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भारत के लिए खतरा बड़ा होगा

नेपाल की घटना के बाद जो लोग इसे अमेरिका की साजिश बता कर भारत को आगाह कर रहे हैं या बांग्लादेश की घटना का हवाला देकर भारत को आगाह कर रहे हैं क्या उनको पता है कि यदि बांग्लादेश या नेपाल की जैसी घटना भारत में हुई तो वह कितनी भयावह होगी? उनको अगर अंदाजा होता तो इतनी गैर जिम्मेदारी की बातें  नहीं की जातीं। साजिश थ्योरी का प्रचार करने वाले समूचे विपक्ष को देशद्रोही और विदेशी ताकतों के हाथ में खेलने वाला बता रहे हैं। वे कह रहे हैं और बहुत से लोग इसे मान भी रहे हैं कि भारत का विपक्ष देश विरोधी ताकतों से मिला हुआ है और सब मिल कर देश के खिलाफ साजिश कर रहे हैं।

उनको सोचना चाहिए कि भारत बांग्लादेश या नेपाल जैसा देश नहीं है। भारत एक विशाल देश है, जिसकी आबादी 140 करोड़ और जहां दुनिया के सभी धर्मों और सभी फिरकों के लोग रहते हैं। यहां जितनी विविधता भूगोल की है उससे ज्यादा विविधता सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक स्तर पर है। भाषा के स्तर पर राज्य बने हैं और वह उनकी अस्मिता का हिस्सा है। एक भाषा थोपने की कोशिश उन्हें नाराज करती है और उनमें अलगाव बढ़ाती है। इतनी धार्मिक, सामाजिक, भाषायी, भौगोलिक, आर्थिक विविधता के बावजूद यहां एकता है तो उसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कारण हैं। सदियों की इस एकता को सोशल मीडिया के नैरेटिव के जरिए नहीं  खत्म किया जा सकता है। लेकिन अगर लोगों की आवाज नहीं सुनी गई, लोगों की मुश्किलों को नहीं समझा गया, लोगों के गुस्से के नहीं महसूस किया जा गया तो समस्या पैदा हो सकती है। अगर लोगों के गुस्से के प्रकटीकरण को साजिश मान कर उसे सोशल मीडिया में काउंटर नैरेटिव के जरिए एड्रेस करने की कोशिश हुई तो भयावह बुद्धीहीनता बनेगी। भस्मासुरी समस्या पैदा होगी।

भारत में बढ़ती आर्थिक असमानता कोई सोशल मीडिया का क्रिएशन नहीं है, बल्कि वास्तविकता है। भारत में क्रोनी कैपिटलिज्म की बात को सोशल मीडिया ने नहीं बनाया है, बल्कि वह हकीकत है। राजनीति में वंशवाद की मौजूदगी सिर्फ सोशल मीडिया नहीं दिखा रहा है, बल्कि लोग इसे अपने आसपास देख रहे हैं। देश की संस्थाओं पर नियंत्रण की कोशिशें भी लोगों को दिख रही हैं। मीडिया का पूर्वाग्रह भी लोग देख, सुन और समझ रहे हैं। अगर इस हकीकत को समझने के बाद लोग इस पर अपनी भावना अभिव्यक्त करते हैं या अपनी नाराजगी जताते हैं तो उन्हें सेफ्टी वॉल्व की तरह देखना चाहिए। उनके गुस्से को निकलने देना चाहिए। उसको किसी साजिश का हिस्सा बताना उनके गुस्से को और बढ़ाएगा, जिसका नुकसान अक्लपनीय हो सकता है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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