अमेरिका ने जो कूटनीति की है और भारत के साथ व्यापार को प्रभावित करने वाले जो फैसले किए हैं वो फैसले भारत की कूटनीति और अर्थनीति दोनों को एक नई दिशा देने वाले साबित होंगे। अमेरिकी चुनौती भारत की कूटनीति को नए रास्ते पर ले जाएगी और भारत की अर्थव्यवस्था को स्वदेशी व आत्मनिर्भर बनाएगी। भारत ने दोनों मोर्चों पर नई पहल करके इसका संकेत भी दे दिया है।
आजादी के बाद संभवतः पहली बार भारत ने स्वदेशी अपनाने और आत्मनिर्भर होने की दिशा में निर्णायक और ठोस कदम उठाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बरसों से देश के लोगों से स्वदेशी अपनाने का आह्वान कर रहे थे। उन्होंने अनेक वर्ष पहले ‘वोकल फॉर लोकल’ का आह्वान किया था। उन्होंने भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ‘मेक इन इंडिया’ का नारा दिया और भारत में विनिर्माण को प्रोत्साहित करने वाली नीतियां लागू कीं।
इसका प्रभाव भी कई क्षेत्रों में दिख रहा है। चार महीने पहले मई के महीने में भारत ने पड़ोसी देश पाकिस्तान में स्थित आतंकवादी ठिकानों को नष्ट करने के लिए और उसके बाद पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों को नष्ट करने के लिए ऑपरेशन सिंदूर चलाया तो उसमें भारत के स्वदेशी हथियारों, तकनीक और मिसाइलों की ताकत दुनिया ने देखी। दुनिया ब्रह्मोस मिसाइल की शक्ति देख कर चकित रह गई। रक्षा निर्माण से लेकर तकनीक के क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’ अभियान का प्रभाव दिख रहा है। आज भारत मोबाइल हैंडसेट बनाने वाला अग्रणी देश है और आईफोन का जो नया मॉडल इस साल अमेरिका में बिकेगा वह सब भारत से बन कर जाएगा।
परंतु निश्चित रूप से यह पर्याप्त नहीं है और यही कारण है कि प्रधानमंत्री को नए सिरे से आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए लोगों से स्वदेशी अपनाने का आह्वान करना पड़ा है। असल में अब तक सब कुछ यथास्थिति में था। भारत के सामने कोई चुनौती या समस्या नहीं आई थी। अब तक भारत के सम्मान का मामला नहीं बना था। तभी भारत के नागरिक भी मंथर गति से स्वदेशी की दिशा में बढ़ रहे थे। अब भारत के सामने एक चुनौती है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सम्मान का मामला है। भारत के 140 करोड़ लोगों के स्वाभिमान का मुद्दा है। यह सही है कि भारत और अमेरिका के बीच दोपक्षीय व्यापार में व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में है और अमेरिका को घाटा होता है। परंतु जिस अंदाज में अमेरिका ने भारत के ऊपर टैरिफ बढ़ाया और रूस के साथ कारोबार को लेकर 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ का बोझ लाद दिया वह किसी भी मानक से उचित नहीं माना जा सकता है। अमेरिका ने टैरिफ बढ़ाने का काम ऐसे समय में किया, जब दोनों देशों के बीच व्यापार संधि के लिए वार्ता चल रही थी।
अमेरिका एक ऐसी चीज के लिए भारत को जिम्मेदार ठहरा रहा है, जिसका कोई आधार नहीं है। उसका कहना है कि रूस के साथ भारत के कारोबार करने यानी भारत के रूसी तेल खरीदने से रूस को यूक्रेन के खिलाफ जंग में मदद मिल रही है। परंतु क्या यह बात सच नहीं है कि भारत अगर रूस से तेल नहीं खरीदता और उसे रिफाइन करके दुनिया के बाजार में नहीं बेचता तो साढ़े तीन साल पहले शुरू हुए रूस व यूक्रेन युद्ध के बाद पूरी दुनिया की ऊर्जा सुरक्षा चरमरा जाती? क्या यह सही नहीं है कि अमेरिका ने इस बात की सहमति दी थी कि भारत रूसी तेल खरीद सकता है? क्या यह सही नहीं है कि भारत से रिफाइन किया हुआ रूसी तेल अमेरिका सहित उसके तमाम साझीदार देश खरीदते हैं? फिर इस बात के लिए भारत को क्यों कठघरे में खड़ा करना और वह भी युद्ध शुरू होने के साढ़े तीन साल बाद? राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भी ऑफिस संभाले हुए आठ महीने हो गए और अब उनको ख्याल आया है कि भारत रूस से तेल खरीद रहा है तो उस पर अतिरिक्त टैरिफ लगाया जाए?
ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अमेरिका पिछले कुछ समय से भारत और पाकिस्तान के मामले में मध्यस्थ बनने का प्रयास कर रहा है और ऑपरेशन सिंदूर के सीजफायर का श्रेय लेना चाहता है, जिसके लिए भारत ने स्पष्ट शब्दों में इनकार कर दिया है। इसके अलावा अमेरिका यह भी चाहता है कि भारत उसकी शर्तों पर व्यापार समझौता करे। अमेरिका की शर्त है कि भारत कृषि और डेयरी उत्पादों पर टैरिफ कम करे और व्यापार की सीमा हटा कर इसे पूरी तरह से अमेरिकी उत्पादों के लिए खोल दे। भारत किसी भी कीमत पर इसके लिए तैयार नहीं होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले से बहुत स्पष्ट शब्दों में कहा, ‘मैं किसी भी ऐसी नीति के खिलाफ दीवार की तरह खड़ा हूं, जो भारतीय किसानों, मछुआरों और पशुपालकों को नुकसान पहुंचाती है’। इससे बहुत स्पष्ट है कि अमेरिका या किसी भी देश को भारत कृषि और डेयरी बाजार में निर्बाध कारोबार नहीं करने देगा क्योंकि उससे भारत के किसानों और पशुपालकों के हितों पर नकारात्मक असर होगा। इसी बौखलाहट में अमेरिका ने भारत पर टैरिफ बढ़ाने और अतिरिक्त टैरिफ लगाने का ऐलान किया।
वास्तविकता यह है कि अमेरिका ने जो कूटनीति की है और भारत के साथ व्यापार को प्रभावित करने वाले जो फैसले किए हैं वो फैसले भारत की कूटनीति और अर्थनीति दोनों को एक नई दिशा देने वाले साबित होंगे। अमेरिकी चुनौती भारत की कूटनीति को नए रास्ते पर ले जाएगी और भारत की अर्थव्यवस्था को स्वदेशी व आत्मनिर्भर बनाएगी। भारत ने दोनों मोर्चों पर नई पहल करके इसका संकेत भी दे दिया है। अगर अमेरिका के लिए पाकिस्तान सदाबहार दोस्त है, भारत के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने वाले पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर अहम हैं और क्वाड अर्थहीन है तो भारत ने भी ब्रिक्स और एससीओ को अहमियत देकर अपना इरादा जाहिर कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रिक्स सम्मेलन के लिए ब्राजील गए, जहां लाल कालीन बिछा कर उनका स्वागत हुआ और ब्राजील ने उनको अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया।
इसके बाद प्रधानमंत्री शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ की बैठक में हिस्सा लेने चीन पहुंचे। इससे पहले उन्होंने जापान की यात्रा की, जो क्वाड का एक अहम सदस्य है। भारत पहले ही ब्रिटेन के साथ मुक्त व्यापार की संधि कर चुका है। चीन के तियानजिन में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भी प्रधानमंत्री की मुलाकात होगी और इस साल के अंत में पुतिन भारत की यात्रा करेंगे। इस तरह भारत ने कूटनीति के क्षेत्र में अपना इरादा जाहिर कर दिया है। भारत का सद्भाव सभी देशों के साथ रहेगा। अमेरिका से कोई दुश्मनी नहीं है और न करनी है तभी अमेरिकी राष्ट्रपति की ओर से दिए जाने वाले बयानों पर भारत की प्रतिक्रिया हमेशा संयमित रही है। लेकिन यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि भारत किसी दबाव में भी नहीं आएगा और अपनी जरुरतों के हिसाब से कूटनीति और अर्थनीति के फैसले करेगा। अगर भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए रूस से कच्चा तेल खरीदने की जरुरत है तो भारत जरूर खरीदेगा।
