राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़ों के अनुसार, भारत में रोड रेज और लापरवाह ड्राइविंग के 4.09 लाख मामले दर्ज किए गए, जिनमें 4.79 लाख लोग घायल हुए। हाल के वर्षों में यह संख्या और बढ़ी है, विशेष रूप से बड़े शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, और बेंगलुरु में।कानूनी दृष्टिकोण से, भारत में रोड रेज के लिए कोई विशिष्ट कानून नहीं है।
भारत की सड़कों पर रोड रेज (सड़क पर गुस्सा) की घटनाएँ दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं। बेंगलुरु में कुछ समय पहले रोड रेज घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यह न केवल एक सामाजिक समस्या है, बल्कि एक गंभीर अपराध भी बनता जा रहा है, जो लोगों की जान और संपत्ति को खतरे में डाल रहा है।
रोड रेज का मतलब है सड़क पर वाहन चालकों या पैदल यात्रियों के बीच छोटी-मोटी घटनाओं के कारण उत्पन्न होने वाला गुस्सा, जो कभी-कभी हिंसक रूप ले लेता है। यह गुस्सा गाली-गलौज, मारपीट, संपत्ति को नुकसान, और यहाँ तक कि हत्या तक जा सकता है।
रोड रेज की घटनाएँ कई कारणों से होती हैं। भारत में भीड़भाड़ वाली सड़कें, अपर्याप्त बुनियादी ढांचा, और ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन प्रमुख कारक हैं। इसके अलावा, मानसिक तनाव, जल्दबाजी, और अहंकार भी रोड रेज को बढ़ावा देते हैं। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि अवसाद, चिंता, और नशे की स्थिति में लोग अपनी भावनाओं पर नियंत्रण खो देते हैं, जिससे हिंसक व्यवहार सामने आता है। इसके अलावा, कुछ लोग सड़क पर अपनी ‘प्रतिष्ठा’ बनाए रखने के लिए हिंसा का सहारा लेते हैं।
पिछले कुछ महीनों में भारत में रोड रेज की कई चौंकाने वाली घटनाएँ सामने आई हैं, जो इस समस्या की गंभीरता को दर्शाती हैं। 2025 में बेंगलुरु में भारतीय वायु सेना के विंग कमांडर शिलादित्य बोस और एक कॉल सेंटर कर्मचारी विकास कुमार के बीच सड़क पर हुई झड़प ने इस समस्या को गहराई से सामने लाया।
भारत में रोड रेज और उसकी समस्याएँ
इस घटना में बोस ने विकास कुमार पर हिंसक हमला किया, जबकि प्रारंभिक दावे में बोस ने खुद को पीड़ित बताया था। पुलिस द्वारा जारी सीसीटीवी फुटेज ने यह स्पष्ट किया कि बोस ने ही पहले हमला शुरू किया था, जबकि विकास कुमार ने केवल अपनी रक्षा की थी।
अक्टूबर 2024 में दिल्ली में एक 20 वर्षीय युवक की रोड रेज की घटना में मौत हो गई। यह विवाद रास्ता देने को लेकर शुरू हुआ और जल्द ही हिंसक रूप ले लिया। उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ महीनों में दिल्ली में रोड रेज की 10 घटनाएँ दर्ज की गईं, जिनमें पाँच लोगों की मौत हुई और आठ घायल हुए। 2024 में बेंगलुरु में एक कार चालक की लापरवाह ड्राइविंग के कारण ऑटो चालकों ने उसकी कार को तोड़ दिया।
बेंगलुरु में ट्रैफिक जाम और लेन अनुशासन की कमी रोड रेज के प्रमुख कारण हैं। 2024 में मुंबई में अभिनेता राघव तिवारी पर एक बाइक सवार ने रोड ्ला ने रोड रेज की एक घटना में एक व्यक्ति की आँख फोड़ दी। यह घटनाएँ रोड रेज की गंभीरता और इसके सामाजिक प्रभाव को दर्शाती है।
रोड रेज केवल व्यक्तिगत विवाद तक सीमित नहीं है; इसका व्यापक सामाजिक प्रभाव पड़ता है। यह सड़क दुर्घटनाओं राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़ों के अनुसार, भारत में रोड रेज और लापरवाह ड्राइविंग के 4.09 लाख मामले दर्ज किए गए, जिनमें 4.79 लाख लोग घायल हुए। हाल के वर्षों में यह संख्या और बढ़ी है, विशेष रूप से बड़े शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, और बेंगलुरु में।कानूनी दृष्टिकोण से, भारत में रोड रेज के लिए कोई विशिष्ट कानून नहीं है।
हालांकि, भारतीय दंड संहिता की धारा 281 और मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 184 के तहत लापरवाह ड्राइविंग के लिए सजा का प्रावधान है। पहली बार अपराध करने पर 6 महीने से 1 साल की जेल या 1,000 से 5,000 रुपये का जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं। फिर भी, विशेषज्ञों का मानना है कि रोड रेज को नियंत्रित करने के लिए एक अलग कानून की आवश्यकता है।
रोड रेज की समस्या से निपटने के लिए भारत को अन्य देशों से प्रेरणा लेनी चाहिए, जहाँ इस समस्या पर काबू पाने के लिए प्रभावी उपाय किए गए हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में रोड रेज और सुरक्षित ड्राइविंग के लिए जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं। भारत में भी स्कूलों और कॉलेजों में ट्रैफिक सुरक्षा शिक्षा को अनिवार्य करना चाहिए।
सिंगापुर और जापान में रोड रेज को अपराध माना जाता है, और दोषियों को कड़ी सजा दी जाती है। भारत में भी रोड रेज के लिए विशिष्ट कानून बनाए जाने चाहिए, साथ ही सीसीटीवी और डैशकैम के उपयोग को बढ़ावा देना ्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। सड़कों की स्थिति, ट्रैफिक प्रबंधन, और लेन अनुशासन को बेहतर करने से रोड रेज की घटनाएँ कम हो सकती हैं।
भारत में बढ़ती शहरी आबादी और वाहन संख्या के मद्देनजर, सड़क सुरक्षा और शांति बनाए रखना एक चुनौतीपूर्ण लेकिन अनिवार्य कार्य है। रोड रेज भारत में एक बढ़ती हुई समस्या है, जो न केवल व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालती है, बल्कि सामाजिक सद्भाव को भी प्रभावित करती है। इसे रोकने के लिए कानूनी सुधार, जागरूकता अभियान, और बेहतर ट्रैफिक प्रबंधन जरूरी हैं। प्रत्येक नागरिक को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी और सड़क पर धैर्य और अनुशासन बनाए रखना होगा। सड़कें प्रतिस्पर्धा का मैदान नहीं, बल्कि साझा स्थान हैं, जहाँ सभी की सुरक्षा सर्वोपरि होनी चाहिए।
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Pic Credit: ANI