nayaindia Lok Sabha election 2024 निश्चिंत दिखते नरेंद्र भाई की बेचैनी

निश्चिंत दिखते नरेंद्र भाई की बेचैनी

Narendra Modi Agra Election Rally

अब इस बात में कोई शुबहा बाकी नहीं रह गया है कि हमारे प्रधानमंत्री जी इस लोकसभा चुनाव में ख़ुद को मिलने वाले समर्थन को ले कर मन-ही-मन हिले हुए हैं। मैं ने रिपब्लिक टीवी के सर्वेसर्वा अर्णब गोस्वामी को दिया उन का इंटरव्यू बहुत ध्यान से सुना और मुझे बार-बार लगा कि दिखाने को भले ही ऊपर-ऊपर से वे ख़ुद को निश्चिंत और तनाव-मुक्त दिखा रहे हैं, मगर उन के भीतर खलबली मची हुई है। अगर ऐसा न होता तो न तो नरेंद्र भाई मोदी इंटरव्यू की शुरुआत में ही यह न कह डालते कि ‘मैं भी आख़िर एक मनुष्य हूं और मेरे मन पर भी बहुत-सी बातों का असर पड़ता है’ और न ही बातचीत के अंत में मतदान के कम प्रतिशत के जिन्न का बोझ अपने सिर पर महसूस करते।

इंटरव्यू की शुरुआत में नरेंद्र भाई बोले, ‘2014 का माहौल अलग था, 2019 का माहौल उस से अलग था और 2024 का माहौल एकदम अलग है।’ फिर थोड़ा थम कर उन्होंने कहा कि ‘मेरे मन में कोई दुविधा नहीं है। … चुनाव मोदी नहीं लड़ रहा है। भारतीय जनता पार्टी की एक व्यवस्था है। … चुनाव जनता लड़ रही है। … देश मोदी ने आगे नहीं बढ़ाया है। देश आप सब ने, जनता ने, आगे बढ़ाया है।’ चुनाव के मौक़े पर नरेंद्र भाई का यह विनत-भाव स्वयं बहुत कुछ कह रहा है। अर्णब से बातचीत के अंत में जब प्रधानमंत्री जी ने लोगों से भारी मतदान करने का आग्रह किया तो उन के माथे की लकीरें कह रही थीं कि वे मतदान केंद्रों तक कम मतदाताओं के पहुंचने से महज़ तकनीकी तौर पर चिंतित नहीं हैं। इस में उन्हें शायद अपनी आकर्षण क्षमता के कम हो जाने के संकेत दिखाई दे रहे हैं। ज़्यादा-से-ज़्यादा मतदान करने का आग्रह करते वक़्त उन्होंने ‘भारी’ शब्द को जिस अंदाज़ भारी बनाया, उस में थोड़े विचलन का भाव झलक रहा था।

अर्णब के ‘2024 के मेगा एक्सल्यूसिव’(?) में नरेंद्र भाई ने बहुत-सी अहम बातें कहीं। मैं अपनी तरफ़ से कुछ भी कहे बिना उन्हें जस-का-तस आप के सामने रख रहा हूं। आप अपने विवेक और बुद्धि से उन का अर्थ निकालिए, उन का मर्म समझिए और जिस निष्कर्ष पर पहुंचना चाहें, पहुंचिए। मैं तो सिर्फ़ इतना बता कर आप को आप के हाल पर छोड़ता हूं कि डेढ़ घंटे के इस इंटरव्यू में ज़माने भर की बातें हुईं, मगर मणिपुर और इलेक्टोरल बांड्स के आसपास भी कोई नहीं फटका।

‘… लोगों ने देखा कि मैं ने 2014 में जो कहा, 2019 तक उसे पूरा किया। 2019 में जो कहा, उसे पूरा किया। मेहनत की। प्रयास किए। … मेरी सफलता ही 2024 में मेरे लिए चुनौती बनती जा रही है। …’

‘… ग़रीबों का लूटा हुआ पैसा हम लौटाएंगे। लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री थे तो नौकरियां देने के बदले में लोगों से ज़मीने लेने के सबूत हैं। … बंगाल में भी शिक्षक भर्ती में यही हुआ। ,,, मैं यह पैसा जिन का है, उन्हें लौटाना चाहता हूं। … लेकिन इस में क़ानूनी सलाह लेना ज़रूरी है। … मैं ग़रीबों से लूटे 14 हज़ार करोड़ रुपए अभी तक उन्हें लौटा चुका हूं। लेकिन मीडिया ने इस की चर्चा नहीं की। … भ्रष्टाचार के ज़रिए कमाए गए सवा लाख करोड़ रुपए अब तक हम ने ज़ब्त किए हैं। ये रकम ग़रीबों की है और उन्हें वापस मिलनी चाहिए। … जब हम पर कोई दाग नहीं होता है, तब यह सब करने की हिम्मत आती है। … लोगों को विश्वास है कि मोदी यह काम कर सकता है …’

