कांग्रेस पार्टी जहां भी सरकार में आती है वहां का मुख्यमंत्री या पार्टी का संगठन कोई ऐसा काम नहीं करता है, जिससे सत्ता स्थायी बने या एक के बाद लगातार दूसरा चुनाव जीत सकें। यही कारण है कि पिछले 11 साल में कांग्रेस किसी भी राज्य में सत्ता नहीं दोहरा सकी है। इसके उलट भाजपा ज्यादातर राज्यों में लगातार दूसरी या तीसरी बार सत्ता में आ रही है। कांग्रेस की यह कहानी तेलंगाना में भी दोहराई जा रही है। वहां कांग्रेस की सरकार बने डेढ़ साल हुए हैं और अभी से सरकार के ऐसे लक्षण दिखने लगे हैं, जिनसे लग रहा है कि आगे आने वाले चुनावों में उसकी राह मुश्किल होने वाली है। यह स्थिति तब है, जब वहां कर्नाटक या हिमाचल प्रदेश की तरह बहुत मजबूत नेता की गुटबाजी नहीं है।
बहरहाल, हाल में तेलंगाना में विधान परिषद की तीनों सीटों के लिए चुनाव हुए। इनमें से दो सीटें शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र की थीं और एक सीट स्नात्तक निर्वाचन क्षेत्र की। कांग्रेस पार्टी इन तीनों सीटों पर चुनाव हार गई। कांग्रेस के लिए उससे ज्यादा चिंता की बात यह है कि दो सीटों पर भारतीय जनता पार्टी समर्थित उम्मीदवार जीते और एक सीट पर शिक्षक संघ के समर्थन वाला उम्मीदवार जीता। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस इस चुनाव को लेकर गंभीर नहीं थी। मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी और उनकी सरकार के मंत्री इन तीनों सीटों पर प्रचार करने गए थे। इसके बावजूद कांग्रेस के उम्मीदवार हार गए। अभी सरकार बने सिर्फ डेढ़ साल हुए हैं और अभी यह स्थिति है! कहा जा रहा है कि इसी वजह से बीआरएस छोड़ कर आए नौ विधायकों से इस्तीफा दिला कर उपचुनाव नहीं कराया जा रहा है। स्पीकर ने उनका मामला लटका रखा है। पिछले दिनों इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई।