सनातन धर्मं और वैद-पुराण ग्रंथों के गंभीर अध्ययनकर्ता और लेखक। धर्मं-कर्म, तीज-त्यौहार, लोकपरंपराओं पर लिखने की धुन में नया इंडिया में लगातार बहुत लेखन।
  • नवरात्र दूसरा दिन, ब्रह्मचारिणी पूजन दिवस

    भक्तगण नवरात्रि के दूसरे दिन अपनी कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए साधना करते हैं। जिससे उनका जीवन सफल हो सके और अपने सामने आने वाली किसी भी प्रकार की बाधा का सामना आसानी से कर सकें। इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में शिथिल होता है। इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।  10 अप्रैल- नवरात्र दूसरा दिन, ब्रह्मचारिणी पूजन दिवस शक्ति पूजन के लिए प्रख्यात नवरात्रि का द्वितीय दिन देवी ब्रह्मचारिणी के पूजन के लिए समर्पित है। ब्रह्मचारिणी देवी पार्वती के यौवन रूप को प्रतिष्ठित करती हैं। इस वर्ष...

  • शाक्तमत की शुरूआत और विकास

    शाक्त मत में शक्ति को ही विश्व का प्रधान ईश्वर माना जाता है। शाक्तों की ईश्वर संबंधी धारणा स्त्रैण है। विश्व के किसी भी अन्य धर्म में ईश्वर को स्त्री रूप में नहीं पूजित किया गया है। उसे ईश्वर की सहायक शक्ति अवश्य कहा गया है, किन्तु एकमात्र शाक्त मत में ही संसार की सर्वोपरि सत्ता एक नारी है। इस अवधारणा ने शैव, वैष्णव, जैन और बौद्ध धर्म सभी मतों को प्रभावित किया। वैदिक मतानुसार जगत के निर्माणकर्त्ता, पृथ्वी आदि जड़ और जीव से अतिरिक्त सब सृष्टिगत पदार्थों में पूर्ण पुरुष ईश्वर है। आरंभ में उस एकमात्र निराकार ईश्वर के...

  • स्वाधीनता संग्राम के पहले बलिदानी मंगल पाण्डेय

    मंगल पाण्डेय चर्बी युक्त कारतूसों के विरुद्ध थे। उन्हें यह भली-भांति पत्ता था कि ब्रिटिश अधिकारी भारतीय हिन्दू सैनिकों और ब्रिटिश सैनिकों में भेदभाव करते थे। इससे परेशान होकर उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों से लड़ने का बीड़ा उठाया था। और भारत के एक वीर पुत्र ने स्वाधीनता संग्राम के यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे दी। वीर मंगल पाण्डेय के पवित्र प्राणहव्य को पाकर स्वातंत्र्य यज्ञ की लपटें भड़क उठीं। 8 अप्रैल - मंगल पाण्डेय बलिदान दिवस भारत की समृद्धता को देखकर ब्रिटिश साम्राज्य के वफादार, चतुर व्यापारी भारत में आए तो देश में चल रही राजा- महाराजाओं के आपसी...

  • वैदिक मतानुसार पृथ्वी, सूर्य, चन्द्र आदि की उत्पत्ति

    वैदिक मतानुसार सृष्टि के आदि में पृथ्वी इस तरह नहीं थी। सृष्टि रचना प्रारंभ होने के बाद शनैः- शनैः बहुत दिनों में पृथ्वी इस रूप में आई। सर्वप्रथम यह सूर्यवत जल रही थी। आज भी पृथ्वी के भीतर अग्नि पाया जाता है। कई स्थानों पर पृथ्वी से ज्वाला निरंतर निकल रही है, इसी को ज्वालामुखी पर्वत कहते हैं। पृथ्वी, सूर्य, चन्द्र आदि की उत्पत्ति का ज्ञान हमेशा से ही कौतूहल के विषय हैं। इस सबंध में सत्य ज्ञान की जानकारी नहीं होने के कारण लोक में विभिन्न प्रकार की भ्रांतियाँ प्रचलित हैं। लेकिन संसार के सर्वप्राचीन ग्रंथ व सत्य विद्याओं...

  • ब्रज की लट्ठमार होली

    फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को बरसाने में मनाई जाने वाली लट्ठमार होली के दिन नंदगांव के ग्वाल बालों के बरसाना होली खेलने आने के अवसर पर बरसाने की महिलाओं के हाथ में लट्ठ (लाठी) रहता है, और नंदगांव  के पुरुष (गोप) राधा के मन्दिर लाडलीजी पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं, उन्हें बरसाना की महिलाओं के लट्ठ से बचना होता है। मान्यता है कि इस दिन सभी महिलाओं में राधा की आत्मा बसती है और पुरुष भी हंस- हंस कर लाठियां खाते हैं। Lathmar Holi 2024 8 -19 मार्च -लठमार होली : वैसे तो सम्पूर्ण भारत...

  • जगत के कल्याण कर्त्ता शिव

    ऋग्वेद में उल्लेखित  रुद्र ही यजुर्वेद में शिव और फिर सामवेद में महादेव में परिणत हो गए। सर्वप्रथम वेदों में उल्लिखित रुद्र अर्थात भगवान शिव का वर्णन उनकी दिव्य पहचान पर प्रकाश डालता है। रुद्र का अर्थ है -गर्जना करने वाला, दहाड़ने वाले उग्र देवता। उन्हें आंधी- तूफान, विनाश और कायाकल्प से जुड़े एक उग्र देवता के रूप में चित्रित किया गया है। ऋग्वेद में अनेक मंत्रों में बुरी ताकतों से सुरक्षा के लिए रुद्र के आशीर्वाद का आह्वान किया गया है। Mahashivratri 2024 Puja Vidhi Muhurat  8 मार्च 2024 को महाशिवरात्रि संसार के सर्वाधिक प्राचीनतम ग्रंथ वेद में ईश्वर...

  • महर्षि दयानन्द का आव्हान था वेदों की ओर लौटो

    स्वाधीनता संग्राम के सर्वप्रथम योद्धा, वेद के पूनर्रूद्धारक योगाभ्यासी स्वामी दयानन्द की हत्या व अपमान के कुल 44 प्रयास उनके 1863 में गुरु विरजानंद के पास अध्ययन पूर्ण होने के बाद लगभग बीस वर्षों के कार्यकाल में हुए। जिसमें से 17 बार विभिन्न माध्यमों से विष देकर प्राण हरण के प्रयास थे, फिर भी उनके प्राण हरण का कोई प्रयास सफल नहीं हो सका। लेकिन 30 अक्टूबर 1883 को दीपावली की संध्या को एक विधर्मी षड्यन्त्र सफल हो गया और विषयुक्त कांच चूर्ण मिश्रित दूध के सेवन से उनकी तबीयत बिगड़ने लगी और अजमेर के अस्पताल में उन्होंने इस संसार...

  • सावरकर थे हिंदू राजनीति के प्रर्वतक पुरोधा

    अपने हिन्दू राष्ट्रवादी विचारों के कारण बैरिस्टर की डिग्री खोने वाले वे पहले भारतीय थे, जिन्होंने पूर्ण स्वतन्त्रता की मांग की। सन 1857 के संग्राम को भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम बताते हुए 1907 में लगभग एक हज़ार पृष्ठों का इतिहास लिखने वाले वे भारत के पहले और संसार के एकमात्र लेखक थे, जिनकी पुस्तक को प्रकाशित होने के पहले ही ब्रिटिश साम्राज्य की सरकारों ने प्रतिबन्धित कर दिया था। वे संसार के पहले ऐसे राजनीतिक कैदी थे, जिनका मामला हेग के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में चला था। Veer Savarkar 26 फरवरी- सावरकर स्मृति दिवस स्वतंत्रता सेनानी और विचारक विनायक दामोदर...

  • परहित भावना के संत कवि गुरु रविदास

    उनकी वाणी का इतना व्यापक प्रभाव पड़ा कि समाज के सभी वर्गों के लोग उनके प्रति श्रद्धालु बन गये। कहा जाता है कि मीराबाई उनकी भक्ति-भावना से बहुत प्रभावित हुईं और उनकी शिष्या बन गयी थीं। कहा जाता है कि उनके इन्हीं गुणों के कारण सात सौ ब्राह्मणों ने भी उनसे दीक्षा ले ली थी। आज भी रविदासिया पंथ के लाखों लोग उनके बताए मार्ग पर चलते हुए अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। Ravidas Jayanti 2024 24 फरवरी -संत रविदास जयंती संत शिरोमणि कवि रविदास न केवल सच्चे समाज सुधारक, पाखंड विरोधी तथा सदभक्त संत कवि थे, बल्कि उन्होंने...

  • सरस्वती: अंतःप्रेरणा की वाणी

    सरस्वती से संबंधित अनेक ऋग्वैदिक ऋचाएं भी इस बात की पुष्टि करती हैं कि सरस्वती अंतःप्रेरणा अर्थात वाणी की देवी है। सरस्वती हमारी धी यानी प्रज्ञा अर्थात सद सद विवेकिनी बुद्धि की निष्पादिका है। सरस्वती ऋतावरि अर्थात सत्य ज्ञान और सत्य आचरण करने वाली है। यह सरस्वती के वाणी रूप को ही उदभाषित करता है। वैदिक मतानुसार सरस्वती सत्यचेतना से निकलकर बहने वाली अंतःप्रेरणा की नदी है। सरस्वती गतिशीला है, गतिमती है। गतिशीलता के आधार पर ही सरस्वती सत्य की बहती हुई धारा की, दिव्य अंतःप्रेरणा की, वाणी की,  श्रुति की, स्पष्टतः वाणी की प्रतीक है। सरस होने के कारण...

  • सत्य ज्ञान, वाणी की देवी सरस्वती

    भाष्यकारों ने सरस्वती को यज्ञरूपा भी कहा है। देवताओं के लिए संपादित किए जाने वाले यज्ञ में यजमान सरस्वती के पितरों की भांति रथारूढ होकर आने के लिए आह्वान करता है। सम्प्रति सरस्वती की मान्यता वाग्देवी (वाकदेवी) के रूप में है, और इस रूप में इनकी उपासना- आराधना, पूजा- अर्चना वसंत पंचमी कही जाने वाली माघ शुक्ल पंचमी को धूमधाम और हर्षोल्लास पूर्वक की जाती है। यह मान्यता सहस्त्राब्दियों पुरानी हैं। इसलिए पारंपरीण है। ऋग्वेद में सरस्वती को नदितमे और देवितमे दोनों ही संज्ञा से विभूषित किया गया है। वेद में नदी अथवा बहने वाली धारा को सचेतन प्रवाह का...

  • डार्विन का विकासवाद कहानी है!

    डार्विन के विकासवाद को आरंभ से ही विरोध का सामना करना पड़ा, और अनेक देशों व सभ्यताओं के विद्वानों ने इसे नकार दिया, लेकिन अंग्रेजों ने अपने साम्राज्य विस्तार के क्रम में अन्य सभ्यताओं को अपनी दास बनाए रखने और अपनी सता कायम करने लिए इस वाद का बखूबी प्रयोग किया, और डार्विन के विकासवाद को प्रश्रय देकर अन्य सभ्यताओं में सृष्टि रचना से संबंधित प्रचलित मान्यताओं को नकारने का इसे स्रोत बना लिया। 12 फरवरी -अंतर्राष्ट्रीय डार्विन दिवस डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत को पाठ्यक्रम से हटाने पर देश के कुछ विद्वानों व शिक्षकों ने हैरानी जताते हुए कहा...

  • शिव और विष्णु का तिल से पूजन

    मान्यता है कि सर्वाधिक शुभ और पवित्र मास माघ के महीने का हर दिन पुण्य फलदायी है। इस मास में दान-पुण्य के अतिरिक्त किसी पवित्र नदी या कुंड में स्नान करने से भी पुण्य की प्राप्ति होती है। माघ के महीने में तिल से संबंधित विशेष रूप से चार त्योहार- मकर संक्रांति,  संकष्टी तिल चतुर्थी, षट तिला एकादशी, तिल द्वादशी पर्व मनाए जाते हैं।...माघ माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि अर्थात बारहवीं तिथि को तिल द्वादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में हमेशा सुख...

  • वैष्णव साधना के प्रवर्त्तक स्वामी रामानन्द

    वैष्णवों के कुल 52 द्वारों में 36 द्वारे केवल रामानंदीय सन्यासियों, वैरागियों के हैं। यह सभी द्वारे ब्राह्मण कुल के शिष्यों के द्वारा स्थापित किए गए हैं, इनमें से एक पीपासेन क्षत्रिय कुल थे। संप्रदाय की शर्त अनुसार सभी का ब्रह्मचारी होना आवश्यक है। इस संप्रदाय के संन्यासी व साधु बैरागी भी कहे जाते हैं। इनके अपने अखाड़े भी हैं। रामानन्दी संप्रदाय की शाखाएं औऱ उपशाखाएं देश भर में फैली हैं। अयोध्या, चित्रकूट, नाशिक, हरिद्वार में इस संप्रदाय के सैकड़ों मठ, मंदिर हैं। 2 फरवरी - स्वामी रामानन्द जयंती मध्यकालीन भक्ति आन्दोलन के महान संत स्वामी जगतगुरु रामानन्दाचार्य ऐसे संत,...

  • कुष्ठ से मानवता बहुत रही प्रभावित

    यह रोग शरीर को लंबे समय तक हवा व खुली धूप न मिलने, लंबे समय से गंदा व दूषित जल पीने, अधिक मात्रा में मीठी चीजों व नशे का सेवन करने के कारण हो सकता है। इसमें रोगी के शरीर में घावों से हमेशा मवाद का बहना, घाव का ठीक न होना, घावों पर से रक्त का रिसाव आदि कई तरह के लक्षण नजर आ सकते हैं। इस तरह के घावों के होने व उनके ठीक न होने के कारण रोगी के अंग धीरे-धीरे गलने लगते हैं। रोगाणु अर्थात जीवाणु जनित रोग कोढ़ को ही कुष्ठ रोग कहा जाता है।...

  • नेताजी ने बजाया था पूर्ण स्वतंत्रता का बिगुल

    23 जनवरी- सुभाषचंद्र बोस जयंती: देशवासियों के आगे रहस्यमय रहे इतिहास के कई अध्यायों का अनावरण हो रहा है। गांधी और नेहरू ने कांग्रेस के प्रभावशाली व्यक्तित्वों को दबाने और उपेक्षित करने का भरसक प्रयास किया था। भारत के वर्तमान स्वरूप के प्रमुख संगठक स्वाधीन भारत के प्रथम उपप्रधानमन्त्री व गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल एवं प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के प्रति उपेक्षा का व्यवहार भी किया गया था। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी आंदोलन के अग्रणी तथा सबसे बड़े नेता के रूप में स्थापित नेताजी सुभाष चंद्र  बोस के प्रति भी इनका यही रवैया था। सुभाष चंद्र...

  • शुभ दिन है कूर्म द्वादशी

    भारतीय परंपरा में कूर्म द्वादशी को शुभ तिथियों में एक माना जाता है। इसीलिए इस दिन की शुभता को देखते हुए अयोध्या में नवनिर्मित भव्य श्रीराम मंदिर में रामलला मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के लिए कूर्म द्वादशी के दिन को ही निर्धारित किया गया है। मान्यता है कि चांदी अथवा अष्टधातु से निर्मित कछुए को घर अथवा दुकान में रखना काफी शुभ होता है। इससे जीवन में उन्नति की संभावनाएं बढ़ जाती है। मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के समय देवताओं की सहायता के लिए और मंदराचल  पर्वत को डूबने से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने कूर्म अर्थात कछुए...

  • सबको शिक्षा से ही समानता संभव

    वैदिक मत के अनुसार मनुष्य एक मनुष्य होने के नाते समान अधिकार और कर्तव्य का उत्तरदायी है। वेद मनुष्यों को पारस्परिक व्यवहार और सम्बन्ध समानता के आधार पर स्थापित करने का उपदेश देता है। वैदिक मत में सभी मनुष्यों को शिक्षा का अधिकार दिया गया है तथा समानता से कर्तव्य पालन करने की भी प्रेरणा की गई है। आचार्य शिष्य को अपने समान बनाने की इच्छा रखता है, पति-पत्नी परस्पर एक दूसरे को समान मानने की प्रतिज्ञा करते हैं। दैनन्दिन जीवन में मनुष्य का पाला जड़ और चेतन दोनों ही वस्तुओं से पड़ता है। जड़ वस्तुओं से व्यवहार करते समय...

  • वेद (ज्ञान) के सत्प्रभाव में सभी सम्प्रदाय व पन्थ

    भारत के वैदिक धर्म में से धर्म के जितने संप्रदाय, पंथ अथवा मजहब निकले अर्थात जन्म, उत्पन्न हुए, उन्होंने आज भी स्वयं को वेद के शाब्दिक अर्थ ज्ञान से सम्बद्ध रखा है और अपने आपको किसी न किसी प्रकार से ज्ञान से बांधे हुए रखा हुआ है। भारतीय ज्ञान-विज्ञान से संयुक्त रखा है। जैन धर्म का मूल जैन शब्द ज्ञान का ही अपभ्रंश रूप है अर्थात ज्ञान से ही बिगड़कर बना है।...इसी प्रकार बौद्ध धर्म में बोध अर्थात ज्ञान से ही बौद्ध शब्द बना है, और फिर बुद्ध। वेद का शाब्दिक अर्थ ज्ञान है और सृष्टि के आरम्भिक काल में...

  • रोम का वसंतोत्सव था क्रिसमस त्यौहार ?

    विलियम ड्यूरेंट ने यीशु मसीह का जन्म वर्ष ईसापूर्व चौथा वर्ष लिखा है। यह कितनी असंगत बात है कि ईसा का ही जन्म ईसा पूर्व में कैसे हो सकता है? जबकि ईसाई काल गणना यीशु मसीह के जन्म से शुरू होती है, और इनके जन्म से पूर्व के काल को ईसा पूर्व कहते हैं और जन्म के बाद की काल की गणना ईस्वी में की जाती है।।।। यूरोप, अमेरिका आदि ईसाई देशों की तरह भारत में भी पच्चीस दिसम्बर को क्रिसमस की धूम के मध्य लोग एक- दूसरे को बधाई देना नहीं भूलते, लेकिन क्रिसमस को लेकर लोगों के मन...

और लोड करें