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संवैधानिक प्रमुख कौन… राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री…?

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भोपाल। आजादी के 75 साल बाद विश्व का सबसे अग्रणी ‘लोकतंत्री देश’ भारतवर्ष क्या आज भी ‘लोकतंत्री देश’…. है? इस देश में क्या आज किसी भी क्षेत्र में प्रजातंत्र या लोकतंत्र के दर्शन होते हैं? जहां प्रजा या लोग नहीं बल्कि मुट्ठी भर राजनेता प्रजातंत्र के नाम पर छद्म तानाशाही चला रहे हो उस देश को प्रजातंत्री कैसे कहा जा सकता है? जहां चंद राजनेताओं ने स्वयं संवैधानिक प्रमुख के अधिकार हथिया लिया हो उस देश को संवैधानिक रूप से प्रजातंत्र कैसे कहा जा सकता है? ….जी हां… चर्चा यहां हमारे अपने भारत की ही कर रहा हूं जहां अब संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति नहीं बल्कि प्रधानमंत्री जी को माना जा रहा है और राष्ट्रपति जी को प्रधानमंत्री के अधीन एक राष्ट्रीय शख्सियत?

संदर्भ: संसद भवन उद्घाटन

यह सवाल आज के ताजे संदर्भ में हर कहीं उठाया जा रहे हैं, जबकि नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर संवैधानिक सवाल उठाए जा रहे हैं और लगभग डेढ़ दर्जन प्रति पक्षी दलों ने रविवार को आयोजित होने वाले इस आयोजन के बहिष्कार की घोषणा कर दी है, उक्त नवनिर्मित संसद भवन का उद्घाटन माननीय प्रधानमंत्री के हाथों घोषित है, जबकि कांग्रेस सहित डेढ़ दर्जन प्रतिपक्षी दल देश के संवैधानिक प्रमुख महामहिम राष्ट्रपति जी के संयुक्त कर कमलों से उक्त संवैधानिक भवन के उद्घाटन की मांग कर रहे हैं, कहा जा रहा है कि क्योंकि संसद एवं उसका भवन हमारे संविधान से जुड़ा है, इसलिए इसका शुभारंभ भी संवैधानिक प्रमुख के कर कमलों से होना चाहिए, लेकिन सरकार का फैसला अपनी जगह अटल है संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री जी ही करेंगे और प्रतिपक्ष चाहे इस अवसर पर आए या ना आए, इसकी किसी को कोई चिंता नहीं है, मौजूदा सरकार की इस भावना को लोकतंत्र में किस खूबसूरती के साथ देखा जाएगा यह हर कोई जानता है।

वैसे मौजूदा सरकार का लोकतंत्र होने का यह प्रमाण कोई नया नहीं है, इसके पहले भी यही सरकार कई ऐसे फैसले ले चुकी हैं जो ना सिर्फ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा व वाद-विवाद के प्रमुख बिंदु बने, बल्कि वे भारत के लोकतंत्र इतिहास में दर्ज हो कर रह गए।

यदि हम सिर्फ ताजे मामले को संवैधानिक व कानूनी दृष्टि से राजनीति से परे रहकर देखे तो प्रतिपक्ष ही दलों की मांग को किसी भी कसौटी पर खारिज नहीं किया जा सकता। सवाल यह है कि आखिर हमारे लोकतंत्री देश का संवैधानिक प्रमुख कौन है? राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री? मौजूदा देश में राजनीतिक हालत तो यह है कि यहां राष्ट्रपति का चयन से लेकर उनके पदारूढ़ होने तक, क्योंकि मुख्यतः प्रधानमंत्री की ही होती है, ऐसे में हमारे संविधान प्रमुख की क्या बिसात? यहां तो प्रधानमंत्री ही हर दृष्टि से प्रमुख है, फिर चाहे वह राजनीतिक हो या प्रजातांत्रिक? इसलिए अब तो इस बारे में सवाल उठाना गैर प्रजातांत्रिक माना जाता है?

….लेकिन मैं आज यह सब बहुत दुखी मन से लिख रहा हूं, क्योंकि मैंने हमारे प्रजातंत्र को जन्म से लेकर आज तक बहुत निकट से देखा वह परखा है मेरे विचार हो सकता है कुछ राजनेताओं को रास ना आए, किंतु मैंने अपने कर्तव्य का निर्वहन किया है फिर उसका हर्ष चाहे जो भी हो?

मेरी तो यही गुजारिश है कि क्योंकि हम अभी तक हमारे मूल संविधान में सवा सौ से अधिक संशोधन कर चुके हैं, तो एक और संशोधन यह भी कर दिया जाना चाहिए कि देश का संवैधानिक प्रमुख कौन होगा राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री जी? और फिर उसी हिसाब से हमारे लोकतंत्री देश को चलाया जाना चाहिए। यदि लोकतंत्री देश में बहुमत ही संविधान के अनुसार प्रमुख तत्व होता है, तो फिर बाकी सभी महत्वपूर्ण तत्वों को गोण मानकर उसी के आधार पर प्रजातांत्रिक सरकार को चलाया जाना चाहिए, फिर वह बहुमत चाहे किसी का भी क्यों ना हो?

अब यह तो पता नहीं कि हमारी प्रजातांत्रिक धारणाओं में सही रूप में कब बदलाव आएगा या लाया जाएगा, किंतु मै इसके प्रति आश्वस्त जरूर हूं क्योंकि मेरी लोकतंत्र या प्रजातंत्र के प्रति आस्था है।

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