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क्या सचमुच लक्ष्य हासिल हुआ?

भारत

वैसे तो 22 अप्रैल को हुए पहलगाम नरसंहार, छह-सात मई की दरम्यानी रात को शुरू हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और 10 मई की शाम को हुए सीजफायर को लेकर कई सवाल हैं। (india pakistan war) कई ऐसे पहलू हैं, जिनके बारे में स्पष्टता नहीं है।

सेना की लगातार हो रही प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी इनके बारे में नहीं बताया जा रहा है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि क्या सचमुच भारत को अपना लक्ष्य हासिल हो गया? जिस मकसद से ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू हुआ था क्या वह पूरा हो गया?

क्या पहलगाम में मारे गए बेकसूर भारतीय नागरिकों की मौत का बदला सचमुच ले लिया गया? यह सूत्र वाक्य बार बार बोला जा रहा है कि भारत की सैन्य कार्रवाई का लक्ष्य पूरा हो गया है। सवाल है कि क्या लक्ष्य था?

क्या भारत की सैन्य कार्रवाई का लक्ष्य जैश ए मोहम्मद, लश्कर ए तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन के मुख्यालय या प्रशिक्षण शिविर की इमारत को मिसाइल मार कर ध्वस्त कर देना था? अगर इतना ही लक्ष्य था तब तो कह सकते हैं कि यह लक्ष्य काफी हद तक हासिल हो गया।

लेकिन तब बड़ा सवाल है कि क्या भारत सरकार और युद्ध के रणनीतिकार बहावलपुर, मुरीदके, सियालकोट, मुजफ्फराबाद आदि शहरों में स्थित आतंकवादी संगठनों के मुख्यालय या प्रशिक्षण शिविर की इमारतों को ही आतंकवाद का नेटवर्क मानते हैं? और उन इमारतों को ध्वस्त करके समझ रहे हैं कि आतंकवाद के नेटवर्क् को ध्वस्त कर दिया?

26 निर्दोषों की हत्या के बाद भी आतंकी बेखौफ

पहलगाम हमले के बाद भारत का तात्कालिक लक्ष्य 22 अप्रैल को धर्म पूछ कर 26 हिंदुओं की हत्या कर देने वाले पांच आतकंवादियों की पहचान करके उनको सजा देने का था। सजा देने का मतलब है कि या तो मुठभेड़ में वे मारे जाते या पकड़ कर कानून के कठघरे में खड़ा किए जाते। लेकिन इनमें से कुछ नहीं हो पाया।

पांचों आतंकवादी 26 लोगों के नरसंहार के बाद गायब हो गए। खुफिया और सुरक्षा मामलों की जितनी बड़ी विफलता पहलगाम में हुई थी उससे बड़ी विफलता आतंकवादियों का पता नहीं लगा पाना है। जम्मू कश्मीर के चप्पे चप्पे पर सेना, अर्धसैनिक बलों और पुलिस के जवान तैनात हैं।

फिर भी आतंकवादी 20 मिनट तक लोगों से धर्म पूछ कर और कपड़े उतार कर धर्म की पहचान करके उनकी हत्या करते रहे और एक भी सुरक्षाकर्मी इतनी देर तक पहलगाम की बैसरन घाटी में नहीं पहुंचा। आतंकवादियों के खिलाफ एक भी गोली नहीं चली। होना तो यह चाहिए था कि 20 मिनट की उनकी फायरिंग के दौरान सुरक्षा बल उनको चारों तरफ से घेर लेते।

लेकिन इसका उलटा हुआ। उन्होंने 20 मिनट तक मौत का खूनी खेल खेला और फिर जंगलों में लापता हो गए। 20 दिन बाद तक उनका कुछ भी अता पता नहीं है। पहलगाम कांड के बाद बताया गया कि हाशिम मूसा इसका मास्टरमाइंड है, जो लश्कर ए तैयबा से जुड़ा है। इस मास्टरमाइंड का भी कोई अता पता नहीं है।

