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मुनीर है ट्रंप, शी के खास और मोदीजी?

हिसाब से भारतीय सेना, भारत के हर देशभक्त को चीन की सैन्य परेड से जाहिर ताकत पर सोचना चाहिए। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने तीन सितंबर को बीजिंग की परेड से न केवल अमेरिका के आगे, उसकी बराबरी की सैन्य ताकत का प्रदर्शन किया, बल्कि बगल में पुतिन, किम जोंग उन तथा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, उनके आर्मी चीफ मुनीर सहित दक्षिण एशिया के उन देशों के प्रमुखों को बैठा कर बताया कि भारत अब क्या हैं! मालदीव, नेपाल से लेकर म्यांमार के सैनिक राष्ट्रपति सहित कोई बीस देशों के नेता शी जिनपिंग की बारात के खास मेहमान थे। गनीमत जो भारत के प्रधानमंत्री मोदी बारात में शामिल नहीं हुए। वे एक दिन पहले एससीओ की बैठक से शगुन दे कर लौट आए। आखिर वे कैसे उन जनरल मुनीर के साथ चीनी महाशक्ति के पूछल्ले का फोटो ऑप देते जहां ले देकर वे बारात में बिना बुलाए एक पड़ोसी की तरह कोने में खड़े दिखते।

एससीओ की बैठक में मोदी के जाने का मूल मकसद ट्रंप की दादागिरी के आगे शी जिनपिंग और पुतिन के साथ फोटो खिंचवाने का था। ताकि भारत में लोगों को विदेश नीति में भी हरियाली की झांकी दिखे। वह काम हुआ तो प्रधानमंत्री का काफिला लौट आया। पर चीन के अंतरराष्ट्रीय जलवे का असल वैश्विक नजारा तीन सितंबर की परेड़ थी। इससे भारत की हैसियत का भी खुलासा था। पाकिस्तान के पर्याय हुए जनरल मुनीर जहां पुतिन से वार्ता करते हुए थे तो शी जिनपिंग से भी मंत्रणा। सोचें भला कैसे ट्रंप ने भी अपनी सैन्य परेड में जनरल मुनीर को खास मेहमान बना कर बैठाया, उन्हे व्हाइट हाऊस में लंच कराया तो शी जिनपिंग ने भी सैन्य परेड में मुनीर को बैठाया।

बहरहाल  विश्व व्यवस्था और विश्व राजधानियों में चीन अब अमेरिका के बराबर की क्षमता वाली हैसियत में है। उसने हाल में भारत से लड़ाई (ऑपरेशन सिंदूर) में पाकिस्तान को सक्रियता से सैन्य मदद की तो जनरल मुनीर का जलवा भी बढ़ाया। वह पाकिस्तान की आर्थिकी में अलग मददगार है। उधर अमेरिका के संग पाकिस्तान का खुफियाई नाता फिर से बढ़ता हुआ है। खाड़ी के देश भी उसके आर्थिक मददगार हैं। भारत का ले दे कर रूस से धंधा पटा हुआ है। लेकिन बीजिंग में पुतिन की भाव भंगिमा यह साफ बतलाते हुए थी कि वह भले भारत को हथियार बेचे, भले मोदी को अपनी कार में घूमाएं लेकिन पुतिन का दिल अब चीन, उत्तर कोरिया से बंध गया है। वे शी जिनपिंग के बंधुआ हैं।

सो, चीन अपनी धुरी में रूस-उत्तर कोरिया-ईरान को बांध अमेरिका और पश्चिमी सभ्यता से अलग दुनिया रचने की चौसर बिछा चुका है। वही भारत महज तमाशबीन है। अर्थात विश्व राजनीति का मौजूदा वक्त भविष्य की ताकत का फैसला करता हुआ है मगर भारत के प्रधानमंत्री की रीति-नीति केवल और केवल भारत के लोगों को उल्लू बनाने के हरे-भरे फोटो–ऑप कराने भर की है।

याद करें, ग्यारह साल पहले मोदी ने शी जिनपिंग के साथ साबरमती के किनारे जब झूला झूला था तब भारत की उभरती इकोनॉमी का डंका ओबामा के कानों में गूंजता था। चीन ने डॉ. मनमोहन सिंह की कमान के भरोसे में ब्रिक्स बनाया था। भारत का जापान, आसियान से ले कर यूरोप में सम्मान था। चीन तब बराबर सा था। पाकिस्तान का महत्व घटता हुआ था।

अब आज क्या स्थिति है? भारत और उसके प्रधानमंत्री चौबीसों घंटे यह दिखलाने में जुटे हैं कि देखों ऑपरेशन सिंदूर की हमारी शूरवीरता को! या ट्रंप के साथ हमारी दोस्ती को… नहीं, नही पुतिन, शी जिनपिंग के साथ मोदीजी का फोटो देखो। देखो, हमारा झंडा लहरा रहा। देखो मोदीजी का वैश्विक कद और बढ़ा। देखो, हरियाली से कैसे भरी हुई है भारत की विदेश नीति!

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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