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संघ परिवार: अब कुरान का प्रचार!

Byशंकर शरण,
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इंडियन साइंस कांग्रेस में रा.स्व.संघ के शिक्षण मंडल की संस्था ‘रिसर्च फॉर रिसर्जेंस फाउंडेशन’ ने सोने की स्याही से लिखी एक कुरान को प्रदर्शित किया। इस प्रकार, साइंस के साथ कुरान को स्थान देकर इस के रिसर्जेंस की महिमा भी रेखांकित कर दी! निस्संदेह, संघ परिवार के क्रिया-कलाप, हिन्दू-हित की दृष्टि से, दिनों-दिन भयावह रूप ले रहे हैं। ….यदि संघ-परिवार के रहनुमाओं को इस्लामी सिद्धांत-व्यवहार-इतिहास का रंच मात्र भी सही बोध होता तो वे कुरान को साइंस सम्मेलन में रखकर गौरवान्वित न होते।

अभी नागपुर विश्वविद्यालय में चल रही 108 वीं इंडियन साइंस कांग्रेस में रा.स्व.संघ के शिक्षण मंडल की संस्था ‘रिसर्च फॉर रिसर्जेंस फाउंडेशन’ ने सोने की स्याही से लिखी एक कुरान को प्रदर्शित किया। इस प्रकार, साइंस के साथ कुरान को स्थान देकर इस के रिसर्जेंस की महिमा भी रेखांकित कर दी! निस्संदेह, संघ परिवार के क्रिया-कलाप, हिन्दू-हित की दृष्टि से, दिनों-दिन भयावह रूप ले रहे हैं। फिर भी, कुरान को साइंस का दर्जा देकर प्रचार करना, और इसे अपना रिसर्च बताकर गदगद होना असंख्य संघ-कार्यकर्ताओं को भी हतप्रभ करने वाला है।

ऐसा करके संघ-शोधकर्ताओं, मार्गदर्शकों और नेताओं ने कुरान को बेजोड़ सलामी दी– किन्तु उसे शायद ही कभी पढ़ा। क्योंकि कुरान को पढ़ने वाला कोई भी गैर-मुस्लिम सिहरे बिना नहीं रह सकता। सदियों से विश्व के महानतम दार्शनिकों और विद्वानों – डेविड ह्यूम, तॉकेविल, शॉपेनहावर, गिब्बन, मार्क ट्वेन, बर्नार्ड शॉ, आदि – उसे पढ़कर सिहरते रहे हैं। कारण यही है कि उस में काफिरों के प्रति घृणा और हिंसा के आवाहन बारं-बार दुहराई गई, सिगनेचर-ट्यून जैसी है। उस में अल्लाह खुद कहता है कि कुरान ‘मेरी चेतावनी’ और ‘धमकी’ है (सूरा 50: आयत 45)। यह और आगे सभी शब्द, उद्धरण, प्रतिष्ठित मुस्लिम संस्थानों द्वारा प्रकाशित सब से प्रमाणिक अंग्रेजी (मुहम्मद पिकथॉल) या हिन्दी (मुहम्मद फारुख खाँ) पाठ से लिए गए हैं। ताकि गलत अर्थ/व्याख्या के बहाने न दिए जाएं।

काफिरों, यानी गैर-मुस्लिमों के लिए कुरान एक डरावनी किताब है। इस की कुल 64 % सामग्री काफिरों एवं जिहाद के बारे में हैं। इस में लगभग 400 बार काफिर शब्द का उल्लेख हुआ है। कुछ लोग ‘काफिर’ के अर्थ पर भरमाते हैं। परन्तु कुरान में सैकड़ों बार उस का सीधा अर्थ यही है कि जो अल्लाह और उस के प्रोफेट मुहम्मद को न माने।

वस्तुतः कुरान ही काफिर को (यानी संघ-परिवार महानुभावों को भी) परिभाषित करता है। कि जो अल्लाह और उन के प्रोफेट मुहम्मद को न अपनाए, वह काफिर है। जिस के प्रति कुरान घोर नकारात्मक भाव रखते हुए खुली घोषणा करता है, “अल्लाह काफिरों का दुश्मन है” (कुरान, 2:98) और ‘‘दुश्मन वे हैं जो अल्लाह के कहे से इन्कार करते हैं’’ (60-1)।  उस में मूर्तिपूजकों को ‘जानवर’, ‘अंधे’, ‘बहरे’, ‘गूँगे’, (2:171) और ‘गंदे’ (22:30), ‘बंदर’, ‘सुअर’ (5:60) आदि  की संज्ञा दी गई है। इस प्रकार, हिन्दू, बौद्ध, जैन, जैसे समुदायों को सर्वाधिक घृणित मानता है। अब संघ-परिवार इसी पुस्तक का प्रचार ‘साइंस’ के रूप में कर रहा है!

