मैं आपदा में अवसर तलाशने के इस कौशल की दास्तां इसलिए दोहरा रहा हूं कि अभी जैसे ही भारत ने पाकिस्तान को सबक सिखाना शुरू किया तो उस के कुछ घंटे भी नहीं बीते थे कि एक लाख करोड़ रुपए सालाना का शुद्ध मुनाफ़ा कमाने वाले मुकेश अंबानी ने ‘ऑपरेशन सिंदूरष् नाम के कॉपी-राइट और पैटेंट के लिए सुबह-सुबह आवेदन दाख़ि़ल कर दिया। आने वाले दिनों में इस पर कंटेंट रच कर कमाई की हवस दिखाई दे तो आश्चर्य नहीं होगा।
ठीक है कि हम युद्ध के नहीं, बुद्ध के उपासक हैं, मगर इस का मतलब यह तो नहीं हो सकता कि भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा नियंत्रण रेखा से दो सौ किलोमीटर भीतर पहलगाम आ कर (ना)पाक-आतंकवादी भारतीय पर्यटकों को उन का धर्म पूछ-पूछ कर गोलियों से उड़ा दें और हम अपनी तोपों की नालें नीचे झुका कर बैठे रहें! सो, अब पाकिस्तान के साथ जो हो रहा है, एकदम ठीक हो रहा है। यह तो गनीमत है कि भारत आनुपातिक-प्रतिकार की नीति पर चल रहा है, वरना ख़ुद पाकिस्तान भी क्या यह नहीं जानता है कि भारत के सामने उस की सैन्य शक्ति कितने दिन टिक पाने की है?
अपने परमाणु बमों का फूहड़-ज़िक्र करने वाले पाकिस्तानी नेताओं और फ़ौजी अफ़सरों को यह भी तो मालूम होगा कि सार्वजनिक शालीनता के मानक सिद्धांतों का अनुगमन करते हुए भारत आज के मौक़े पर ज़िक्र भले ही न कर रहा हो, परमाणु बम तो उस के पास भी हैं और गिनती में पाकिस्तान से ज़्यादा ही हैं। इसलिए अपनी गालबजाऊ प्रवृत्ति से पाकिस्तान अगर अब भी बाज़ नहीं आएगा तो अल्लाहताला भी उस की हिमायत में क्या कर लेंगे?
आतंकवादियों के अड्डों को नेस्तनाबूत करने की भारतीय कार्रवाई के पहले अगर पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा के पास बसी भारत की बस्तियों को गोलाबारी का निशाना नहीं बनाया होता और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का पहला अध्याय पूरा हो जाने के बाद भारतीय सैन्य ठिकानों पर, नाकाम कर दिए गए, मिसाइल हमले न किए होते तो बात लाहौर, रावलपिंडी और इस्लामाबाद तक नहीं पहुंचती। मगर सींकिया-पहलवानी दिखाने की बेवकूफ़ी में बात उस के हाथ से निकल गई और अब जब निकल गई तो दूर तलक़ जा रही है।
इस में कुसूर किस का है? पहले पहलगाम करेंगे, जवाबी तैयारियां शुरू होंगी तो नियंत्रण रेखा पर कूद-फांद करेंगे, दहशतग़र्दों के ठिकाने ध्वस्त होंगे तो कंधे-से-कंधा मिला कर उन के साथ खड़े हो जाएंगे और भारतीय शहरों पर हमले की कोशिश करेंगे तो इस सब के बाद भारत क्या अपने पैरों में मेंहदी लगा कर बैठा रहेगा?
जिस मुल्क़ में प्रधानमंत्री को जेल भेज दिया जाता हो और आतंकी सरगनाओं को नज़रबंदी के नाम पर पांच सितारा इंतज़ाम में रखा जाता हो, उस का मज़हबी वज़हों से भी कौन कितना साथ दे सकता है? इसलिए 57 देशों के इस्लामी सहयोग संगठन ने भी पाकिस्तान की तरफ़ से मदद के लिए हो रही बारंबार-पुकार को अनसुना कर दिया। दुनिया के सभी देश पाकिस्तान में दहशतग़र्दों की फ़सल की बुआई, गुड़ाई और कटाई होते पता नहीं कितने दशकों से देख रहे हैं।
इस युद्धनुमा प्रतिकार से उपजे सांवले बादलों के बीच से भारतीय आसमान में झांक रही कुछ सिंदूरी किरणों को रेखांकित किया जाना चाहिए। मैं मानता हूं कि कर्नल सोफ़िया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह को ‘ऑपरेशन सिंदूरष् का प्रतीक-शुभंकर बनाने का फ़ैसला स्तुति-योग्य है। सोफ़िया यानी बुद्धि-विवेक युक्त और व्योमिका यानी आकाश-नंदिनी।
पहलगाम की जवाबी-मुहीम को पवित्र ‘सिंदूरष् की हर हाल में हिफ़ाज़त करने के भाव से जोड़ने का उपक्रम सचमुच हृदयस्पर्शी है। सत्-असत् की समझ रखने वाली सोफ़िया और आसमान की बेटी व्योमिका इस प्रसंग में भारत का प्रतिरूप बन गई हैं।
