दीवाली क्यों अपनी ख़ुशी के लिए माफ़ी मांगे?
हर साल, घड़ी की तरह, हंगामा फिर शुरू है। दीया बुझा भी नहीं होता कि नसीहत, प्रवचन बरसने लगे हैं। हवा के प्रदूषण के एक्यूआई (AQI) चार्ट टाइमलाइन पर आ गए हैं। नैतिक भाषण पैनलों पर भर जाते हैं, और वही परिचित एलिट- अभिजात वर्ग का कोरस फिर मंच पर है। हर दिन बढ़ता शोर — उन पटाखों से भी ज़्यादा जिन पर वे आपत्ति करते हैं। क्यों दीवाली इतनी ज़ोरदार होनी चाहिए? इतनी धुँधली? इतनी “प्राचीन”? क्यों यह बस दीये जलाने, एक छोटी-सी प्रार्थना करने, घर के भीतर ताश खेलने और एयर प्यूरीफ़ायर के नीचे ऑर्गेनिक वाइन पीने भर...