भागवत पुराण में हयग्रीव की एक और कथा आती है, जो मत्स्यावतार से जुड़ी है। इसमें कहा गया है कि प्रलय काल के दौरान असुर हयग्रीव ने ब्रह्मा की नींद में वेद चुरा लिए और उन्हें सागर में छिपा दिया।
विष्णु ने मत्स्य रूप में प्रकट होकर मनु, सप्तर्षियों और वेदों की रक्षा की और असुर का वध कर ज्ञान की परंपरा को फिर स्थापित किया।
8 अगस्त हयग्रीव उत्पत्ति दिवस
– अशोक “प्रवृद्ध”
भारतीय पौराणिक परंपरा में कई पात्र ऐसे हैं जो एक ओर अद्भुत और प्रेरणास्पद हैं, तो दूसरी ओर जिज्ञासा और विवाद का विषय भी रहे हैं। हयग्रीव भी ऐसा ही एक नाम है, जिसे लेकर लंबे समय से विद्वानों के बीच चर्चा रही है।
हयग्रीव शब्द का अर्थ है – घोड़े की गर्दन वाला। ‘हय’ यानी घोड़ा और ‘ग्रीव’ यानी गला या गर्दन। पौराणिक ग्रंथों में हयग्रीव दो रूपों में आते हैं – एक विष्णु का अवतार, और दूसरा एक दैत्य।
कई पुराणों के अनुसार, भगवान विष्णु के 24 प्रमुख अवतारों में हयग्रीव अवतार का भी उल्लेख है, जिसमें उनका सिर घोड़े का और शरीर मानव का होता है। वहीं, एक अन्य कथानुसार हयग्रीव नाम का एक दैत्य भी था, जिसे भगवान विष्णु ने हयग्रीव रूप में अवतरित होकर ही पराजित किया।
इन दो रूपों के चलते कई लोगों में भ्रम की स्थिति रहती है। यही कारण है कि हयग्रीव से जुड़ी कथाएं अलग-अलग ग्रंथों में अलग स्वरूपों में दर्ज हैं।
असुर हयग्रीव की कथा
कई पुराणों में हयग्रीव नामक एक असुर का वर्णन है, जो अत्यंत बलशाली और ज्ञानी था। उसने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा से अमरता और अपराजेयता का वर मांगा। वरदान के बाद वह अहंकारी हो गया और चारों वेद चुराकर समुद्र के भीतर छिपा दिए।
वेदों के लोप से संसार में अज्ञानता फैल गई, धर्म का मार्ग कठिन हो गया। तब देवताओं ने भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की। विष्णु ने हयग्रीव रूप में अवतार लेकर समुद्र की गहराई में जाकर उस दैत्य का वध किया और वेदों को पुनः ब्रह्मा को लौटा दिया।
मत्स्यावतार से जुड़ा संदर्भ
भागवत पुराण में हयग्रीव की एक और कथा आती है, जो मत्स्यावतार से जुड़ी है। इसमें कहा गया है कि प्रलय काल के दौरान असुर हयग्रीव ने ब्रह्मा की नींद में वेद चुरा लिए और उन्हें सागर में छिपा दिया।
विष्णु ने मत्स्य रूप में प्रकट होकर मनु, सप्तर्षियों और वेदों की रक्षा की और असुर का वध कर ज्ञान की परंपरा को फिर स्थापित किया।
मधु–कैटभ कथा में हयग्रीव
देवी भागवत में एक और कथा है, जिसमें मधु और कैटभ नामक दो असुरों ने वेद चुरा लिए थे। तब विष्णु ने हयग्रीव रूप लेकर उनका वध किया। शिव ने उन्हें सुदर्शन चक्र दिया, जिससे वे दोनों मारे गए। उनके शरीर के टुकड़ों से पृथ्वी की बारह परतें बनीं, और मेद गिरने से धरती को मेदिनी कहा गया।
महाभारत की कथा और विष्णु का सिर कटना
महाभारत में हयग्रीव से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा है। इसमें हयग्रीव नामक दानव ने देवी पार्वती से वरदान लिया कि उसकी मृत्यु केवल हयग्रीव के हाथों हो सकती है। उसे विश्वास था कि दूसरा कोई हयग्रीव है ही नहीं।
उधर, एक प्रसंग में लक्ष्मी ने विष्णु को श्राप दे दिया कि उनका मस्तक कट जाएगा। बाद में जब विष्णु युद्ध में हयग्रीव दानव से भिड़े, तो श्राप के प्रभाव से उनका सिर कट गया। देवताओं की चिंता बढ़ी—अब दानव का अंत कैसे होगा?
तब पार्वती ने उपाय सुझाया कि विष्णु के धड़ पर घोड़े का सिर जोड़ा जाए। ब्रह्मा ने अश्विनीकुमारों को बुलाया और उन्होंने विष्णु के शरीर पर अश्वमुख जोड़ दिया। इस तरह विष्णु हयग्रीव रूप में पुनः जीवित हुए और दानव का अंत कर दिया।
वेदों की रक्षा और मत्स्य अवतार की भूमिका
एक अन्य कथा में बताया गया है कि दानव हयग्रीव ने वेदों को बालक रूप में ब्रह्मा से छलपूर्वक चुरा लिया। तब विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर न केवल उन्हें मुक्त किया, बल्कि मनु को प्रलय से बचाया और सृष्टि को नया जीवन दिया।
श्रावण चतुर्दशी और पूजा परंपरा
मान्यता है कि भगवान विष्णु ने हयग्रीव रूप में श्रावण शुक्ल चतुर्दशी के दिन अवतार लिया था। इसलिए इस दिन को हयग्रीव उत्पत्ति दिवस के रूप में मनाया जाता है।
दक्षिण भारत में विशेष रूप से इस दिन भगवान हयग्रीव की पूजा होती है। उन्हें ज्ञान और शिक्षा के देवता के रूप में पूजा जाता है। छात्र, विद्यार्थी और साधक इस दिन विशेष श्रद्धा के साथ उपासना करते हैं।
हयग्रीव: ज्ञान की रक्षा का प्रतीक
हयग्रीव केवल एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि वह उस चेतना का प्रतीक हैं जो ज्ञान को सुरक्षित रखने, अज्ञान से संघर्ष करने और धर्म के मार्ग को पुनर्स्थापित करने के लिए सदैव जागरूक है।
आज के युग में, जब सूचना का विस्फोट है लेकिन ज्ञान और विवेक का अभाव है, तब हयग्रीव की स्मृति एक दिशा देती है — कि हर युग में जब अंधकार बढ़ता है, तब एक ‘हयग्रीव’ की आवश्यकता होती है, जो प्रकाश लौटाए।