भारत की महिला नेताओं ने जब भी मौका मिला, अपने अपने हिसाब से शासन किया। लेकिन एक समस्या सबके साथ रही। किसी ने अपने जीवनकाल में अपना उत्तराधिकारी तय नहीं किया। इंदिरा गांधी अपवाद हैं, जिन्होंने पहले संजय गांधी और उनके निधन के बाद राजीव गांधी को राजनीति में उतार कर उत्तराधिकार का संकेत दे दिया था। सोनिया गांधी ने भी राहुल को उत्तराधिकारी चुन दिया था। परंतु उसके बाद कम से कोई प्रादेशिक महिला नेता अपना उत्तराधिकारी नहीं तय कर पाई या किया तो उसे हमेशा आजमाते रहे। जैसे जयललिता के लिए माना जाता था कि उनकी सहेली वीके शशिकला उनकी जगह लेंग या शशिकला के भतीजे टीटीवी दिनाकरण उनके उत्तराधिकारी होंगे। लेकिन जब वे जेल गईं तो पहली बार ओ पनीरसेल्वम को और दूसरी बार में ई पलानीस्वामी को मुख्यमंत्री बनाया। अब स्थिति यह है कि पनीरसेल्वम, पलानीस्वामी और दिनाकरण तीनों आपस में लड़ रहे हैं।
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को उत्तराधिकारी बनाया। लेकिन पहली बार यह हुआ कि किसी को उत्तराधिकारी पद से हटाया गया। मायावती ने आकाश को उत्तराधिकारी पद से हटाया और फिर बाद में बहाल किया। अब उन्होंने आकाश के ससुर अशोक सिद्धार्थ को पार्टी से निकाल दिया है। उधऱ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तय नहीं कर पा रही हैं कि उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी को कब सत्ता सौंपनी है। वे उनके उत्तराधिकारी हैं लेकिन ममता को हमेशा उनकी लगाम खींच कर रखनी होती है। वे भी बीच बीच में उनको झटका देती रहती हैं।