अंग्रेजी कैलेंडर से जून का महीना चल रहा है और हिंदी कैलेंडर से आषाद महीना शुरू हो गया है। नौतपा यानी सर्वाधिक गर्मी वाले नौ दिन बीत चुके हैं और अब आसमान से आग बरस रही है। सो, एक तरफ यह कहने वाले लोग हैं कि देखो आषाढ़ के महीने में कैसी गर्मी पड़ने लगी तो दूसरी ओर यह कहने वाले भी कम नहीं हैं कि जून का महीना चल रहा तो गर्मी अभी नहीं पड़ेगी तो कब पड़ेगी। लेकिन इन दोनों बातों के बीच किसी अतिरेक में गए बगैर वस्तुनिष्ठ तरीके से बढ़ती गर्मी के ट्रेंड को देखने और समझने की जरुरत है। गर्मी के महीने में गर्मी पड़ना कोई हैरानी की बात नहीं है लेकिन गर्मियों से पहले बसंत का और बरसात के बाद शिशिर ऋतु का समाप्त होना बहुत बड़ी चिंता की बात है। अब सर्दियों के बाद सीधे गरमी आ रही है और बरसात का महीना भी गर्मियों में ही गुजर रहा है, जिसके बाद थोड़े समय के लिए सर्दियां आ रही हैं।
दूसरी चिंता की बात यह है कि गर्मियों में हीटवेव यानी लू चलने वाले दिनों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इसके अलावा एक तीसरी चिंता तापमान की अधिकतम सीमा बढ़ते जाने की है। इस साल अप्रैल में हीटवेव चली और फिर जून में भी दिल्ली व उत्तर भारत के ज्यादातर राज्यों में हीटवेव चल रही है। पिछले साल गर्मियों में दिल्ली के पश्चिमी हिस्से में तापमान 52.9 डिग्री रिकॉर्ड किया गया। हालांकि बाद में मौसम विभाग ने कह दिया कि मशीन खराब थी। लेकिन इसमें छिपाने वाली कोई बात नहीं है। जब सामान्य रूप से अधिकतम तापमान 47 या 48 डिग्री पहुंच रहा है तो उसका 50 या उससे ऊपर पहुंचना कोई हैरत की बात नहीं होनी चाहिए। ध्यान रहे पिछले साल 40 हजार हीटस्ट्रोक के मामले रिकॉर्ड किए गए थे।
इस साल को लेकर मौसम विभाग ने मानसून के सामान्य से बेहतर रहने का अनुमान जताया है और कहा है कि 105 फीसदी तक बारिश होगी। लेकिन साथ ही मौसम विभाग ने यह भी कहा कि गर्मियों में हीटवेव के दिन पहले से ज्यादा होंगे। मौसम विभाग के मुताबिक उत्तर प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में 10 से 11 दिन हीटवेव वाले हो सकते हैं। इस साल अप्रैल से जून के बीच देश के लगभग सभी राज्यों में दो से चार दिन ज्यादा हीटवेव वाले दिन जरूर होंगे। सबसे ज्यादा हैरानी की बात यह है कि इस साल फरवरी में महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र और गोवा में हीटवेव के दिन महसूस किए गए। 25 फरवरी से 23 मार्च के बीच देश के अलग अलग राज्यों में 12 दिन हीटवेव वाले रहे। नौ राज्य ऐसे रहे, जहां एक न एक दिन हीटवेव जैसी स्थिति रही। यानी पहले से ज्यादा दिन लू चली और आगे भी चलेगी। रातें ज्यादा गर्म रहेंगी और अधिकतम व न्यूनतम तापमान का अंतर कम रहेगा।
