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राहुल का ‘एटम बम’ तो फुस्स हो गया

बिहार में एसआईआर का पहला चरण पूरा होने के बाद जो मसौदा मतदाता सूची जारी हुई है उसका अध्ययन करने के बाद देश में चुनाव सर्वेक्षण करने वाली कई प्रतिष्ठित संस्थाओं ने दावा किया है कि बिहार में नाम कटने का कोई पैटर्न नहीं है यानी जाति या धर्म या किसी पार्टी का गढ़ देख कर नाम नहीं काटा गया है, बल्कि वस्तुनिष्ठ तरीके से नाम काटे गए हैं।… मुश्किल यह है कि  राहुल गांधी औपचारिक रूप से आयोग के सामने  कोई शिकायत दर्ज नहीं करा रहे हैं। क्या उनको अपने आरोपों पर स्वंय भरोसा नहीं है?  

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी कांग्रेस की लगातार चुनावी हार से इतने बौखलाए हुए हैं कि देश की संवैधानिक संस्थाओं का सम्मान करना ही भूल गए हैं। वे आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो  अरविंद केजरीवाल द्वारा शुरू की गई ‘हिट एंड रन’ की राजनीति के मोड में आ गए हैं। देश की जो संस्था उनके मन के हिसाब से काम नहीं करती है वे उस संस्था पर आरोप लगा देते हैं। इतने जिम्मेदार पद पर बैठे होने के बावजूद वे कभी भी अपने आरोपों को प्रमाणित करने की जरुरत नहीं समझते हैं। वे आरोप लगा कर आगे बढ़ जाते हैं, किसी और संस्था पर आरोप लगाने के लिए। यही काम उन्होंने चुनाव आयोग के साथ किया है।

भारत में स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी जिस संस्था पर है और जो संस्था आजादी के बाद से लगातार इस जिम्मेदारी को निभा रही है, जिसका कामकाज देखने दुनिया भर के देशों की चुनाव संस्थाओं के लोग आते हैं, जिसे दुनिया के देशों में चुनावों की निगरानी के लिए आमंत्रित किया जाता है उस संस्था की साख बिगाड़ने का काम देश का नेता प्रतिपक्ष करे तो इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है! इसके बावजूद आयोग ने संयम के साथ उनके हर सवाल का जवाब देने की कोशिश की है। परंतु मुश्किल यह है कि  राहुल गांधी औपचारिक रूप से आयोग के सामने  कोई शिकायत दर्ज नहीं करा रहे हैं। क्या उनको अपने आरोपों पर स्वंय भरोसा नहीं है?

असल में कांग्रेस पार्टी जब से लगातार तीसरा लोकसभा चुनाव हारी है और फिर एक के बाद एक राज्यों में उसे करारी हार मिली है तब से  राहुल गांधी अपनी राजनीतिक कमजोरियों का आकलन करने  की बजाय चुनाव आयोग पर ठीकरा फोड़ने लगे हैं। वे भाजपा की सांगठनिक शक्ति,  प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी के प्रति देश के लोगों के अगाध स्नेह व समर्थन और  केंद्रीय गृह मंत्री  अमित शाह की चुनावी रणनीति की सफलता को स्वीकार करने की बजाय भाजपा की जीत को ‘मैच फिक्सिंग’ बता रहे हैं। उनको ध्यान रखना चाहिए कि यह चुनाव आयोग पर सवाल नहीं है, बल्कि देश के 140 करोड़ लोगों और देश के करोड़ों मतदाताओं की समझदारी और उनके दिए जनादेश पर सवाल है। देश की सरकार को अपने परिवार की सत्ता मानने वाले  राहुल गांधी का यह अहंकार है कि वे जनादेश को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। ध्यान रहे 64 करोड़ मतदाताओं ने 2024 में मतदान किया और उन्होंने लगातार तीसरी बार  नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आस्था दिखाई।  राहुल गांधी इस जनादेश का अपमान कर रहे हैं।

