राजधानी दिल्ली में अभी तक मुकाबला बहुत दिलचस्प नहीं दिख रहा था क्योंकि आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों की हवा नहीं बन रही थी। ऐसा लग रहा था कि भाजपा अपना गढ़ बचा लेगी और सभी सीटें जीतने की हैट्रिक लगाएगी। लेकिन कांग्रेस के तीन उम्मीदवार आते ही माहौल बदल गया है। कांग्रेस ने गठबंधन की ओर से कन्हैया कुमार को उत्तर पूर्वी दिल्ली सीट से उम्मीदवार बनाया है।
अगर पिछले लोकसभा चुनाव के आंकड़े देखें तो उस हिसाब से यह गठबंधन की सबसे मुश्किल सीट है। पिछली बार इस सीट से कांग्रेस की टिकट पर शीला दीक्षित चुनाव लड़ी थीं। लगातार 15 साल दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित को 28 फीसदी वोट मिले थे और वे साढ़े तीन लाख से ज्यादा वोट के अंतर से हारी थीं।
पिछले लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने दिलीप पांडेय को उम्मीदवार बनाया था और उनको एक लाख 90 हजार वोट आए थे। अगर दोनों का वोट जोड़ दें तब भी मनोज तिवारी की जीत का अंतर डेढ़ लाख से ज्यादा का बैठता है। शीला दीक्षित और दिलीप पांडेय को मिला कर 42 फीसदी वोट मिले थे, जबकि मनोज तिवारी को 54 फीसदी वोट मिले थे। यानी 12 फीसदी वोट का अंतर था। यह भी ध्यान रखने की जरुरत है कि शीला दीक्षित और दिलीप पांडेय दोनों प्रवासी की राजनीति करते थे। शीला दीक्षित की शादी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के दिग्गज उमाशंकर दीक्षित के बेटे से हुई थी तो दिलीप पांडेय पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर इलाके के रहने वाले हैं।
इसके अलावा इसी लोकसभा सीट के तहत आने वाले इलाकों में कोरोना के समय दंगे हुए थे और कई जगह स्पष्ट ध्रुवीकरण दिखाई देता है। सो, कह सकते हैं कि कन्हैया कुमार को एक मुश्किल सीट मिली है। लेकिन अगर वे मनोज तिवारी के साथ जाने वाले प्रवासी वोट को रोक लेते हैं मुकाबले को दिलचस्प बना सकते हैं। उनके पक्ष में दूसरी बात यह जाती है कि मनोज तिवारी पिछले 10 साल अपने क्षेत्र से लापता ही रहे हैं। सो, उनके खिलाफ एंटी इन्कम्बैंसी है। कन्हैया के खिलाफ जो बात है वह ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’ वाला नैरेटिव और जेएनयू में कथित तौर पर भारत विरोधी नारे लगाने का मामला है, जो गलत साबित हो चुका है। फिर भी उसे चुनाव में मुद्दा बनाया जा सकता है।