इसका मतलब है कि लोग 24 घंटे झुलसते रहेंगे। इस चिंता में पूरे देश में बिजली की खपत बढ़ने और पीक ऑवर डिमांड का नया रिकॉर्ड बनने का अनुमान है। ध्यान रहे पिछले साल यानी 2024 में भारत में पीक ऑवर डिमांड ढाई सौ गीगावाट यानी दो लाख 50 हजार मेगावाट थी। इस साल इसके बढ़ कर 270 गीगावाट यानी दो लाख 70 हजार मेगावाट हो जाने की संभावना है। कह सकते हैं कि भारत इससे ज्यादा बिजली का उत्पादन करने में सक्षम है। पर मुश्किल यह है कि भारत की सारी क्षमता थर्मल पावर प्लांट की है यानी कोयले से बिजली बनाने की है, जो अपने आप में गर्मी बढ़ने का एक कारण है।
बहरहाल, बिजली की जरुरत और उसकी उपलब्धता हीटवेव से जुड़ी चिंताओं का एक पहलू है। सबसे बड़ा संकट मानव जीवन का है। बढ़ती गर्मी महामारी की तरह है, जिससे लोगों की जान जाती है। इसका असर आम लोगों के जीवन, उनकी उत्पादकता और इस तरह देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 1992 के बाद से भारत में बढ़ती गर्मी की वजह से 26 हजार लोगों की मौत हुई है। इस तरह की मौतों की संख्या पिछले 10 साल में ज्यादा बढी है। पिछले साल सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बढ़ती गर्मी के असर से 360 लोगों की मौत हुई है। हालांकि असली आंकड़ा इससे ज्यादा हो सकता है। गांवों, कस्बों में लू लगने से बीमार होने और मर जाने वालों की संख्या बहुत बड़ी होती है। लेकिन उनकी रिपोर्ट नहीं होती है। इसका सबसे बड़ा शिकार नवजात बच्चे और बुजुर्ग होते हैं। इसके बावजूद स्वास्थ्य सुविधाओं के लिहाज से गर्मी को कोई चिंता या खतरा नहीं माना जाता है और न उसके लिए अलग से कोई बंदोबस्त किया जाता है।
कई राज्यों ने ‘हीट एक्शन प्लान’ यानी एचएपी बनाएं हैं लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। यह सिर्फ नीतिगत स्तर पर है और आम लोगों को इसका बहुत कम लाभ मिल पाता है। इसका कारण यह है कि ‘हीट एक्शन प्लान’ के बावजूद अत्यधिक गर्मी से होने वाली बीमारियां और मौतें कम नहीं हो रही हैं, बल्कि बढ़ रही हैं। दूसरे, राष्ट्रीय स्तर पर ‘नेशनल एक्शन प्लान ऑन हीट रिलेटेडे इलनेस’ की 2021 में घोषणा हुई थी लेकिन इसे बहुत स्पष्ट रणनीति के साथ लागू नहीं किया गया है और न ‘क्लाइमेट हेल्थ इंटीग्रेशन’ की मेनस्ट्रीमिंग हुई है। इसके लिए सबसे पहले तो बिल्कुल स्थानीय स्तर से और भरोसेमंद डाटा कलेक्शन का सिस्टम बनना चाहिए ताकि हीटवेव के असर को बेहतर ढंग से समझा जा सके। इससे पता चलेगा कि बढ़ती गर्मी लोगों को कितने तरह से प्रभावित कर रही है या बीमार कर रही है।
अभी भारत का मौसम विभाग हीटवेव की चेतावनी जारी करता है लेकिन चुनिंदा राज्यों को छोड़ कर कहीं भी इसका इस्तेमाल लोगों को राहत देने या उनका बचाव करने के लिए नहीं किया जाता है। इसको एक सूचना की तरह लिया जाता है। कायदे से हीटवेव की चेतावनी को गंभीरता से लेने का सिस्टम बनाने की जरुरत है। सरकारी व निजी कार्यालयों में, फैक्टरियों में या खेतों में मजदूरी कर रहे लोगों को इसकी जानकारी दी जानी चाहिए और एक्स्ट्रीम गर्मी के समय उनको राहत देने के उपाय करने चाहिए। अगर जरूरी हो तो उस अवधि में लोगों को काम से छुट्टी दी जाए। हीटवेव से बीमार होने की स्थिति में उनके उपचार की बेहतर व्यवस्था बनाने की जरुरत है।
