पिछले कुछ समय से न्यायपालिका में भ्रष्टाचार की चर्चा जोर पकड़े हुए है। जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से कथित तौर पर करोड़ों की नकदी पकड़े जाने के बाद से इस पर बहस हो रही है। उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और कई अन्य लोगों ने जस्टिस वर्मा मामले में एफआईआर दर्ज नहीं किए जाने को दोहरा रवैया बता कर इस पर सवाल उठाए। सोशल मीडिया में भी कहा गया कि अगर किसी दूसरे व्यक्ति के घर नकदी मिलती तो उसके घर ईडी पहुंच जाती।
तभी सवाल है कि क्या न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के मसले पर परदा डाला जाता है और आरोप लगने के बाद सजा के तौर पर सिर्फ इतना होता है कि संबंधित जज का तबादला कर दिया जाता है?
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न्यायपालिका में जजों पर आरोप और तबादले की नीति
पिछले दिनों दिल्ली में ऐसा ही एक केस आया है। दिल्ली की राउज एवेन्यू अदालत में सीबीआई के एक विशेष जज का तबादला किया गया है। कहा जा रहा है कि जीएसटी की चोरी के चार आरोपियों को जमानत देने के लिए करीब चार करोड़ रुपए की रिश्वत मांगी गई थी। इस मामले में संबंधित जज के ऊपर सीधे कोई कार्रवाई नहीं हुई है लेकिन दिल्ली पुलिस ने कोर्ट के अहलमद यानी कर्मचारी और एक चार्टर्ड अकाउंटेंट के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है।
बताया जा रहा है कि पुलिस ने संबंधित जज के खिलाफ मुकदमा दायर करने की अनुमति मांगी थी लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने सबूतों की कमी बता कर अनुमति नहीं दी। हाई कोर्ट की ओर से कहा गया कि और पुख्ता सबूत होंगे तभी एफआईआर की अनुमति दी जाएगी। उसके बाद संबंधित जज का तबादला कर दिया गया। एक वकील ने पहली बार इसकी शिकायत दिल्ली पुलिस के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो यानी एसीबी से की थी।