जहां तक अर्थनीति को संभालने की बात है तो भारत ने उसकी भी शुरुआत कर दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी में सुधारों का ऐलान किया है। जीएसटी दरों को तर्कसंगत बनाने वाले मंत्री समूह ने अपनी सिफारिशें अग्रसारित कर दी हैं और जीएसटी कौंसिल की बैठक सितंबर के पहले हफ्ते में होने वाली है, जिसमें जीएसटी की दरों में बड़ी कटौती होगी। आर्थिकी के जानकार मान रहे हैं कि अमेरिका की ओर से लगाया गया टैरिफ अगर जारी रहता है यानी व्यापार समझौता नहीं हो पाता है और 50 फीसदी टैरिफ जारी रहता है तो भारत के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में 0.2 से लेकर 0.6 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है।
भारत इस आशंका को गलत साबित कर सकता है क्योंकि जीएसटी में संभावित कटौती से भारत का उपभोक्ता खर्च इतना बढ़ जाएगा, जिससे नुकसान की भरपाई हो जाएगी। इसका अर्थ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व ने पहले ही अमेरिकी टैरिफ से होने वाले नुकसान की भरपाई का रास्ता बना दिया है। भारत की अर्थव्यवस्था ने भी अमेरिका के राष्ट्रपति को दो टूक जवाब दिया है। चालू वित्त वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही यानी अप्रैल से जून के बीच भारत की अर्थव्यवस्था 7.8 फीसदी की दर से बढ़ी है। यह दुनिया के किसी भी बड़े देश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार से ज्यादा है। भारत में 6.5 फीसदी की रफ्तार से जीडीपी बढ़ने की उम्मीद की जा रही थी, जो 7.8 फीसदी की रफ्तार से बढ़ी है। कहां तो राष्ट्रपति ट्रंप भारत को ‘डेड इकोनॉमी’ बता रहे थे और कहां भारत सबसे तेज दौड़ती अर्थव्यवस्था के रूप में सामने आया है।
बहरहाल, अब भारत की सरकार और भारत के नागरिकों को एक साथ मिल कर देश की अर्थव्यवस्था को स्वदेशी और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में ले जाना है। इसकी शुरुआत छोटे छोटे प्रयासों से होगी। भारत में फिर से विनिर्माण इकाइयों को स्थापित करना होगा। प्रधानमंत्री ने व्यापारियों से अपील की है कि वे अपनी दुकानों पर बोर्ड लगाएं कि वे स्वदेशी सामान बेचते हैं। इसकी शुरुआत स्वदेशी सामान बनाने से होनी चाहिए। अगर रोजमर्रा की जरुरत की छोटी छोटी चीजें भारत में बनने लगें तो दुनिया के दूसरे देशों पर निर्भरता कम होगी और अर्थव्यवस्था को भी गति मिलेगी। भारत में स्वंय छोटी छोटी और रोजमर्रा की जरुरत की चीजों का उत्पादन करने की बजाय भारत के उद्मी उसे चीन या किसी दूसरे देश से लाकर भारत में बेच रहे हैं। यानी निर्माता की बजाय भारत का उद्यमी विक्रेता बन गया है।
इस स्थिति को बदलना होगा। भारत में कारोबारियों के पास पूंजी भी है और सस्ती श्रमशक्ति भी है। अगर भारत इस चुनौती को अवसर में बदलता है तो देश न सिर्फ आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि 2047 तक विकसित होने का लक्ष्य भी हासिल कर लेगा। (लेखक दिल्ली में सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तामंग (गोले) के कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त विशेष कार्यवाहक अधिकारी हैं।)