इसके लिए गर्मियों में सभी अस्पतालों में हीटवेव वार्ड की व्यवस्था करनी चाहिए, जहां उन्हें तत्काल उपचार मिले। अगर केंद्र सरकार राज्यों के साथ मिल कर ऐसी व्यवस्था बनाती है, जिसमें हीटवेव का रिकॉर्ड हो और उससे बीमार होकर अस्पताल में भर्ती होने वाले लोगों की संख्या का रिकॉर्ड रखा जाए तो इससे हीटवेव के वास्तविक खतरे का अंदाजा होगा। इसके अलावा गरमी बढ़ने के कारणों की पड़ताल भी जरूरी है ताकि उन्हें रोका जा सके। भारत अंधाधुंध और अनियोजित तरीके से हो रहे शहरीकरण को रोकने की जरुरत है। शहरी इलाकों में हरित क्षेत्र कम होते जाने की समस्या से निपटना जरूरी है तो यह भी ध्यान रखने की जरुरत है कि खराब गुणवत्ता वाले आवास नहीं बनें। जल स्त्रोतों और भूमिगत जल का जरुरत से ज्यादा दोहन रोकने की जरुरत है।
बहरहाल, इस साल अप्रैल के महीने में बढ़ती गर्मियों के बीच तेलंगाना ने एक बड़ी पहल की थी। तेलंगाना के 28 जिलों में कम से कम 15 दिनों तक लू की आशंका थी। इसे देखते हुए सरकार ने लू को आपदा घोषित कर दिया था। सरकार ने लू लगने से मरने वालों के परिजन को चार लाख रुपए की सहायता का भी ऐलान किया। तेलंगाना ऐसा करने वाला संभवतः देश का पहला राज्य है। लेकिन हीटवेव से मरने वालों के परिजनों को सहायता राशि देने के साथ साथ यह उपाय भी जरूरी है कि हीटवेव की चपेट में कम से कम लोग आएं और जो चपेट में आए उसका समय रहते इलाज हो जाए। तेलंगाना की पहल के बाद कह सकते हैं कि अब हीटवेव यानी लू को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने का समय आ गया है।
ध्यान रहे कोई भी सरकार बढ़ती गर्मी को नहीं रोक सकती है। खासकर भारत में तो यह संभव ही नहीं है क्योंकि इतनी बड़ी आबादी के लिए बिजली की जरुरत है और औद्योगीकरण अभी बिल्कुल शुरुआती अवस्था में है। सब कुछ हरित नहीं हो सकता है। इसके अलावा ग्लोबल क्लाइमेट चेंज पर भी भारत का जोर नहीं है। इसलिए गर्मी बढने से नहीं रोक सकते हैं लेकिन बचाव का उपाय तो कर सकते हैं, लोगों को राहत दे सकते हैं, इसे स्वास्थ्य इमरजेंसी घोषित करके इलाज का बंदोबस्त कर सकते हैं और हीटवेव से होने वाली मौतों के बाद परिजनों को सहायता राशि देने की व्यवस्था कर सकते हैं। असल में हीटवेव की चुनौती से निपटने के लिए रचनात्मक उपायों की जरुरत है। ध्यान रहे अत्यधिक गर्मी से होने वाली बीमारियों का बोझ भारत के लिए बहुत भारी है। इसका असर लोगों और देश की आर्थिक सेहत पर पड़ रहा है। किडनी, लीवर से लेकर हृदय और मस्तिष्क से जुड़ी कई बीमारियां इसकी वजह से हो रही हैं। यह हीटवेव की समस्या का एक अलग पहलू है।