विपक्ष की कोई भी पार्टी उन बातों पर सरकार से नहीं लड़ रही है, जिन पर कांग्रेस ने सरकार के साथ जंग छेड़ी है। कांग्रेस के अलावा देश की सबसे बड़ी कम्युनिस्ट पार्टी सीपीएम ने जरूर सरकार को चिट्ठी लिखी और कहा कि संसद का विशेष सत्र बुलाया जाना चाहिए लेकिन बाकी पार्टियों ने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। शरद पवार ने तो इस विचार को खारिज ही कर दिया। लेकिन ममता बनर्जी से लेकर अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव से लेकर एमके स्टालिन तक सब खामोश रहे।
इन पार्टियों की ओर से छिटपुट बयान आया भी तो किसी ने उस पर ध्यान नही दिया। इसी तरह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सीजफायर का ऐलान करने, दुनिया के देशों को ऑपरेशन सिंदूर के बारे में बताने के लिए भारतीय सांसदों, नेताओं और राजदूतों का डेलिगेशन भेजने के सरकार के फैसले पर भी किसी ने सवाल नहीं उठाया और विदेश मंत्री एस जयशंकर के जिस बयान को लेकर राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी इतना आक्रामक हुए हैं, उस पर भी किसी दूसरी विपक्षी पार्टी ने ध्यान नहीं दिया है।
कांग्रेस अकेले क्यों लड़ रही है
राहुल और कांग्रेस तो जयशंकर को पाकिस्तान का मुखबिर औरर जयचंद बताने में लगे हैं लेकिन दूसरी पार्टियां खामोश हैं। सवाल है कि इसका क्या कारण है? क्या इस पूरे प्रकरण में भाजपा ने राजनीति का जो जाल फेंका उसमें कांग्रेस फंस गई और दूसरी पार्टियों ने अपने को उस जाल में फंसने से बचा लिया या कांग्रेस ने जान बूझकर भाजपा विरोध की सेकुलर राजनीति का स्पेस अकेले हासिल करने के लिए योजना के तहत इन मसलों पर विवाद खड़ा किया है? ध्यान रहे राज्यों की तमाम प्रादेशिक पार्टियां भाजपा विरोध की राजनीति करती हैं और कांग्रेस का स्पेस उन्होंने घेर रखा है।
लेकिन हकीकत यह है कि जब भी कोई बड़ा मौका आता है तो वे खामोश हो जाते हैं। कांग्रेस उनकी इस वास्तविकता को उजागर कर रही है। यह भी कहा जा रहा है कि चुनाव की मजबूरी में तेजस्वी यादव, ममता बनर्जी और एमके स्टालिन इस मामले में ज्यादा नहीं बोलना चाहते हैं। उनको साफ दिख रहा है कि राष्ट्रवाद अभी उफान मार रहा है तो वे सिर झुका कर इसके निकल जाने का इंतजार कर रहे हैं, जबकि कांग्रेस जोखिम लेकर लड़ रही है।
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