लश्कर का संस्थापक हाफिज सईद, जैश ए मोहम्मद का संस्थापक मसूद अजहर और हिजबुल मुजाहिदीन का सलाहुद्दीन पाकिस्तान की किसी पनाहगाह में सुरक्षित हैं। सो, पहलगाम कांड को अंजाम देने वाले आतंकवादी, उनका हैंडलर और उनके आका किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ है।

आतंकवाद को ध्वस्त करने की दिशा में एक कदम

पहलगाम कांड के बाद एक दीर्घकालिक लक्ष्य था आतंकवाद के नेटवर्क को ध्वस्त करने का। इसके लिए ही ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू हुआ था। इस सैन्य अभियान के तहत छह और सात मई की दरम्यानी रात को भारतीय सेना ने पाकिस्तान की सरजमीं पर स्थित आतंकवाद के ठिकानों पर हमला किया।

इस हमले में जैश ए मोहम्मद के चार, लश्कर ए तैयबा के तीन और हिजबुल मुजाहिदीन के दो ठिकाने नष्ट किए गए। इसके बाद अगले चार दिन तक जो हुआ वह पाकिस्तान की ओर से हुई प्रतिक्रिया का जवाब देने की कार्रवाई थी। उसमें पाकिस्तान को जितना भी नुकसान हुआ हो उससे भारत के दीर्घकालिक लक्ष्य के पूरा होने का कोई लेना देना नहीं है।

अगर पाकिस्तान का रहीम यार खान या नूर खान एयरबेस क्षतिग्रस्त हुआ है तो उससे आतंकवाद का नेटवर्क कमजोर पड़ जाएगा यह कोई ऐसा ही व्यक्ति सोच सकता है, जिसकी आंखों पर परदा और अक्ल पर पत्थर पड़ा हुआ है। आतंकवाद का नेटवर्क एक जटिल संरचना है, जिसके खिलाफ दुनिया भर के देश और एजेंसियां काम कर रही हैं।

भारत अगर आतकंवाद से सर्वाधित पीड़ित देश है तो इस नेटवर्क को ध्वस्त करने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी उसके ऊपर है। लेकिन अभी तक जो कार्रवाई हुई है उसको लेकर इतना कहा जा सकता है कि इस नेटवर्क को सिर्फ खरोंच लगाई गई है। उसे कोई वास्तविक नुकसान नहीं पहुंचाया जा सका है।

पाकिस्तान ने माना है कि 30 साल से वह आतंकवादियों को पाल पोस रहा है और उनको प्रशिक्षण दे रहा है। ऐसा वह अमेरिका और पश्चिमी देशों के कहने पर करता रहा है। दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित सामरिक जानकार भी मानते हैं कि भारत के काउंटरवेट के तौर पर पाकिस्तान को मदद करने का काम अमेरिका करता रहा है।

भारत को हजार घाव देने की रणनीति पाकिस्तान की अपनी है लेकिन अलग अलग कारणों से अमेरिका, रूस और चीन भी इसमें उसकी मदद करते रहे हैं। यह अनायास नहीं है कि जम्मू कश्मीर में मारे जाने वाले आतंकवादियों के पास से अमेरिकी और चीनी हथियार मिलते हैं।

हो सकता है कि ये देश सीधे उनको हथियार नहीं मुहैया कराते हों लेकिन पाकिस्तान के जरिए ही अगर उनका हथियार आतंकवादियों तक पहुंच रहा है तो क्या उस पर काबू करने का काम उनका नहीं है? लेकिन ये देश इस पर ध्यान नहीं देते हैं।

जब तक आतंकवादियों को मिलने वाली सैन्य मदद, हथियार और प्रशिक्षण का ढांचा नष्ट नहीं होता है और सप्लाई चेन नहीं बंद होती है तब तक उसकी एकाध इमारत नष्ट करने या सौ पचास आतंकवादियों को मार देने से कुछ भी हासिल नहीं होगा।