याद रहे, कुरान में ऐसी बातें कोई इक्की-दुक्की नहीं। उस में आधी से अधिक सामग्री काफिरों पर ही है। जिस में एक भी अच्छी बात नहीं। जैसे, काफिर से घृणा की जाती है (98:6, 40:35);  काफिर का गला काटा जा सकता है (47:4); मार डाला जा सकता है (9:5); काफिर को भरमाया जा सकता है (6:25); काफिर के विरुद्ध षड्यंत्र किया जा सकता है (86:15); काफिर को आतंकित किया जा सकता है (8:12); काफिर को अपमानित किया जा सकता है (9:29); काफिर को दोस्त नहीं बनाया जा सकता (3:28); काफिरों से दोस्ती करने पर मुसलमान को दंड मिलेगा (4-144); जब मुसलमान मजबूत हों तो काफिरों से हरगिज सुलह न करें (47: 35); आदि।

कुरान दूसरे धर्मों, उन के देवी-देवताओं को झूठा कहता है। कुरान के अनुसार, “केवल अल्लाह सच है, और दूसरे पुकारे जाने वाले देवी-देवता झूठ हैं।” (22:62)। उस में अन्य देवी-देवताओं की खिल्ली उड़ाई गई है कि उन्हें बुला कर देख लो, बेचारे क्या कर सकते हैं तुम्हारे लिए (7: 194-195)। अन्य देवी-देवताओं को निकृष्ट बताया गया है, “जो न किसी को लाभ पहुँचा सकते हैं, न हानि” (25:55)। जो अल्लाह को न मानकर झूठे ईश्वर को मानते हैं, वे जहन्नुम की आग में जाएंगे। फिर, “मुसलमानों का संरक्षक अल्लाह है, काफिरों का कोई संरक्षक नहीं है।” (47:11)।

इस प्रकार, कुरान में दूसरे धर्म मानने वालों के लिए हर तरह की कटु बातें और अपशब्द हैं। जैसे, “जो हमारी आयतें नहीं मानते, वे बहरे, गूँगे और अँधे हैं।” (6:39)। इसे अल्लाह का कथन बताया गया है कि “हम ने बिलकुल साफ संकेत (आयतें) भेजी हैं, और केवल बदमाश ही उस से इंकार करेंगे।” (2:99)। उस में खुली घोषणा है कि “काफिरों के लिए दुःखदायी यातना तय है।” (2:104)। साथ ही, “अल्लाह का संदेशवाहक सभी रिलीजनों पर भारी पड़ेगा, चाहे मूर्तिपूजक इसे कितना भी नापसंद क्यों न करें।” (9:33)।

इसी रौ में निरंतर मुसलमानों को प्रेरित करते हुए कुरान निर्देश देता है, ‘‘इसलिए, कमजोर न बनो और काफिरों को शान्ति प्रस्तावित न करो, जब तुम्हारा हाथ ऊपर हो। क्योंकि अल्लाह तुम्हारे साथ है और तुम्हें तुम्हारे ईनाम देने में कंजूसी नहीं करेगा।’’ (47-35)। यानी, जब मुसलमान कमजोर हों तो शान्ति-सुलह रख सकते हैं। यही इस की व्याख्या करता है कि दुनिया में जहाँ-जहाँ मुस्लिम जनसंख्या प्रतिशत कम है, वहाँ वे अपेक्षाकृत शान्ति से रहते हैं। किन्तु तुलनात्मक संख्या बढ़ते ही वहाँ झगड़े, हिंसा, दंगे, शुरू हो जाते हैं। यह पूरी दुनिया का अनुभव है।

पूरी कुरान पढ़कर, तथा सुन्ना यानी सीरा और हदीस, से उस की पुष्टि करके, निस्संदेह यही अर्थ मिलता है कि काफिरों को जिहाद द्वारा खत्म करना इस्लाम का केंद्रीय विचार है।  कुरान में कुल 24 %  सामग्री जिहाद से संबंधित है। इस संबंधित कुल 111 आयतें हैं। उस में जिहाद का एक मात्र अर्थ काफिरों का सफाया ही है: “मारना और मरना”, slay and be slain  (9:111)। अन्य कोई अर्थ उस में नहीं। कुछ लोग जिहाद को ‘आत्म-सुधार’ कहते हैं। पर संपूर्ण इस्लामी शास्त्र (कुरान+सीरा+ हदीस) में यह नगण्य हिस्सा है। हदीसों में 98 % विवरण सशस्त्र-हिंसा से संबंधित हैं। सुन्ना में भी बार-बार दुहराई गई बात यही है कि सब से इस्लाम कबूल करवाओ, काफिरों को जिम्मी बना कर अपमानित हालत में रखो, उन से जजिया टैक्स लो, उन्हें भगाओ, या मार डालो।

सूरा 2, और सूरा 8 में जिहाद लड़ने, और लूट का माल बाँटने का वर्णन है। सूरा 8 का शीर्षक भी है अल-अनफाल (Spoils of War), जिस की सभी 75 आयतें मुसलमानों द्वारा काफिरों पर हमला करके जीतने के बाद लूट का माल बाँटने के बारे में है। कालक्रमानुसार सूरा 9 ही कुरान का अंतिम सूरा भी है। इस मे जिहाद को स्थाई घोषित किया गया है, यानी जब तक पूरी दुनिया अल्लाह की न हो जाए तब तक काफिरों को जहाँ पाओ, मार डालो, उन पर घात लगाओ, छिप कर वार करो, आदि (9: 5-29, 38-49)। उन मुसलमानों को भी फटकारा और धमकी दी गई है, जो जिहाद से बचना चाहते हैं।

इस प्रकार, कुरान का सिद्धांत-व्यवहार काफिरों के विरुद्ध असहिष्णुता और हिंसा से भरा है। यही सारी दुनिया में वास्तविक इतिहास भी रहा है, जो सदियों के मुस्लिम साहित्य में ही एक जैसा, स्पष्ट वर्णित मिलता है। चूँकि उस सिद्धांत-व्यवहार को इस्लामी ईमाम, आलिम-उलेमा आज भी सही और गर्वपूर्वक अक्षरशः अनुकरणीय मानते हैं, इसलिए उस के नतीजों का हिसाब करना चाहिए।

सीरा और हदीस को मिलाकर कुरान का पूरा आकलन करें, तो इस्लाम का एक मात्र लक्ष्य है – जैसे हो काफिरों का खात्मा। इतने तीखेपन से कि मुसलमानों को अपने सगे-संबंधियों तक से दुराव रखने के लिए कहा गया है। उस में धमकी के साथ यह निर्देश है, ‘‘ओ मुसलमानों! अपने पिता या भाई को भी गैर समझो, अगर वे अल्लाह पर ईमान के बजाए कुफ्र पसंद करते हों। तुम्हारे पिता, भाई, पत्नी, सगे-संबंधी, संपत्ति, व्यापार, घर – अगर ये तुम्हें अल्लाह और उन के प्रोफेट, तथा अल्लाह के लिए लड़ने (जिहाद) से ज्यादा प्यारे हों, तो बस इन्तजार करो अल्लाह तुम्हारा हिसाब करेगा।’’ (9: 23,24)। यह सब कोई कोरी बातें नहीं। पूरी दुनिया में अनगिनत इस्लामी संगठनों और नेताओं द्वारा नित्य ठीक वही भावना और क्रिया-कलाप दिखाए जा रहे हैं।

यदि संघ-परिवार के रहनुमाओं को इस्लामी सिद्धांत-व्यवहार-इतिहास का रंच मात्र भी सही बोध होता तो वे कुरान को साइंस सम्मेलन में रखकर गौरवान्वित न होते।

By शंकर शरण

हिन्दी लेखक और स्तंभकार। राजनीति शास्त्र प्रोफेसर। कई पुस्तकें प्रकाशित, जिन में कुछ महत्वपूर्ण हैं: 'भारत पर कार्ल मार्क्स और मार्क्सवादी इतिहासलेखन', 'गाँधी अहिंसा और राजनीति', 'इस्लाम और कम्युनिज्म: तीन चेतावनियाँ', और 'संघ परिवार की राजनीति: एक हिन्दू आलोचना'।

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