आर्थिकी के नियमों के खिलाफ जाते हुए डॉनल्ड ट्रंप ने भूमंडलीकरण के दौर में बने यथार्थ को पलटने की कोशिश की। मगर इस क्रम में उन्होंने अमेरिका की कमजोरी को जग-जाहिर कर दिया है। इससे अमेरिकी रुतबे पर स्थायी प्रहार हुआ है।
टैरिफ वॉर में ट्रंप की उलझन बढ़ी
चीन के खिलाफ टैरिफ वॉर को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के कदम लड़खड़ाते दिख रहे हैं। पिछले दो दिन में इस बारे में खुद उन्होंने और उनके वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने अपनी कमजोरी जाहिर करने वाले बयान दिए हैँ। खबरों के मुताबिक पूंजीपतियों के साथ एक बैठक में बेसेंट ने कहा कि अमेरिका चीन पर लगाए गए टैरिफ को ज्यादा दिन लागू रखने की स्थिति में नहीं है।
इसके बाद ट्रंप ने कहा कि 145 प्रतिशत बहुत ऊंची दर है, जिसे नीचे लाया जाएगा। मगर एक दिन बाद उन्होंने कहा कि ऐसा कोई फैसला अभी हुआ नहीं है। इस बीच एक अमेरिकी अखबार ने खबर दी कि टैरिफ को घटा कर 50 से 65 प्रतिशत के बीच लाया जाएगा। इन चर्चाओं से अमेरिका का शेयर बाजार संभला है।
निवेशकों में धारणा बनी है कि आखिरकार ट्रंप प्रशासन बाजार की असलियत को समझने लगा है। बताया जाता है कि ट्रंप के रुख में बदलाव वॉलमार्ट, अमेजन और उपभोक्ता सामग्री स्टोर्स की मालिक कुछ अन्य कंपनियों के अधिकारियों से मुलाकात के बाद आया। इन अधिकारियों ने आगाह किया कि दो-तीन हफ्तों में जरूरी चीजों की किल्लत हो जाएगी, जिससे महंगाई में तेज बढ़ोतरी होगी। इन स्टोर्स की ज्यादातर सामग्रियां चीन से आती हैं। उसके बाद ऊंचे स्तर पर जो प्रतिक्रियाएं दिखीं, उसका संकेत यही है कि ट्रंप प्रशासन अब समाधान ढूंढ रहा है।
इस क्रम में ऐसे बयान दिए गए हैं कि चीन से वार्ता होने वाली है। जबकि चीन की ओर से ऐसे कोई संकेत नहीं हैं। चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि अगर अमेरिका बातचीत से हल चाहता है, तो उसे पहले धमकी और जोर-जबरदस्ती की भाषा छोड़ कर बराबरी और दोतरफा सम्मान की भावना से आगे आना चाहिए। यह घटनाक्रम जाहिर करता है कि अर्थशास्त्र के बुनियादी नियमों के खिलाफ जाकर कोई आर्थिक मकसद हासिल नहीं हो सकता।
ट्रंप ने ऐसा कर भूमंडलीकरण के दौर में बने आर्थिक यथार्थ को पलटने की कोशिश की। मगर इस क्रम में उन्होंने अमेरिका की कमजोरी को जग-जाहिर कर दिया है। इससे अमेरिकी रुतबे पर स्थायी प्रहार हुआ है।
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