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28-06-2025 Vol 19

हे भारत मां, हम इतने कायर, डरपोक और झूठे क्यों?

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हे मां! मेरा शनिवार शाम तब खून खौल उठा जब वैश्विक मीडिया में पाकिस्तानियों के जश्न मनाते वीडियो, फोटो दिखे! पाकिस्तानियों को अपनी सेना और जनरल मुनीर का जयकारा लगाते देखा! उसे यह बताते हुए सुना कि सऊदी अरब, कतर, ईरान और अमेरिका ने सीजफायर कराया।

फिर अचानक दो घंटे बाद मालूम हुआ कि कश्मीर से लेकर कच्छ तक वापिस पाकिस्तानी ड्रोन, मिसाइल के धमाके हैं। आकाश में वह लाइव नजारा चल ही रहा था कि तभी भारत के प्रोपेगेंडा याकि झूठ की मशीनरी, रक्षा, विदेश मंत्रालय का कथित मैनेजमेंट हम भारतीयों को बहकाने के लिए यह ब्रेकिंग न्यूज देते हुए था कि श्रीनगर में धमाके नहीं हो रहे हैं या संभव है यह पाकिस्तान की सेना के मवाली कमांडरों की करतूत हो!

हे मां! क्या आपने 72 घंटों में जो देखा, बूझा तो आपको नहीं लगा कि धरती फटे और उसमें समा जाएं! कितनी नालायक, झूठी और भयाकुल है आज हम आपकी संतानें! कल तक हम हुंकारा मार रहे थे कि हम हमारी भूमि (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर) पर फिर तिरंगा फहराएंगे! कल तक हम अंग्रेजी में बोल कर दुनिया के आगे कसम खा रहे थे कि आतंकियों को और इस हमले की साजिश रचने वालों को उनकी कल्पना से भी बड़ी सजा मिलेगी! तथा अब आ गया है आतंकियों की बची खुची जमीन को भी मिट्टी में मिलाने का समय! हम उनका धरती की छोर तक पीछा करेंगे।

हम बदला ले कर रहेंगे। आतंक को मिटा कर रहेंगे! और हुआ क्या? पहलगाम पर आतंकी हमले के 14 दिन बाद रात के अंधेरे में हमारा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ हुआ नहीं कि हमने घोषित कर दिया कि हमारा “नपा तुला, जिम्मेदार और गैर उकसाऊ” आपरेशन पूरा हुआ। उसी के साथ झूठ के प्रोपेगेंडा की यह बाढ़ आ गई कि पाकिस्तान अब सिर नहीं उठा सकेगा! पाकिस्तान थर थर कांप रहा है! वह रहम की भीख मांग रहा है! उसका सेना प्रमुख मुनीर छुप गया है, वह भाग गया है! और देखो हमारे प्रधानमंत्री की छप्पन इंच की छाती को! यह छाती हनुमान की है। इसके बीच की झांकी में पाकिस्तान थर थर कांप रहा है!

हे मां! हम कितने छिछले, छिछोरे और झूठे हो गए हैं! क्या आप का कलेजा अपनी 145 करोड़ संतानों के झूठे प्रलापों से फट नहीं जा रहा? क्या आप चौबीस घंटे झूठी नौटंकियों वाले नेताओं को, उनके कैबिनेट को, उनके रणनीतिकारों में इतनी भी बुद्धि नहीं दे सकतीं कि पाकिस्तान से बदला रात के अंधेरे में नहीं, हवा हवाई हमलों से नहीं, बल्कि सेना को उसकी छाती पर, टैंकों से रौंद कर, उसके टुकड़े करके (जैसे आपके सपूत लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी ने कभी किया था।) देंगे तभी वह सदमे में अपनी टेड़ी दुम को कुछ साल दबाए बैठेगा!

हे मां! क्या भारत के लिए ‘आतंकियों की बची खुची जमीन को भी मिट्टी में मिलाने का समय’ आज वस्तुतः नहीं है? क्या आईएसआई की पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की जमीन पर आतंकी खेत को कब्जाने का यह शुभ वक्त नहीं था? एक ऐसा वक्त जब दुनिया की कोई महाशक्ति पाकिस्तान के बचाव में नहीं थी। अमेरिकी राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति ने दो टूक कहा था हमें इस लड़ाई से लेना देना नहीं है।

यह इनकी दशकों, सदियों पुरानी लड़ाई है! अमेरिका सचमुच दूर खड़ा था। रूस अपनी जंग में उलझा हुआ था। ब्रिटेन, यूरोप अपनी चिंता में थे तो ट्रेड वॉर, भारत के बाजार के लालच में चीन भी अटका हुआ था। चीन की सीमा पर शांति थी तो आतंक के खिलाफ 2023 से इजराइल के चल रहे निर्मम ऑपरेशन से दुनिया का बच्चा, बच्चा आतंक से घायल भारत की पीड़ा को समझता था। और उससे इजराइल जैसी बहादुरी की उम्मीद भले न करे मगर उसकी निंदा या प्रतिकार के मूड में कोई नहीं था।

हे मां! मगर मेरी नींद उड़ गई जब मैंने जाना कि पाकिस्तान के ऑपरेशन ‘बुनयान उल मरसूस’ के बाद भारत के प्रधानमंत्री व अजित डोवाल, एस जयशंकर आदि एक सी घबराहट में अमेरिका के राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति वेंस, अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो को फोन कर रहे थे जो कुछ घंटे पहले तक तटस्थ थे।

इतना ही नहीं दो टके के सऊदी अरब के एक उप मंत्री फैजल बिन फरहान और दुनिया के अछूत ईरान के विदेश मंत्री के आगे भी विनती (कथित कूटनीति) करते हुए थे कि पाकिस्तान को समझाओ, लड़ाई नहीं बढ़ाए। वह एस्केलेट कर रहा है! जबकि हम, हमारी सेना “नपी-तुली, जिम्मेदार और गैर उकसाऊ” कार्रवाई से आगे नहीं बढ़ रहे हैं! उसे सीजफायर के लिए तैयार करो। हम लड़ना नहीं चाहते, और लड़ाई रूकवाओ!

हे मां! क्या आप शर्मसार नहीं हुईं? उफ! ट्रंप ने सचमुच मानो रहम करते हुए अपने विदेश मंत्री मार्को रुबियो को सीधे पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल असिम मुनीर से बात करने को कहा। और उसने मुनीर को मनाया जो जिसने पहलगाम में नरसंहार उकसाने की भूमिका बनाई थी। उसकी सीजफायर की खुशामद की गई। तभी राष्ट्रपति ट्रंप ने खुद कैमरे के आगे दुनिया से कहा, मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि अमेरिका की मध्यस्थता में एक लंबी रात तक चली बातचीत के बाद, भारत और पाकिस्तान युद्धविराम पर सहमत हो गए हैं।

भारत के सीजफायर पर सवाल और झूठ का प्रचार

इसके बाद इन पंक्तियों को लिखते समय रविवार की सुबह ट्रंप की यह नई पोस्ट मेरे सामने है कि दोनों देशों के साथ काम करते हुए वे ‘हजार साल’ पुरानी कश्मीर समस्या का समाधान निकालेंगे! वही विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने पहले ही दो टूक कह रखा है कि भारत और पाकिस्तान किसी तटस्थ स्थान पर तमाम मुद्दों पर बात के लिए सहमत हो गए हैं। (to start talks on a broad set of issues at a neutral site.)

हे मां! यह क्या?  क्या यह अधमरे, आईसीयू में लेटे कंगले पाकिस्तान में नई जान डालना नहीं है? कश्मीर में वापिस आंतकियों का हौसला बनवाना नहीं है? क्या शिमला समझौते की उस पाबंदी से पाकिस्तान को आजाद कराना नहीं है कि कश्मीर का मुद्दा केवल दो देशों के बीच का एक दोपक्षीय विवाद है। किसी तीसरे पक्ष या देश का कोई लेना देना है? तीसरे किसी की कोई भूमिका, पंचायत नहीं होगी! क्या 72 घंटों में मोदी सरकार ने कश्मीर के मुद्दे को वापिस अंतरराष्ट्रीय मसले के रूप में जिंदा नहीं कर दिया?

क्या जनरल मुनीर रातों रात में वैश्विक पॉवरफुल हस्ती नहीं हो गया? और क्या भारत सचमुच अमेरिका की चौधराहट, उसके दबाव में किसी तीसरी जगह पाकिस्तान से बात कर अपनी घोषणाओं, अपने निर्णयों को वापिस लेगा? क्या भारत सिंधु जल संधि के पानी को रोकने या तमाम तरह के दिखलाऊ फैसलों पर पाकिस्तान से बिना किसी लिखित वादे के पीछे हट जाएगा? तब भारत की महाशक्ति या नैतिक आत्मबल, एटमी ताकत की महिमा कितनी और क्या बचेगी?

हे मां! भारत का गौरव, आपकी महिमा तब बनी थी जब आपकी संतानों लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी, एपीजे अब्दुल कलाम ने आपके हाथों में एटमी हथियारों, मिसाइलों के त्रिशूल से आपकी शक्ति अर्चना की। लेकिन हतभाग्य आज के भारत का, जो एटमी त्रिशूल अब उलटे कौम के खौफ, सौदे और धंधे में अनुपयोगी व फूंके कारतूस हो गए हैं। हमारी यह शाश्वत लोकोक्ति फिर प्रमाणित है कि “डरपोक के हाथ में शस्त्र, शस्त्र नहीं, बल्कि बोझ होता है”। तलवार हाथ में होते हुए भी वार के लिए नहीं उठती!

हे मां! हम तीन दिन थर थर कांपते रहे तो उस दशा में भी सरकार ने अपनी प्रजा को क्या परोसा? उसे झूठी हेडलाइन, झूठे नैरेटिव और आखिर में 48 घंटों के लाइव पाकिस्तानी मिसाइल हमलों का वह आकाशीय नजारा दिया, जिसने सबको ऐसा भयाकुल बना दिया कि पूरी कौम की बुद्धि पर पाला पड़ा। भारत मां की महाशक्ति चौबीस घंटे ट्रंप, वेंस के आगे गिड़गिड़ाते, सऊदी अरब, ईरान, कतर जैसे दो टके के देशों को भी पंच बनाने के लिए तब मरी जा रही थी!

हे मां! मैं ब्राह्मण हूं। मैं अपनी वंशजता में दिव्य शक्ति, बुद्धि के विराट परशुराम की सत्य, निर्भयता की ओजस्विता के बोध में भारत की प्रतिष्ठा के इस तरह मिट्टी में मिलने से बुरी तरह शर्मसार हूं। समझ नहीं आता कि जिन ब्राह्मणों ने सदियों की गुलामी के बावजूद अपने धर्म, नस्ल को साबुत बचाए रखा, उसी के वंशज आज प्रधानमंत्री दफ्तर, सरकार की प्रोपेगेंडा मशीनरी या इसके पितृ संगठन व मीडिया कार्यालयों में बैठे चेहरों याकि मिश्राओं, जोशियों, मालवीयों, शुक्लाओं, भागवतों, दत्तात्रेयों आदि का यह कैसा इक्कीसवीं सदी पतन है जो ये पूरी कौम में झूठ और कायरता के संस्कार पैठाने का ठेका लिए हुए हैं!

क्या हो गया है बामनों के इन दिमाग को? छह-सात मई से 10-11 मई 2025 की रात तक इन्होंने भारत की टीवी चैनलों, सोशल मीडिया, अखबारों में झूठ का ऐसा भयावह दलदल बनाया कि वैश्विक पैमाने के मीडिया, विश्व राजधानियों के सत्ता प्रतिष्ठानों में भारत का रत्ती भर मान नहीं बचा। सोचें, कतर, तुर्की, ईरान जैसे देशों के आगे गिड़गिड़ाते हुए और वही देश में यह झूठ की हमारे आगे जनरल मुनीर थर थर कांप रहा है!

दुनिया भर को भारत की याकि नरेंद्र मोदी, अजित डोवाल, जयशंकर आदि चेहरों की यह असलियत क्या जगजाहिर नहीं है कि ये कैसे लड़ाई रूकवाने, पाकिस्तान को मनाने के लिए मरे जा रहे थे? और नोट रखें, ट्रंप कीमत वसूलेगा। भारत से वह भारत को धंधे में मारने वाली व्यापार संधि पर दस्तखत करवाएगा!

हे मां! क्यों आप अपनी 145 करोड़ संतानों को झूठ के कुएं के इकोसिस्टम में गला दे रही हैं, सड़ा दे रही हैं। ऊपर से नीचे तक सब डरे, कायर और सौदेबाद, धोखेबाज हो गए हैं। देश की बुद्धि, दिमाग ने सवाल और सत्य को ताक पर रख दिया है। देश और नस्ल को भला ऐसा क्या दीमक लगा जो इतने कायर हुए कि ‘आपरेशन सिंदूर’ के बाद हम अपने कुएं से हर बात, हर वक्तव्य में अपनी कार्रवाई को “नपी तुली, जिम्मेदार और गैर उकसाऊ” बतलाते हुए थे। (“Pakistan’s actions constituted provocation, escalation. In response, India defended and reacted in a responsible and measured fashion.”)

हे भारत मां, हे भगवती! देश को सत्यमार्ग पर लौटाएं। मुझे शक्ति दें ताकि मैं गुस्साऊं, सत्य लिखूं, बुद्धि और सवाल को दौड़ाता रहूं। सतत यह साधे रहूं कि जो झूठ है, जिससे भारत मां आभाहीन बन रही हैं, पूरी कौम को भयाकुलता, और मूर्खताओं की भक्ति में धकेल दे रहे हैं वह मेरे साथ न हो। मेरी कलम मिसाइल से नहीं मरे! मैं मनसा, वाचा, कर्मणा ब्राह्मण बना रहूं!

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Pic Credit: ANI

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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