यह ‘बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर’ किस्म की बात है कि भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन गया है। भारत की अर्थव्यवस्था चार ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा की हो गई है और उसने जापान को पीछे छोड़ दिया है। इससे पहले भारत ने ब्रिटेन को पीछे छोड़ा था और सब कुछ इसी रफ्तार से चलता रहा तो जल्दी ही जर्मनी को पीछे छोड़ कर भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाएगा। उसके बाद क्या? क्या भारत करीब 20 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था वाले चीन और 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था वाले अमेरिका को भी पीछे छोड़ देगा? इसकी संभावना निकट भविष्य में तो नहीं दिख रही है। लेकिन भारत के कई उद्योगपतियों ने अपनी निष्ठा दिखाने के लिए इन देशों को भी पीछे छोड़ने की एक टाइमलाइन बताई हुई है।
बहरहाल, भारत के चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बनने का दावा पहले नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम ने किया। उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार अपने भाषणों में इसका जिक्र किया है। हालांकि नीति आयोग के सदस्य अरविंद विरमानी ने थोड़ा और इंतजार करने की बात कही है। फिर भी यह मान लिया गया है कि भारत चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन गया है। लेकिन क्या इससे भारत की अर्थव्यवस्था की वास्तविक तस्वीर सामने आती है और क्या इस आंकड़े से भारत के लोगों के जीवन स्तर की वास्तविकता जाहिर होती है? इन दोनों सवालों के जवाब नकारात्मक हैं। जीडीपी के आंकड़ों से अर्थव्यवस्था के बारे में बहुत थोड़ा सा पता चलता है और जहां तक लोगों के जीवन स्तर का मामला है तो वह बिल्कुल अलग चीज है। जीडीपी से अर्थव्यवस्था के सिर्फ आकार का पता चलता है। उससे यह नहीं पता चलता है कि आय और संपत्ति का वितरण किस तरह हुआ है या देश कितना विकसित हुआ है या देश के नागरिक कैसा जीवन जी रहे हैं। भारत के चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाने के बावजूद भारत के लोगों का जीवन स्तर तीसरी दुनिया के देशों की तरह ही है। इसे सिर्फ इस एक आंकड़े से समझा जा सकता है कि प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत दुनिया के देशों में 144वें नंबर पर है। यानी अर्थव्यवस्था के आकार में भारत से ऊपर सिर्फ तीन देश हैं लेकिन प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत से ऊपर 143 देश हैं।
इसलिए यह कहने का कोई मतलब नहीं है कि भारत ने जापान को पीछे छोड़ दिया। जापान की आबादी सिर्फ 12 करोड़ है, जबकि भारत की आबादी उससे 12 गुना ज्यादा है। इस लिहाज से भारत की आय जापान से 12 गुना कम है। भारत में प्रति व्यक्ति आय तीन हजार डॉलर से कम है, जबकि जापान की प्रति व्यक्ति आय 34 हजार डॉलर है। इससे भी दिलचस्प आंकड़ा ब्रिटेन का है। कुछ दिन पहले भारत ने ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को पार किया। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात में भाषण कर रहे थे तो उन्होंने बहुत जोर देकर कहा कि उनको ज्यादा खुशी तब हुई थी, जब भारत ने ब्रिटेन को पीछे छोड़ा था। प्रधानमंत्री ने कहा था कि जिन लोगों ने भारत पर दो सौ साल राज किया उनकी अर्थव्यवस्था को भारत ने पीछे छोड़ा तो ज्यादा खुशी हुई। अब सोचें, ब्रिटेन की आबादी छह करोड़ है और वहां की प्रति व्यक्ति आय करीब 47 हजार डॉलर है। फिर जीडीपी में उसे पीछे छोड़ने का क्या मतलब है! सोचें, भारत में एक व्यक्ति की सालाना औसत आय ढाई लाख रुपए से कम है और ब्रिटेन में एक व्यक्ति की सालाना औसत आय 40 लाख रुपए के करीब है। कोई तुलना ही नहीं है। फिर भी ब्रिटेन और जापान को पीछे छोड़ने का हल्ला मचा कर विकास की राजनीतिक विमर्श स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है। साथ ही इसे एक बड़ी उपलब्धि बता कर लोगों के अंदर गर्व का भाव पैदा करने की कोशिश की जा रही है।
भारत की अर्थव्यवस्था को थोड़ा और बारीकी से देखें तो प्रति व्यक्ति औसत आय का गुब्बारा भी फूटा हुआ दिखाई देगा। भारत दुनिया में सर्वाधिक असमानता वाला देश है। भारत में शीर्ष एक फीसदी लोगों के पास देश की 41 फीसदी संपत्ति है, जबकि सबसे नीचे के 50 फीसदी लोगों के पास सिर्फ तीन फीसदी संपत्ति है। सो, जीडीपी के आंकड़े या प्रति व्यक्ति आय का आंकड़ा वास्तविक तस्वीर नहीं दिखाता है। भारत में जीडीपी की बढ़ोतरी का लाभ अक्सर अमीरों तक सीमित रहता है। आम लोगों को इसका लाभ नहीं मिलता। ध्यान रहे अधिक प्रति व्यक्ति आय का मतलब है हर व्यक्ति बेहतर भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य और अच्छी जीवनशैली हासिल कर सकता है। लेकिन भारत के लोगों के नसीब में वह नहीं है। देश के 80 करोड़ लोगों को सरकार पांच किलो अनाज मुफ्त में देती है। यह भी आय और संपत्ति की असमानता को दिखाने वाला एक आंकड़ा है।
भारत के लोगों का जीवन स्तर, रोजगार की क्वालिटी, भोजन में पोषण की उपलब्धता, स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा की गुणवत्ता सब बहुत खराब हैं और शीर्ष 10 या 20 या 50 नंबर की अर्थव्यवस्था वाले देशों के साथ भी इसकी तुलना नहीं हो सकती है। अगर हम जापान से ही तुलना करें तो भारत में एक निश्चित वेतन पर औपचारिक नौकरी करने वालों की संख्या सिर्फ 24 फीसदी है, जबकि जापान में यह संख्या 91 फीसदी है। ऐसे ही सेकेंडरी की पढ़ाई के बाद उच्च शिक्षा के लिए दाखिला लेने वालों की संख्या भारत में 32 फीसदी है, जबकि जापान में यह संख्या 65 फीसदी से ज्यादा है। भारत में आज भी 45 फीसदी लोग कृषि क्षेत्र पर आश्रित हैं, जबकि भारत की जीडीपी में कृषि का योगदान सिर्फ 14 फीसदी है। उधर जापान में सिर्फ 10 फीसदी लोग रोजगार के लिए कृषि पर आश्रित हैं। उद्योग और सेवा क्षेत्र में बेहतर क्वालिटी का रोजगार उनको उपलब्ध है। स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में भी दोनों की कोई तुलना नहीं हो सकती है। भारत में प्रति व्यक्ति औसत उम्र 72 साल है, जबकि जापान में 84 साल है। शिशु मृत्यु दर से लेकर प्रति व्यक्ति डॉक्टर्स और बेड्स की उपलब्धता में भारत जापान के आसपास भी नहीं है। सो, अर्थव्यवस्था के आकार के आधार पर जापान या ब्रिटेन के साथ तुलना करना बेमानी है।
यह सही है कि भारत की अर्थव्यवस्था चौथे नंबर पर पहुंच गई है और जल्दी ही तीसरे नंबर पर पहुंच जाएगी। लेकिन उससे देश के लोगों के जीवन स्तर में कोई सुधार नहीं होगा अगर भारत की अर्थव्यवस्था इसकी आबादी के अनुपात में मौजूदा आकार से कम से कम पांच गुना नहीं होती है। अगर भारत चीन के बराबर यानी 20 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बने और आय व संपत्ति की असमानता थोड़ी कम हो तो जीडीपी विकास का फायदा आम लोगों को मिलेगा। अन्यथा जीडीपी का आकार तो अरबपतियों की संख्या बढ़ने से भी बड़ा हो जाता है और बाकी जनता तीसरी दुनिया के देशों की तरह रहती है।