‘… जांच एजेंसियां अपना काम नहीं करेंगी तो क्या करेंगी? … मैं किसी से बदला तो लेना नहीं चाहता था, किसी को नुकसान तो पहुंचाना नहीं चाहता था। मैं ने एजेंसियों को पूरी आज़ादी दी कि वे राजनीतिक हों, कारोबारी हों, माफ़िया हों, कोई हो, सब की जांच करें। … अब तक यह हो रहा था कि भाषण तो भ्रष्टाचार के खि़लाफ़ देते थे, मगर करते वही गोरखधंधा थे। अब उन का पर्दाफ़ाश हो रहा है तो परेशानी है। … मैं गुजरात में मुख्यमंत्री था। कांग्रेस के अमरसिंह चौधरी विपक्ष के नेता थे। उन्होंने कहा कि हम मोदी जी के बारे में कुछ भी कह सकते हैं, लेकिन उन पर भ्रष्टाचार का आरोप कभी नहीं लगा सकते। …’

‘… मुख्यमंत्री था तो विपक्ष के लोग बात बनाते थे कि मोदी के पास ढाई सौ जोड़ी कपड़े हैं। मैं ने अपनी जनसभाओं में कहना किया कि वैसे तो मेरे पास इतने जोड़ी कपड़े हैं नहीं, लेकिन चलो मान लिया कि हैं तो यह बताइए कि क्या आप को ऐसा मुख्यमंत्री चाहिए, जिस के दामाद के पास ढाई सौ एकड़ अवैध ज़मीन हो या जिस के पास विदेशी बैकों में ढाई सौ करोड़ रुपए हों तो लोग जवाब देते थे कि नहीं, ढाई सौ जोड़ी कपड़े वाला ही ज़्यादा अच्छा है। …’

‘… मैं ने 35-40 लाख करोड़ रुपए सीधे लोगों के बैंक खातों में डाल दिए। सोचिए, अगर राजीव गांधी जैसा कहते थे कि इतने प्रतिशत तो बीच में ही लोग खा लेते हैं तो कितना धन भ्रष्टाचार के हवाले हो जाता? … मैं ने भ्रष्टाचार ख़त्म करने के लिए हज़ार के नोट बंद किए, दो हज़ार के नोट बंद किए। … अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने के लिए क़दम उठाए। लेकिन आधार कार्ड के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे अड़ंगे डाले, ऐसे अड़ंगे डाले … राजनीतिक दलों ने विरोध किया। …’

‘… सैम पित्रोदा ने जो कहा, वह ग़लती नहीं है। सोची-समझी साज़िश है। ख़ुद शहज़ादा यही बातें कहता है। … मैं एकता को बढ़ावा देता हूं। मैं चाहता तो सरदार पटेल की प्रतिमा के स्थल का कोई और नाम रख देता। लेकिन मैं ने उसे ‘एकता स्थल’ का नाम दिया। हर प्रदेश में एकता मॉल खोलने की योजना बनाई। मेरी कोशिश रहती है कि एकता के पहलुओं को उभारें। मगर इन लोगों की कोशिश है कि देश को जितना बांट सकें, बांटें। …’

‘… कांग्रेस को अपनी पूरी जवानी देने वाले, अपना पूरा जीवन देने वाले कई लोग हमारे यहां, भाजपा में, आए हैं। उन सब की बातें सुनो तो पता चलेगा। एक सज्जन ने जो अभी कांग्रेस की तरफ़ से चुनाव लड़ रहे हैं, वे पहले भी सांसद थे और मुझ से मिले तो बोले कि क्या कहूं, हम लोगों की पार्टी माओवादियों के चक्कर में फंस गई है। …’

‘… उस बैठक में मैं ख़ुद मौजूद था, जिस में मनमोहन सिंह ने कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। … धर्म के आधार पर आरक्षण का नेहरू तक ने संविधान सभा में विरोध किया था। लेकिन कांग्रेस ने कर्नाटक में रातोंरात कर दिया। आंध्र प्रदेश में भी करने की कोशिश की। … कांग्रेस क्षेत्रीय दलों को निगलना चाहती है। उन के मुस्लिम वोट बैंक को ख़त्म करना चाहती है। इसलिए मुस्लिम आरक्षण की बात कर रही है। … कांग्रेस ने संविधान की काया पर हमला किया। … मुस्लिम आरक्षण संविधान की आत्मा के लिए अंतिम कील साबित होगा। …’

नरेंद्र भाई ने इस बातचीत में विदेश नीति को उलट देने के अपने क़दमों को सकारातमक बताया। कहा कि मैं ने पुतिन की आंखों में आंखें डाल कर कहा कि यह युद्ध का समय नहीं है और अपना विशेष दूत इज़राइल भेज कर कहा कि रमज़ान में हमास पर हमले न करें। नरेंद्र भाई बोले, ‘मैं बड़ी-बड़ी बात करूं, यह मुझे शोभा नहीं देता’।

लेखक न्यूज़-व्यूज़ इंडिया और ग्लोबल इंडिया इनवेस्टिगेटर के संपादक हैं।

By पंकज शर्मा

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स में संवाददाता, विशेष संवाददाता का सन् 1980 से 2006 का लंबा अनुभव। पांच वर्ष सीबीएफसी-सदस्य। प्रिंट और ब्रॉडकास्ट में विविध अनुभव और फिलहाल संपादक, न्यूज व्यूज इंडिया और स्वतंत्र पत्रकारिता। नया इंडिया के नियमित लेखक।

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