामधंधे हैं।
बेरोजगारी अलग से भारी है। व्यापार और पैसे की माया से संस्कारित गुजराती घर-परिवारों में इन दिनों हर तरह से (शेयर बाजार की उथलपुथल भी अब भारी होगी) बुरे समय का लाइव अनुभव है। समझ सकते हैं ऐसे में राजनीतिक असंतोष भी बढ़ रहा होगा।
तभी राहुल गांधी ने पहले गुजरात में कांग्रेस अधिवेशन किया। फिर बड़ी-बड़ी बातें कीं और गुजरात के अगले चुनाव में करो-मरो के अंदाज में चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं तो नरेंद्र मोदी अपनी जमीन पर क्या करेंगे? सोनिया-राहुल परिवार की वैसे ही हवा बिगाड़ो जैसे केजरीवाल की बिगाड़ी गई? पर तब सोनिया व राहुल को जेल में क्यों नहीं डाला?
कुल मिलाकर जैसे भी हो, राजनीतिक पारा बढ़ाना है। यही शासन शैली है, यही एकमेव राजनीतिक नुस्खा है। कोई फर्क नहीं पड़ता यदि मुसलमान डायरेक्ट एक्शन में भी उतर जाए, बस हिंदुओं का धुव्रीकरण ठोस बना रहे। इस सप्ताह बंगाल में रोते, मरते, बेघर होते हिंदुओं के जैसे-जितने वीडियो सोशल मीडिया पर चले हैं वह बानगी है कि स्थिर सरकार, बेखटके की सत्ता के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी दिन-रात चिंता में हैं। इसलिए गुजरात से असम, बंगाल, बिहार फिर उत्तर प्रदेश सभी को उबाले रखना है ताकि हिंदू भी लगातार गर्मी खाते हुए वोट कमल को ही दें।
और दूसरा कोई तरीका, नुस्खा नहीं है, जिससे आत्मविश्वास के साथ चुनाव लड़ा जा सके। मेरा मानना है कि गुजरात के हालातों ने योगी आदित्यनाथ को सौ टका स्थायी बना दिया है। सवाल ही नहीं उठता कि योगी को दिल्ली लाया जाए। गुजरात में जितनी गड़बड़ व संकट समझ आएगा उतना ही योगी आदित्यनाथ की आवश्यकता बनते हुए होगी!
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