जिस तरह बड़ी मेहनत करने के बाद आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल को निराशा हाथ लगी है उसी तरह बिहार में राष्ट्रीय जनता दल को भी निराशा मिली है। तेजस्वी यादव ने प्रचार में बड़ी मेहनत की थी और रीढ़ की हड्डी में समस्या और कमर दर्द के बावजूद वे लगातार प्रचार करते रहे थे। लेकिन इसका फायदा उनकी पार्टी को नहीं मिला है। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल सिर्फ चार सीटों पर सिमट गई है। हालांकि पिछली बार उनकी पार्टी का खाता नहीं खुला था और उस लिहाज से कह सकते हैं कि चार सीटों का फायदा हुई है। लगातार दो बार से हार रही उनकी बहन मीसा भारती पाटलीपुत्र सीट से चुनाव जीत गई हैं। लेकिन उनकी पार्टी इससे बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर रही थी। गठबंधन में सबसे ज्यादा फायदा सीपीआई माले को हुई। 1989 के बाद पहली बार उसके सांसद चुने गए हैं। कांग्रेस भी एक से दो सीट पर पहुंच गई है।
अब सवाल है कि गठबंधन का फायदा राजद को क्यों नहीं हुआ? इसका एक कारण जो सबसे स्पष्ट दिख रहा है वह ये है कि तेजस्वी यादव ने उत्तर प्रदेश के अखिलेश यादव से सबक नहीं लिया। उन्होंने बिहार की 40 में से 11 सीटों पर यादव उम्मीदवार उतार दिए। दूसरी ओर अखिलेश यादव ने अपने कोटे की 62 में से सिर्फ पांच सीटों पर यादव उम्मीदवार उतारा। बाकी सीटों पर उन्होंने गैर यादव पिछड़ी जातियों को बड़ी संख्या में टिकट दिया। दूसरी ओर तेजस्वी यादव ने 25 फीसदी से ज्यादा यादव उम्मीदवार दिए। इनसे बची हुई सीटों पर ही उन्होंने गैर यादव उम्मीदवारों को तरजीह दी। इससे उनका ए टू जेड जातियों का समीकरण नहीं बन सका। उन्होंने दूसरी जातियों से सिर्फ प्रतीकात्मक उम्मीदवार उतारे।