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कर्नाटक में मतदान बढ़ने का मतलब

आमतौर पर राजनीति में माना जाता है कि मतदान तभी बढ़ेगा, जब बहुत अच्छी लड़ाई हो या कोई बहुत अच्छा मुद्दा हो। इस बार देश के चुनाव में न तो बहुत अच्छी लड़ाई दिख रही है और न कोई बहुत बड़ा मुद्दा दिख रहा है। यही कारण है कि पूरे देश में लोकसभा की 283 सीटों पर मतदान के बाद भी मत प्रतिशत पिछली बार से कम दिख रहा है। तमाम पार्टियों के प्रयासों के बावजूद मतदान प्रतिशत में इजाफा नहीं हो रहा है। पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों को छोड़ दें तो हर जगह औसत मतदान हो रहा है। ज्यादातर जगहों पर पिछली बार यानी 2019 के चुनाव से कम वोट पड़ रहे हैं। ऐसे में तीसरे चरण में कर्नाटक की बची हुई 14 सीटों पर मत प्रतिशत में इजाफा होना एक बड़ा संकेत है। महाराष्ट्र के साथ साथ कर्नाटक एक ऐसा राज्य है, जहां अच्छा मुकाबला है।

कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद लापरवाही नहीं बरती। उसकी सरकार ने गारंटियों को लागू किया। लोकसभा चुनाव के लिहाज से ही उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार को प्रदेश अध्यक्ष बनाए रखा गया। ऊपर से कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी कर्नाटक के हैं। सो, एक तरफ कांग्रेस की अच्छी लड़ाई की तैयारी है तो दूसरी ओर भाजपा ने जेडीएस के साथ तालमेल किया, जिससे लिंगायत और वोक्कालिगा वोट एक साथ आए। हालांकि इसका असर पहले 14 सीटों पर नहीं दिखा। लेकिन बची हुई 14 सीटों पर मतदान प्रतिशत में इजाफा हुआ और सात मई को हुए मतदान में करीब 71 फीसदी लोगों ने वोट डाले। यानी 2019 के मुकाबले दो फीसदी इजाफा हुआ।

एचडी देवगौडा के बेटे और पोते का सैक्स स्कैंडल सामने आने के बाद यह मतदान हुआ और मत प्रतिशत बढ़ा तो संभव है कि इसके पीछे लोगों की नाराजगी हो। सात मई को जिन 14 सीटों पर मतदान हुआ उसमें पूर्व मुख्यमंत्री एचडी देवगौड़ा के बेटे बीवाई राघवेंद्र की शिवमोगा सीट भी है, जहां से भाजपा के दिग्गज नेता केएस ईश्वरप्पा बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। वे शिवमोगा के साथ साथ हावेरी सीट पर भी असर डाल सकते हैं, जहां से वे अपने बेटे के लिए टिकट चाहते थे। उत्तरी कर्नाटक के इलाके में सात मई को मतदान हुआ, जहां लिंगायत वोट की बहुतायत है और भाजपा को बहुत बढ़त है। उसने पिछली बार सभी 14 सीटें जीती थीं। इससे पहले 2014 में उसे 11 और 2009 में 12 सीटें मिली थीं। यानी जब वह बहुत मजबूत नहीं थी तब भी इस इलाके में उसका दबदबा था।

इस बार उत्तरी कर्नाटक के दो इलाकों मुंबई कर्नाटक और हैदराबाद कर्नाटक में कांग्रेस ने अच्छी घेराबंदी की। हैदराबाद कर्नाटक का इलाका मुस्लिम और दलित बहुतायत है, जिसमें मल्लिकार्जुन खड़गे की गुलबर्गा सीट भी आती है। वे पिछली बार इस सीट से हार गए थे। उन्होंने लोगों से उनके हार का बदला लेने की अपील की है। इस सीट से उनके दामाद राधाकृष्ण डोडामनी चुनाव लड़े हैं। अगर दलित और मुस्लिम वोट एक साथ एकमुश्त पड़ा होगा तो गुलबर्गा सहित कई क्षेत्रों में भाजपा की मुश्किल बढ़ जाएगी।

इसी तरह मुंबई कर्नाटक के इलाके में बेलगावी सीट को डीके शिव कुमार ने अपनी प्रतिष्ठा की सीट बनाया है क्योंकि उनके करीबी मंत्री लक्ष्मी हेब्बालकर के बेटे इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। इसके बगल की सीट चिकोडी है, जहां से एक दूसरे मंत्री सतीश जरकिहोली की बेटी को कांग्रेस ने टिकट दी है। इस इलाके में जरकिहोली परिवार का बड़ा असर है। चार भाइयों में से दो भाजपा के विधायक हैं, एक निर्दलीय एमएलसी हैं और एक सतीश कांग्रेस के विधायक हैं। शिवकुमार ने सतीश जरकिहोली को बेलगावी और चिकोडी सीट का जिम्मा दिया है। ध्यान रहे इस बार चिकोडी सीट पर सबसे ज्यादा 77 फीसदी मतदान हुआ है। इसमें जरकिहोली का जादू दिखता है। बहरहाल, तीसरे चरण में सभी 14 सीटों पर भाजपा और कांग्रेस में सीधा मुकाबला था। इसमें जेडीएस की कोई भी सीट नहीं थी। उसकी सभी सीटों पर दूसरे चरण में मतदान हो गया था। आमने सामने के चुनाव में कांग्रेस ने सभी 14 सीटों पर कड़ी टक्कर दी है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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