Thursday

24-04-2025 Vol 19

विपक्ष के लिए विचारणीय

बेशक, आज भाजपा के पास अकूत संसाधन हैं। लेकिन उसकी जीत का सिर्फ यही कारण नहीं है। बल्कि वह अपनी हिंदुत्व की राजनीति के पक्ष में इतनी ठोस गोलबंदी कर चुकी है कि चुनावों में उसे परास्त करना अति कठिन हो गया है।

चार राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों का केंद्रीय संदेश यह है कि विपक्ष के पास भारतीय जनता पार्टी की राजनीति की कोई काट नहीं है। तेलंगाना का नतीजा अपवाद है- इसलिए कि वहां सत्ता एक गैर-भाजपा पार्टी के हाथ से निकल कर दूसरी गैर-भाजपा पार्टी के हाथ में गई है। इससे राष्ट्रीय राजनीति में भाजपा को कोई नुकसान नहीं होगा। असलियत तो यह है कि वहां भी भाजपा ने अपनी सीट और वोट प्रतिशत में इजाफा ही किया है। बहरहाल, आज भी भाजपा का मुख्य गढ़ हिंदी भाषी प्रदेश और देश का पश्चिमी हिस्सा हैं। जिन तीन हिंदी प्रदेशों में चुनाव हुआ, वहां भाजपा ने अपना दबदबा फिर दिखा दिया है। स्पष्ट है कि इन तीन राज्यों में मुख्य विपक्षी पार्टी यानी कांग्रेस भाजपा से होड़ में आगे निकलने का तोड़ नहीं ढूंढ सकी। इसकी वजह यह है कि जहां 2014 के बाद भारतीय राजनीति का संदर्भ बिंदु आमूल रूप से बदल चुका है, वहीं ये पार्टी (वैसे तमाम विपक्षी पार्टियों का यही हाल है) अपने अतीत और कुछ सियासी टोना-टोटकों से भाजपा को हरा देने की जुगत से ज्यादा नहीं सोच पाती।

बेशक, आज भाजपा के पास धन एवं प्रचार माध्यमों के रूप में अकूत संसाधन हैं। लेकिन उसकी जीत का सिर्फ यही कारण नहीं है। बल्कि वह अपनी हिंदुत्व की राजनीति के पक्ष में इतनी ठोस गोलबंदी कर चुकी है कि चुनावों में उसे परास्त करना अति कठिन हो गया है। राष्ट्रवाद को हिंदुत्व के नजरिए से परिभाषित कर उसने बड़ी संख्या में लोगों की मन-मस्तिष्क में पैठ बना ली है। दूसरी तरफ विपक्ष में कोई भाजपा की वैचारिक शक्ति का विकल्प तैयार करने का प्रयास करता हुआ भी नहीं दिखता है। संभवतः विपक्षी दलों को लगता है कि वे मतदाताओं को प्रत्यक्ष लाभ बांटने की होड़ में आगे दिखा कर चुनाव जीत लेंगे। जबकि भाजपा इस बिंदु पर भी उन्हें ज्यादा जगह नहीं देती। इस पृष्ठभूमि में विपक्षी दलों के लिए असल विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या बिना राजनीति की नई परिकल्पना किए और बिना राजनीति करने के नए तरीके ढूंढे वे कभी भी भाजपा को चुनौती दे पाएंगे?

NI Editorial

The Nayaindia editorial desk offers a platform for thought-provoking opinions, featuring news and articles rooted in the unique perspectives of its authors.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *