राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

कांग्रेस पार्टी अब क्या करेगी?

यह लाख टके का सवाल है कि कांग्रेस पार्टी अब क्या करेगी? कांग्रेस को सिर्फ चार सीटें मिली हैं। हालांकि उसे साढ़े आठ फीसदी के करीब वोट मिले हैं लेकिन क्या इतना वोट और इतनी कम सीटें बिहार में उसके स्वतंत्र रूप से राजनीति करने के लिए पर्याप्त है? यह सवाल इसलिए है क्योंकि कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी लगातार बिहार में अकेले और स्वतंत्र राजनीति करने की तैयारी में दिख रहे थे। यही कारण है कि गठबंधन में बहुत खटपट हुई। इस साल के शुरू से जितने बार राहुल गांधी बिहार गए हर बार उन्होंने राजद से दूरी रखी। तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित करने का फैसला कांग्रेस ने आखिरी समय तक लंबित रखा। इससे जो अविश्वास बना उसका नतीजा यह हुआ कि महागठबंधन की पार्टियां एक दर्जन से सीटों पर एक दूसरे के खिलाफ लड़ीं।

बिहार में इस साजिश थ्योरी की बहुत चर्चा पूरे चुनाव में होती रही कि राहुल गांधी क्षेत्रीय पार्टियों से मुक्ति चाहते हैं और इसलिए उन्होंने बिहार में राजद को नुकसान पहुंचाने की राजनीति की है। इस साजिश थ्योरी की भी चर्चा रही कि कांग्रेस ने जान बूझकर लेफ्ट को खत्म करने वाली राजनीति की। इस राजनीति के तहत ही कांग्रेस ने बिहार का लेनिनग्राद कहे जाने वाले बेगूसराय में बछवाड़ा की सीट पर सीपीआई के सामने अपना उम्मीदवार उतारा। वहां सीपीआई के अवधेश राय पिछली बार सिर्फ तीन सौ वोट से हारे थे। इस बार वहां कांग्रेस ने अपने पुराने नेता रामदेव राय के बेटे शिव प्रकाश गरीबदास को उतार दिया और प्रियंका गांधी वाड्रा उनके प्रचार में गईं। कांग्रेस की इस राजनीति के जवाब में सीपीआई ने कांग्रेस की तीन सीटों पर अपने उम्मीदवार दिए।

उधर राजद के नेता भी कांग्रेस की राजनीति को भांप रहे थे। इसलिए तेजस्वी यादव ने भी दूरी बनाई। राहुल और प्रियंका की रैलियां अलग हुईं और तेजस्वी ने अपनी रैलियां अलग कीं। दोनों का प्रचार भी अलग अलग चला। कांग्रेस पिछली बार की 70 सीट के मुकाबले सिर्फ 61 सीटों पर लड़ी और उसमें भी 10 सीटों पर फ्रेंडली फाइट हुई। कांग्रेस को पिछली बार की तरह इस बार भी 30 के करीब ऐसी सीटें मिलीं, जो पारंपरिक रूप से महागठबंधन के लिए कमजोर मानी जाती हैं। सो, गठबंधन के कंफ्यूजन, सीट बंटवारे में राजद और लेफ्ट से टकराव, एक दर्जन सीटों पर दोस्ताना मुकाबले और अलग अलग प्रचार के कारण कांग्रेस तो डूबी ही उसके साथ साथ राजद, लेफ्ट और वीआईपी भी डूब गए। तभी यह सवाल है कि अब कांग्रेस क्या करेगी और महागठबंधन का क्या भविष्य होगा? तेजस्वी यादव के नेतृत्व को लेकर भी सवाल है।

Tags :

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *