भारतीय निर्यातकों को अमेरिकी टैरिफ से भारी नुकसान होगा। दुर्भाग्यपूर्ण है कि इससे प्रभावित तबकों को राहत देने के उपायों पर सोच-विचार के बजाय नैरेटिव गढ़ने वाली इंडस्ट्री लोगों को उलटी कहानी बताने में जुट गई है।
भारत पर डॉनल्ड ट्रंप के टैरिफ का डंडा चलते ही सत्ताधारी पार्टी का प्रचार तंत्र एवं मेनस्ट्रीम मीडिया यह कहानी फैलाने में जुट गए हैं कि इस अमेरिकी कदम का असल नुकसान अमेरिका के लोगों को उठाना होगा। अभी कुछ समय पहले, जब तक अमेरिका से द्विपक्षीय व्यापार समझौते की संभावना कायम थी, यह इकॉसिस्टम इसे नरेंद्र मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि बताने में जुटा था कि भारत संभवतः ट्रंप के टैरिफ से बच जाएगा। तब बताया जा रहा था कि समझौते से भारत के क्या- क्या फायदे होंगे। मगर अब कहानी बदल गई है। जबकि हकीकत यह है कि अमेरिका को निर्यात से जुड़े भारतीय कारोबारी घोर आशंकाओं से गुजर रहे हैं।
मसलन, वस्त्र निर्यातकों की संस्था एपेरेल एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल ने कहा है कि भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगना एक बड़ा झटका है। जब टैरिफ 25 प्रतिशत था, तभी इस संस्था के अधिकारियों ने कहा था कि उसके परिणामस्वरूप भारतीय निर्यात अमेरिका बाजार में प्रतिस्पर्धी नहीं रह जाएंगे, नतीजतन विक्रेताओं को अपने उत्पाद लागत से भी कम कीमत पर बेचने पड़ सकते हैँ। यही बात रत्न एवं जेवरात निर्यातकों ने कही है। उनकी संस्था जेम एवं जुलरी एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल ने आगाह किया है कि ट्रंप के टैरिफ का उनके कारोबार पर बेहद गंभीर असर होगा और इस कारण बड़ी संख्या में नौकरियां जाएंगी। काउंसिल ने छह अगस्त को (जिस रोज ट्रंप ने टैरिफ बढ़ा कर 50 प्रतिशत किया) “अंधकारमय दिन” करार दिया है।
दरअसल, भारत से अमेरिका को निर्यात होने वाली अधिकांश सामग्रियां अति उच्च या उच्च आयात शुल्क की श्रेणियों में आ गई हैं। सिर्फ पेट्रोलियम उत्पाद, औषधि और स्मार्टफोन निम्न टैरिफ के दायरे में हैं, लेकिन ट्रंप ने जल्द ही औषधियों पर ऊंचा शुल्क लगाने की बात कही हुई है। 50 फीसदी टैरिफ होने के बाद भारत ज्यादातर दूसरे देशों की तुलना में अमेरिकी टैरिफ का अधिक बोझ झेलने वाला देश बन गया है। इसका नुकसान अपरिहार्य है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि इससे प्रभावित तबकों को राहत देने के उपायों पर सोच-विचार के बजाय सत्ता पक्ष की नैरेटिव गढ़ने वाली इंडस्ट्री लोगों को उलटी कहानी बताने में जुट गई है।