कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीति में जो चौंकाने वाला तत्व है उसकी अभी कमी नहीं आई है। यह भी कह सकते हैं कि वैचारिक और नीतिगत मामलों में यू टर्न करने के अभी कई रिकॉर्ड हैं, जो मोदी सरकार को तोड़ने हैं। आधार से लेकर मनरेगा और जन धन खातों से लेकर पीएमएलए तक के यूपीए सरकार के जितने फैसलों की मोदी ने मुख्यमंत्री रहते आलोचना की थी उन सबको उन्होंने केंद्र में सरकार बनने पर अपनाया।
इसी तरह का यू टर्न जाति गणना पर भी है। ऐसा लग रहा था कि चाहे कुछ भी हो जाए प्रधानमंत्री मोदी जाति गणना नहीं कराएंगे। लेकिन उनकी सरकार ने अचानक एक दिन कैबिनेट की बैठक में इसका फैसला कर लिया और घोषणा कर दी गई।
कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान और आतंकवादियों के पहलगाम हमले से ध्यान भटकाने के लिए यह दांव चला है। यह भी कहा जा रहा है कि बिहार विधानसभा चुनाव के लिए यह फैसला हुआ है। लेकिन यह कोई ऐसा छोटा मुद्दा नहीं है, जिसका इस्तेमाल किसी एक राज्य के चुनाव के लिए हो या ध्यान भटकाने के लिए हो।
प्रधानमंत्री मोदी का जाति गणना पर यू टर्न
यह बड़ा मसला है और इतना बड़ा यू टर्न है कि भाजपा के सारे नेता हक्के बक्के रह गए। भाजपा कई बड़े नेता फैसले के बाद ट्रोल होने लगे। लोग उनके पुराने वीडियो और बयान खोज कर निकाल कर रहे हैं और उसे केंद्र सरकार के फैसलों के बरक्स रख रहे हैं। सबसे ज्यादा केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा निशाना बने हैं। गौरतलब है कि कुछ दिन पहले गडकरी ने एक तुकबंदी सुनाई थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि, ‘जो भी करेगा जात की बात उसको मारूंगा कस कर लात’। उनके इस बयान को निकाल कर लोग चुनौती दे रहे हैं कि कब उनकी लात चलेगी।
यह भी पूछा जा रहा है कि क्या उन्होंने कैबिनेट की बैठक में जाति गणना पर कुछ कहा या नहीं। गौरतलब है कि कैबिनेट में गडकरी अकेले मंत्री हैं, जो मोदी के फैसलों पर सवाल उठाते हैं। उन्होंने नोटबंदी पर भी उठाए थे। पता नहीं है कि जाति गणना पर उन्होंने कैबिनेट बैठक में क्या कहा।
असल में भाजपा के नेताओं को अंदाजा ही नहीं था कि प्रधानमंत्री मोदी जाति गणना का फैसला कर सकते हैं। उनको लग रहा था कि हिंदुत्व की व्यापक अवधारणा को खंडित करने का काम मोदी सरकार नहीं करेगी। इसलिए सारे नेता बढ़ चढ़ कर दावा कर रहे थे। भजनलाल शर्मा हों या दूसरे कई नेता जाति गणना को देश और समाज तोड़ने वाला फैसला मानते थे। अगर भाजपा के नेताओं को जरा भी अंदाजा होता कि उनकी सरकार जाति गणना करा सकती है तो वे ऐसे दावे नहीं करते।
उनका दावा राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ और भाजपा की हिंदुत्व की विचारधारा का अनुरूप था लेकिन मोदी तो विचारधारा से ऊपर व्यावहारिक राजनीति के हिसाब से फैसले करते हैं। उनको लग रहा है कि इस साल का बिहार चुनाव और दो साल बाद होने वाला उत्तर प्रदेश चुनाव और उसके बाद का लोकसभा चुनाव जाति के आधार पर ही लड़ा जाएगा और 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष को जो ताकत मिली वह आगे और बढ़ेगी। इसलिए उन्होंने जाति का कार्ड भी विपक्षी पार्टियों से छीनने का दांव चल दिया
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