भोपाल। मध्य प्रदेश में आम चुनाव के खास दिन सोमवार की शाम के बाद विदा हो जाएंगे ।इसके साथ ही लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद शुरू हुआ कार्यकर्ताओं और मतदाताओं को मक्खन लगाने का दौरा समाप्त हो जाएगा। दरअसल मध्य प्रदेश में 13 मई की शाम 6:00 बजे तक आठ सीटों पर चौथे चरण का मतदान संपन्न हो जाएगा। इसके बाद अटकलों, अनुमानों, आरोपों और गप्पबाजी का दौर चार जून को नतीजे की घोषणा तक जारी रहेगा। इसके साथ ही जिन मतदाताओं को पीले चावल दिए हैं और जिन कार्यकर्ताओं की पूछ परख बढ़ गई थी और रूठों को मनाने व मक्खन लगाने का दौर चल रहा था वह अगले चुनाव तक के लिए मुल्तवी कर दिया गया है।
इस सब में नया कुछ नही है। इंतजार रहेगा तो यह कि मप्र से वे कौन से नेता होंगे जिनके भाग्य का सितारा चमकने वाला है। पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा, ज्योतिरादित्य सिंधिया को क्या जिम्मेदारी मिलने वाली है। जैसे कि पीएम नरेंद्र मोदी कुछ नया सा करते हैं तो कुछ चकित करने वाले नाम भी मुख्य भूमिका में आ सकते हैं। विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री सिलेक्शन में राजस्थान, मप्र और छत्तीसगढ़ में जो हुआ उससे तो सदमे में आए मोदी – शाह के कट्टर समर्थक अभी तक उबर नही पाए हैं। एक खतरा जरूर लोग महसूस कर रहे हैं कि राज्यों में जो नई लीडरशिप को लाया गया है उसकी वर्किंग को लेकर असंतोष और गुटबाजी का दौर भी तेज हो सकता है। ये कुछ नए चैलेंजेज होंगे।
खैर, बात यह है कि 13 मई के बाद सूबे के कुछ नेता व कार्यकर्ताओं को अन्य राज्यों में जहां मतदान होना है वहां भेजने का सिलसिला तेजी पकड़ सकता है। मप्र के नेता- कार्यकर्ताओं के बारे में अनुभव के आधार पर कहा जाता है कि वे संगठन शास्त्र व चुनावी कार्य में अन्य राज्य के कार्यकर्ताओं की तुलना में अधिक दक्ष और गम्भीर होते हैं। प्रदेश की जिन आठ लोकसभा सीटों पर मतदान होना है वहां प्रतिशत बढ़ाने की चुनौती चुनाव आयोग से लेकर संगठन सरकार और आम मतदाताओं पर भी रहेगी। आग उगलते सूरज ने सबको मुश्किल में डाल रखा है। अनुमान है कि सुबह बारह बजे तक और दोपहर दो-तीन बजे के बाद छह बजे तक वोटर अधिक मात्रा में वोट डालने निकलेंगे। ऐसे में बारह बजे तक 35 -40 प्रतिशत वोट पड़ सकते हैं और यही आंकड़ा शाम छह बजे तक होने की संभावना है। ऐसे में इंदौर, देवास रतलाम, उज्जैन,खंडवा, खरगोन, धार और मंदसौर में तपिश का जोर रहता है। गर्मी के कारण भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ संघ परिवार के प्रयास से मतदान प्रतिशत बढ़ने की संभावना है।
भाग्यशाली हैं केजरीवाल…
राष्ट्रीय राजनीति में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सुप्रीम कोर्ट से मिली अंतरिम जमानत के बाद इन दिनों सुर्खियों में है। श्री केजरीवाल ऐसे पहले राजनेता में शामिल हो गए हैं जिन्हें चुनाव प्रचार के लिए अदालत ने अंतरिम जमानत मंजूर कर नई नजीर पेश की है। अदालती और सियासी हलके में इसे आश्चर्य मिश्रित भाव से देखा जा रहा है। इसके बाद केजरीवाल केस की मिसाल देकर झारखंड के पूर्व सीएम हेमंत सोरेन को जमानत पर प्रचार के लिए अंतरिम जमानत की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। लेकिन इसके लिए सोरेन को केजरीवाल की तरह बड़े कलेजे याने जेल जाने के बाद सीएम के पद से इस्तीफा नही देना था। इसके लिए अमेरिका, कनाडा, जर्मनी और संयुक्त राष्ट्र से भी केजरीवाल के समर्थन के बयान देने और दिलवाने वाली लॉबी की जरूरत थी।
केजरीवाल की तुलना में सोरेन थोड़े कच्चे खिलाड़ी साबित हुए। बहरहाल कोर्ट के फैसले से भविष्य में जेल जाने वाले सीएम और मंत्रियों व नेताओं के लिए प्रचार के बहाने अंतरिम जमानत जैसी उम्मीदों की खिड़की खोल दी है। आने वाले दिनों में यह मुद्दा भी समाजिक और सियासी गलियारों में चर्चा का सबब बनेगा। इसके बाद यह भी लगता है कि केजरीवाल भले ही विजेता की मुद्रा में आ गए हों लेकिन आने वाले दिन उनके लिए और भी कठिन हो सकते हैं। टीम केजरीवाल ने पूरे मामले का जिस तरह से अंतरराष्ट्रीयकरण करने की कोशिश की है उससे जांच एजेंसियां और केंद्र सरकार भी ज्यादा सतर्क और सख्त हो जाएगी। अंत में इस मसले पर यही कहेंगे केजरीवाल की अंतरिम जमानत के चलते “बुढ़िया तो मर गई दुख यह है कि मौत ने घर देख लिया” यह बात केजरीवाल जैसे नेताओं से लेकर सरकार पर भी लागू है। यह तय समझिए अब सरकार पहले से ज्यादा कठोर होगी।