संसद का मानसून सत्र चल रहा है और वहां अपनी बात कहने की बजाय  राहुल गांधी ने  घोषणा कर दी कि वे चुनाव आयोग के खिलाफ ‘एटम बम’ फोड़ेंगे। ‘एटम बम’ फोड़ने के लिए  उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और बेंगलुरू सेंट्रल लोकसभा सीट की महादेवपुरा विधानसभा सीट को केस स्टडी के तौर पर पेश किया, जिसमें उन्होंने दावा किया कि एक लाख से ज्यादा वोट चोरी किए गए हैं और उसकी वजह से भाजपा बेंगलुरू सेंट्रल सीट पर जीती है। लेकिन उनका यह ‘एटम बम’ फुस्स हो गया। किसी ने उनके इस खुलासे पर ध्यान नहीं दिया। यहां तक कि कांग्रेस की सहयोगी पार्टियों को भी लगा कि उन्होंने जितना माहौल बनाया था वैसा कुछ भी  उनके खुलासे में नहीं है। यह ‘खोदा पहाड़ निकली चुहिया’ वाला मामला है।  राहुल गांधी ने जो खुलासे किए हैं उससे उनका अपना अज्ञान भी जाहिर हुआ है। यह भी पता चला है कि वे मतदाता सूची बनाने से लेकर मतदान तक की प्रक्रिया से कितने अनभिज्ञ हैं।

राहुल गांधी ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कई तरह से वोट चोरी का आरोप लगाया। उन्होंने एक तरीका बताया फर्जी मतदाता का, दूसरा बताया फर्जी पते का, तीसरा बताया एक पते पर बहुत से लोगों का नाम होने का और चौथा बताया एक व्यक्ति के कई जगह मतदान करने का। उन्होंने पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन में 22 स्लाइड्स दिखाए और कुछ आंकड़े प्रस्तुत किए। उन्होंने यह दावा किया कि चुनाव आयोग ने मशीन से पढ़ी जा सकने वाली वोटर लिस्ट नहीं दी इसलिए कांग्रेस की रिसर्च टीम को एक सीट की डिटेल जुटाने में छह महीने लगे।

छह महीने लगा कर जुटाए गए ब्योरे में उन्होंने बताया कि महादेवपुरा में कई मतदाताओं के नाम के आगे मकान नंबर जीरो लिखा हुआ है। उन्होंने कहा कि कई मकान नंबर पर बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम दर्ज हैं। इसी तरह उन्होंने कहा कि हजारों मतदाता ऐसे हैं, जो मतदाता सूची में दर्ज पते पर नहीं रहते हैं। इसी आधार पर उन्होंने दावा किया कि इन गड़बड़ियों के कारण भाजपा का उम्मीदवार चुनाव जीता है।

अगर बिंदुवार इन आरोपों को समझा जाए तो पता चलेगा कि ये आरोप बहुत बचकाने हैं। जैसे उन्होंने कहा कि एक मकान नंबर पर बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम दर्ज हैं। तो यह बहुत सामान्य प्रक्रिया है। मतदाता सूची बनाते समय खासकर शहरी इलाकों में जिन बस्तियों में घरों को नगर निगम की ओर से मकान नंबर आवंटित नहीं होते हैं वहां एक ‘नेशनल हाउसिंग नंबर’ जारी किया जाता है और आसपास के सभी लोगों का नाम उस मकान नंबर पर दर्ज होता है। इसी तरह मकान नंबर के सामने जीरो लिखे होने का मतलब यह नहीं होता है कि उस मकान  में लोग नहीं रहते हैं या वहां जिनका नाम दर्ज है वे फर्जी लोग हैं।

राहुल गांधी के आरोप लगाने के बाद कई मीडिया समूहों ने उनके चुनाव क्षेत्र रायबरेली की मतदाता सूची निकाल कर उसकी रिपोर्ट पेश कर दी। ध्यान रहे रायबरेली से पहले मती सोनिया गांधी जीतती रही हैं और इस बार  राहुल गांधी जीते हैं। रायबरेली की मतदाता सूची में दर्जनों मतदाताओं के नाम के आगे मकान नंबर जीरो लिखा हुआ है। इसी तरह दर्जनों मकानों में 20 या 30 लोगों के नाम दर्ज हैं। तो  राहुल गांधी के तर्क से यह माना जाए कि यह फर्जीवाड़ा है और मती सोनिया गांधी इस फर्जीवाड़े से जीतती थीं और अब वे भी इस फर्जीवाड़े से जीते हैं? दिलचस्प बात यह है कि मीडिया समूहों की टीम ने यह काम एक दिन में कर दिया। यानी जिस काम को करने में कांग्रेस की रिसर्च टीम ने छह महीने लगाए वह काम अलग अलग न्यूज चैनलों के लोगों ने एक दिन में कर दिखाया। इससे भी कांग्रेस के संगठन और उसके नेताओं के कामकाज की झलक मिलती है।

बहरहाल,  राहुल गांधी ने ‘एटम बम’ बता कर जो आरोप लगाए हैं वह असल में मतदाता सूची की गड़बड़ी है, जिसे दूर करने के लिए चुनाव आयोग ने बिहार से मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर की शुरुआत की है।  राहुल गांधी और समूचा विपक्ष उसका भी विरोध कर रहा है। सवाल है कि ये दोनों बातें एक साथ कैसे हो सकती हैं? आप मतदाता सूची में गड़बड़ी के आरोप भी लगाएंगे और उस गड़बड़ी को ठीक करने के लिए चलाए जा रहे अभियान का भी विरोध करेंगे! विपक्षी पार्टियां यही कर रही हैं।

वे बिहार में एसआईआर के मसले पर पिछले तीन हफ्ते से संसद की कार्यवाही नहीं चलने दे रही हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि बिहार में एसआईआर का पहला चरण पूरा होने के बाद जो मसौदा मतदाता सूची जारी हुई है उसका अध्ययन करने के बाद देश में चुनाव सर्वेक्षण करने वाली कई प्रतिष्ठित संस्थाओं ने दावा किया है कि बिहार में नाम कटने का कोई पैटर्न नहीं है यानी जाति या धर्म या किसी पार्टी का गढ़ देख कर नाम नहीं काटा गया है, बल्कि वस्तुनिष्ठ तरीके से नाम काटे गए हैं। वस्तुनिष्ठ तरीके से नाम काटने का मतलब है कि जिन मतदाताओं की मृत्यु हो गई है या जो मतदाता स्थायी तौर पर दूसरी जगह रहने चले गए हैं या जिन मतदाताओं के नाम एक से ज्यादा जगहों पर मतदाता सूची में दर्ज हैं, उनके नाम कटे हैं।

इससे तो किसी को शिकायत नहीं होनी चाहिए।  राहुल गांधी जो आरोप लगा रहे हैं वह इसी से जुड़ा है। अगर किसी पते पर दर्ज मतदाता नहीं मिल रहे हैं तो इसका मतलब है कि वे स्थायी रूप से शिफ्ट कर गए हैं और एसआईआर होगी तो उनका नाम कट जाएगा। परंतु वे शिकायत भी कर रहे हैं कि इतनी संख्या में मतदाता दर्ज पते पर नहीं मिल रहे हैं और दूसरी ओर एसआईआर के जरिए ऐसे मतदाताओं का नाम हटाने का भी विरोध कर रहे हैं!

‘एटम बम’ फोड़ने के चक्कर में  राहुल गांधी ने जैसे अपने अज्ञान का प्रदर्शन किया है, वह भी गजब है। उनको पता ही नहीं है कि जिसे वे चुनाव आयोग का फर्जीवाड़ा बता रहे हैं वह मतदाता सूची की ऐसी सामान्य गड़बड़ी है, जो दशकों से चली आ रही है। पहले चुनाव के समय से मतदाता सूची में फर्जी मतदाता होने या बोगस वोटिंग होने की शिकायत मिलती रही है और चुनाव आयोग अलग अलग उपाय करके इसे रोकने के प्रयास करता रहता है। इसके लिए संक्षिप्त पुनरीक्षण यानी समरी रिवीजन लगातार चलता है और समय समय पर विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर किया जाता है। 2003 में आखिरी बार विशेष गहन पुनरीक्षण किया गया था।

राहुल गांधी, जिसे ‘एटम बम’ बता रहे हैं उसमें से कई गड़बड़ियां तो ऐसी हैं, जो नागरिकों की लापरवाही से होती हैं। लोग इस बात की चिंता नहीं करते हैं कि किसी की मृत्यु हो गई तो फॉर्म भर कर उसका नाम मतदाता सूची से कटवा दें। लोग इस बात की भी चिंता नहीं करते हैं कि दूसरी जगह शिफ्ट कर गए और वहां अपना नाम मतदाता सूची में दर्ज करा लिया तो पहली जगह से नाम कटवा लें। अगर कोई नेता इसको फर्जीवाड़ा कहता है और चुनाव आयोग पर इसका आरोप लगाता है तो उसकी समझदारी को क्या कहा जा सकता है! इसी को ठीक करने के लिए चुनाव आयोग ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण का अभियान शुरू किया है। लेकिन दुर्भाग्य से विपक्ष इसका भी विरोध कर रहा है। (लेखक दिल्ली में सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त विशेष कार्यवाहक अधिकारी हैं।)

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