चीन और अमेरिका के बीच उलझती कूटनीति

इसके लिए पहली जरुरत यह है कि पाकिस्तान को अलग थलग किया जाए और दुनिया के देशों को इस बात के लिए तैयार किया जाए कि वे पाकिस्तान को आतंकवाद की फैक्टरी मान कर उसके खिलाफ कार्रवाई करें।

लेकिन इस लक्ष्य में भी कामयाबी नहीं मिल पाई है। एक इजराइल को छोड़ कर किसी ने भारत की सैन्य कार्रवाई का समर्थन नहीं किया। पाकिस्तान के आतंकवादियों ने भारत के बेकसूर नागरिकों की हत्या की फिर भी चीन ने उसे सदाबहार दोस्त बता कर उसका समर्थन किया और कहा कि वह उसकी संप्रुभता की रक्षा करेगा।

तुर्की ने पाकिस्तान का साथ दिया। पाकिस्तान ने भारत की सैन्य कार्रवाई का जवाब चीन, अमेरिका और तुर्की के हथियार से दिया। अमेरिका ने आगे बढ़ कर सीजफायर कराया तो सऊदी अरब, ईरान जैसे देश सीजफायर कराने के लिए आगे आए।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत की सैन्य कार्रवाई के बीच पाकिस्तान को 1.3 अरब डॉलर यानी 11 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज दिया। इस तरह पाकिस्तान कूटनीतिक, सामरिक और आर्थिक किसी भी मोर्चे पर अलग थलग नहीं हुआ, बल्कि नई विश्व व्यवस्था में वह ज्यादा बेहतर ढंग से समायोजित हो गया।

फिर भारत क्यों सीजफायर पर सहमत हुआ? भारत कोई गुरिल्ला वॉर करने वाला देश नहीं है जो यह कहा जाए कि चार दिन की लड़ाई में उसने कई इमारतें उड़ा दीं और कई आतंकवादियों को मार दिया इसलिए अब उसको पीछे हट जाना चाहिए।

भारत को आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़नी है। जैसे हमास को खत्म करने के लिए इजराइल लड़ रहा है वैसे ही भारत को लड़ना है आतंकवाद का ढांचा और पाकिस्तान के छद्म युद्ध को खत्म करने के लिए। लेकिन यहां भारत प्रतीकात्मक कार्रवाई कर रहा है।

पहले 2016 में सर्जिकल  स्ट्राइक की प्रतीकात्मक कार्रवाई हुई। फिर 2019 में एयर स्ट्राइक की प्रतीकात्मक कार्रवाई हुई और अब 2025 पहलगाम कांड के बाद ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की प्रतीकात्मक कार्रवाई हुई है।

इससे भारत का कोई लक्ष्य पूरा नहीं हुआ और न कुछ हासिल हुआ। उलटे यह संदेश गया कि अमेरिका ने भारत व पाकिस्तान के बीच सीजफायर कराया। यह भी मैसेज हुआ कि जम्मू कश्मीर के दोपक्षीय मामला होने का स्थापित सिद्धांत समाप्त हो गया और अमेरिका के रूप में तीसरा पक्ष उसकी मध्यस्थता कर रहा है।

डोनाल्ड ट्रंप और मार्को रूबियो ने यह मैसेज बनवा दिया। उधर पाकिस्तान को चीन, तुर्की जैसे देशों का खुला समर्थन प्राप्त हुआ। पहली बार ऐसा हुआ कि चीन ने पाकिस्तान की संप्रभुता की रक्षा करने का बयान दिया। इसका मतलब है कि अगर भारत ने पीओके को हासिल करने की कोई कार्रवाई की तो उसे चीन से भी भिड़ना होगा।

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pic credit- aNI 

By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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