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सब कह रहे हैं ये जीते तो देश नही बचेगा…

Loksabha Elections 2024

भोपाल। 2024 का आम चुनाव बहुत ही मुश्किल दौर में जाता दिख रहा है। सियासी दल सोच- विचार और सिद्धांतों के मुद्दे पर दिवालिया से हो रहे हैं। मतदाता मुश्किल में है किस पर एतबार करे। राहुल बाबा कह रहे हैं मेरी बात गौर से सुन लीजिए- अबकी बार भाजपा जीती और उन्होंने संविधान बदला तो इस पूरे देश मे आग लगने जा रही है। ये देश नही बचेगा। Lok Sabha election 2024

उनका आशय साफ है कि ये चुनाव विशेष है मामूली नही है। भाजपा जीती तो समझो देश खत्म…! कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कहते हैं भाजपा और आरएसएस देश के लिए जहर हैं।कभी वे कहते हैं मोदी जीता तो सनातन मजबूत हो जाएगा। दूसरी तरफ पीएम नरेंद्र मोदी कहते हैं – मैं करप्शन पर एक्शन लेता हूं तो कुछ लोग आपा खो देते हैं। मैं कहता हूं भ्र्ष्टाचार हटाओ, वे कहते हैं भ्रष्टाचार बचाओ। यह चुनाव इन्ही दोनों खेमों की लड़ाई है। बड़े बड़े सत्ताधारी जेल में हैं और सुप्रीम कोर्ट से उन्हें जमानत नही मिल रही है। इन बेईमानों ने जो धन लूटा है मैं गरीबों में लौटाऊंगा। एक सनसनीखेज खुलासे में मोदी ने कहा कि कांग्रेस के हाथों में देश सुरक्षित नही है । कांग्रेस ने पांच दशक पहले तमिलनाडु के समुद्र तट के पास कच्चा तिवु द्वीप को बेकार बताते हुए श्रीलंका को दे दिया।

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देश का वोटर सियासी सीन को देख चिंतित है। मोदी की माने या राहुल की सुने। मोदी कहते हैं देश हर क्षेत्र – उद्योग, टेक्नोलॉजी, सैन्य साजो सामान, फाइटर प्लेन, बैलेस्टिक मिसाइल, तोप- टैंक, ऑटोमोबाइलस, ट्रेन,रोड और एयरपोर्ट डेवलपमेंट आदि में इतिहास रच रहा है। संतुलन के साथ आक्रमक विदेश नीति के कारण दुनिया भारत का लोहा मान रही है। ब्रिटेन को पीछे छोड़ देश दुनिया की पांचवीं अर्थव्यवस्था बन गया है। साथ ही वे भरोसा दिलाते है कि कोई बेईमान छोड़ा नही जाएगा। उनकी इस बात से विपक्ष के सत्ता दल के नेताओं की पेशानी पर बल पड़ जाते हैं। आने वाले दिनों में ईडी, सीबीआई और आईटी का शिकंजा एनडीए के नेताओ पर भी कसे तो हैरत नही होगी। मोदी को जानने वाले उनके इस संकेत की चिट्ठी को तार समझ रहे हैं। Lok Sabha election 2024

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बहरहाल, कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के भीतर भी एक दूसरे के प्रति अविश्वास के दौर चल रहे हैं। कांग्रेस ममता बनर्जी से लेकर अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव पर पूरी तरह से भरोसा नही कर पा रही है। दरअसल सबके मन साफ नही हैं। ये एलाइंस मन से कम मजबूरी का ज्यादा दिख रहा है । इसमे जितने भी पीएम पद के दावेदार हैं वे अपने को कांग्रेस से ऊपर रखते हैं। बस यही सबसे बड़ी व्यवहारिक दिक्कत है।

मध्यप्रदेश के संदर्भ में देखे तो कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को हाशिए पर रख कांग्रेस हाईकमान ने पीसीसी अध्यक्ष जीतू पटवारी और नेताप्रतिपक्ष उमंग सिंघार की जो टीम बनाई है उसके लिए तो सूबे में रोज ही नए चैलेंजेज सामने आ रहे है। पार्टी में भगदड़ सी मची हुई है। भाजपा ने कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा को निशाने पर लिया हुआ है। आए दिन एक एक कर नाथ के वफादार पार्टी का हाथ छोड़ कमल का दामन थाम रहे हैं। राहुल बाबा की पसंद की टीम प्रदेश में नेता कार्यकर्ताओं की भगदड़ रोक पाने में असफल रही है। कल ही कि बात है अमरवाड़ा से तीन बार के विधायक कमलेश शाह भाजपा में चले गए और अब चर्चा है कि छिंदवाड़ा के मेयर भी हाथ का साथ छोड़ सकते हैं। Lok Sabha election 2024

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भाजपा को हराने के लिए वोटर को समझाने वाले कांग्रेस नेतृत्व की उनके ही दल के छोटे- बड़े नेता कार्यकर्ता ही नही मान रहे हैं। कुल मिलाकर हालात अच्छे नही है। दक्षिण के कर्नाटक, तमिलनाडु में भले ही कांग्रेस की सरकारें है मगर वहां की हवा के भी मिजाज बिगड़ते से लग रहे हैं। हिमाचल में कांग्रेस की सरकार को आने वाले दिनों में झटकों के लिए फिर तैयार रहना होगा। इस सबके बीच अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से लेकर इंडी गठबंधन के नेता सनातन को लेकर जो बयानबाजी कर देते हैं उससे दक्षिण में लाभ हो न हो भारत के उत्तरी राज्यों में बड़े पैमाने पर नुकसान हो जाता है। Lok Sabha election 2024

दुखद यह है कि राम मंदिर से काशी मथुरा और यूनिफार्म सिविल कोड, एनआरसी जैसे नाजुक मुद्दों पर सोच समझ कर एक रणनीति के तहत बयान देने वाले नेताओं का कांग्रेस में टोटा सा पड़ गया है। जब भी देश के अंदरूनी मसलों पर पाकिस्तान, अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, यूनाइटेड नेशंस की टिप्पणी सरकार के फैसलों के खिलाफ जाएगी आम नागरिक उसे पसंद नही करेगा। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी पर विदेशी टिप्पणियों ने जाने अनजाने भाजपा को फायदा ही पहुंचाया है।

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देश में लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनावों पर पहले भी हार जीत होती थी लेकिन उसूलों से समझौते यदाकदा ही देखने को मिलते थे। अब दलों और उनके नेताओं की ईमानदारी, सिद्धान्तों के प्रति समर्पण, लोकतंत्र को लेकर आदर का भाव व उनकी साख सब सन्देह के घेरे में है। इसलिए नेताओं की बातों पर यकायक भरोसा करना कठिन सा है। इस पर एक कहावत याद आ रही है- बद अच्छा बदनाम बुरा… याने बदकिस्मती अच्छी है लेकिन बदनामी अच्छी नही। नेतागण सत्ता पाने के लिए कुछ भी करेंगे के लिए बदनाम हो चुके है इसलिए तो कोई सुनता नही है…यह बात मीडिया पर भी इतनी ही शिद्दत से लागू होती है…

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