कुछ लोग मानते हैं कि यह छद्म-प्रतीक एक ढोंग है। मगर मुझे लगता है कि यह जो भी है, कुल मिला कर सुखद है। इस से हमारी बुनियादी जीवनी-शक्ति में कुछ नए अंकुर ही फूटेंगे। कम-से-कम इस से कुछ नष्ट तो नहीं ही हो रहा है। इसलिए इस का स्वागत होना चाहिए। ‘ऑपरेशन सिंदूरष् मिसाल है कि भारतीय सेना की मारक क्षमता किस तरह अचूक है। जन-बस्तियों के बीच मौजूद पाकिस्तानी आतंकवादियों के अड्डों को, आम लोगों को नुक़्सान पहुंचाए बिना, चुन-चुन कर नष्ट कर देने की यह विधिक प्रक्रिया दुनिया के सैन्य इतिहास का अमिट हिस्सा बन गई है।
ज़ाहिर है कि भारतीय सेना के ताज़ा पराक्रम ने मेरी शिराओं में भी रक्त की रवानी तेज़ कर दी है और मैं गर्व से अपना सीना फुला कर हमेशा की तरह हिंदुस्तानी फ़ौज की ज़िंदाबाद कर रहा हूं। साथ ही, बावजूद इस के कि जो ‘ऑपरेशन सिंदूर’ सरीखे अहम और संजीदा मामले में बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में शिरकत तक करना अपनी हेठी समझता हो, उस के लिए अपने मन में आदर भाव पैदा करना कोई आसान काम नहीं है; मैं राष्ट्रीय संकट की इस घड़ी में, कोई सवाल उठाए बिना, अपने प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी के साथ भी खड़ा हूं।
हालांकि शुभ अवसरों पर ऐसा करने का रिवाज़ नहीं है, मगर इस परिघटना के गलियारों में रिस रहे कुछ पतनालों की तरफ़ आप का ध्यान दिलाए बिना मुझ से रहा नहीं जा रहा है। मैं यह देख कर दंग हूं कि किस तरह कुछ समाचार चैनल एक आनुपातिक-प्रतिकार की गंभीरता को बाज़ारू नौटंकी में तब्दील करने में भिड़े हुए हैं।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ या नया बाज़ारवाद?
ये समाचार चैनल परदे के एक कोने में बहुत छोटे अक्षरों में ‘प्रतीकात्मक तस्वीरेंष् लिख कर मिसाइल हमलों के वे दृश्य दिखा रहे हैं, जो बच्चों के लिए बनाए गए वीडियो गेम्स में होते हैं। प्रभावोत्पादकता के लिए बीच-बीच में सायरन भी बजाया जा रहा है। हर चीज़ को प्रहसन समझने की इस लीचड़ प्रवृत्ति से सराबोर एंकर-एंकरानियों पर लानत अगर हम आज नहीं भेजेंगे तो खेत चुग जाने के बाद कोई भी प्रतिक्रिया निरर्थक है।
मैं आश्वस्त हूं कि आप कतई नहीं भूले होंगे कि जब कोविड हुआ तो कैसे बड़े-बड़े कारोबारी हड़बड़-वैक्सीन का खरबों रुपए का धंधा करने में लग गए थे और उन्होंने विदेशों में महल खरीद लिए। मंझले और छोटे कारोबारी अपना मूल व्यवसाय छोड़ कर पीपीई किट, सैनेटाइज़र और मास्क बनाने में जुट गए थे। अस्पताल में मरीज़ों की लूट दस गुनी हो गई थी। रैमडिसिवर जैसी जीवन रक्षक दवाइयां पचास गुनी कीमतों पर ब्लैक होने लगी थीं और उन में भी नकली दवाई का धंधा चल पड़ा था।
मैं आपदा में अवसर तलाशने के इस कौशल की दास्तां इसलिए दोहरा रहा हूं कि अभी जैसे ही भारत ने पाकिस्तान को सबक सिखाना शुरू किया तो उस के कुछ घंटे भी नहीं बीते थे कि एक लाख करोड़ रुपए सालाना का शुद्ध मुनाफ़ा कमाने वाले मुकेश अंबानी ने ‘ऑपरेशन सिंदूरष् नाम के कॉपी-राइट और पैटेंट के लिए सुबह-सुबह आवेदन दाख़ि़ल कर दिया।
आने वाले दिनों में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नाम पर फ़िल्में बना कर, गाने बना कर, इवेंट आयोजित कर के और डिजिटल कंटेंट रच कर हज़ारों करोड़ रुपए कमाने की यह हवस देख कर आप को उबकाई नहीं आ रही? यह तो असली व्यक्तिगत चरित्र है हमारा। मैं रह-रह कर सोच रहा हूं कि क्या मूलतः हम एक घनघोर ढोंगी और थू-थू समाज हैं?
करदाताओं के पसीने की कमाई से चलने वाले दूरदर्शन समाचार का एक कु-एंकर भी इस दौरान पूरी पत्रकारिता को कलंकित करता अपनी मस्ती में डोलता रहा। उस ने अपने कार्यक्रमों के लिए विपक्ष के सब से बड़े राजनीतिक दल कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी को गद्दार बताने वाले बैनर बनवा कर उन्हें शीर्ष-पट्ट की तरह इस्तेमाल किया।
चर्चा में दोनों के लिए बद-तमीज़ी और हिकारत का भाव जानबूझ कर ठूंस-ठूंस कर भरा जाता रहा। सिंदूरी यज्ञ के आयोजन में भाटक अनुचरों ने अपनी कुंठाओं, ग्रथियों और नफ़रत की बारिश करने में कोई कोताही नहीं की। आप का मन इस से अगर नहीं खदबदाता है तो आप जानें!
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