प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार तुष्टिकरण की बुराइयों पर हमला शुरू किया है। सब लोग पूछ रहे हैं कि अचानक ऐसा क्या हो गया कि प्रधानमंत्री इस बार के चुनाव में कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों के ऊपर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगा कर वोट मांग रहे हैं। यह अचानक नहीं हुआ है। नरेंद्र मोदी ने समान रूप से राजनीति की सभी बुराइयों को निशाना बनाया है। वे परिवारवाद और भ्रष्टचार को भारतीय राजनीति और लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा बता कर उस पर हमला करते रहे हैं और उसी क्रम में तुष्टिकरण की राजनीति से होने वाले नुकसान से भी देश के नागरिकों को आगाह कर रहे है।
एस. सुनील
भारतीय लोकतंत्र को सर्वाधिक नुकसान पहुंचाने वाली बुराइयों में एक बुराई तुष्टिकरण की राजनीति है। परिवारवाद और भ्रष्टाचार के बाद तुष्टिकरण की राजनीति ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। इससे सिर्फ राजनीति भ्रष्ट नहीं हुई है, बल्कि देश की सामाजिक संरचना पर बहुत बुरा असर पड़ा है और भारत के नागरिकों की गाढ़ी कमाई से इकट्ठा होने वाले संसाधनों का भी बड़ा दुरुपयोग हुआ है। तभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार तुष्टिकरण की बुराइयों पर हमला शुरू किया है। सब लोग पूछ रहे हैं कि अचानक ऐसा क्या हो गया कि प्रधानमंत्री इस बार के चुनाव में कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों के ऊपर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगा कर वोट मांग रहे हैं। यह अचानक नहीं हुआ है। नरेंद्र मोदी ने समान रूप से राजनीति की सभी बुराइयों को निशाना बनाया है। वे परिवारवाद और भ्रष्टचार को भारतीय राजनीति और लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा बता कर उस पर हमला करते रहे हैं और उसी क्रम में तुष्टिकरण की राजनीति से होने वाले नुकसान से भी देश के नागरिकों को आगाह कर रहे हैं। उनको बता रहे हैं कि आजादी के बाद लंबे समय तक चली तुष्टिकरण की राजनीति ने भारत को कितना नुकसान
पहुंचाया है।
यह ध्यान रखने की जरुरत है कि अगर प्रधानमंत्री तुष्टिकरण की राजनीति पर हमला कर रहे हैं तो उसका उद्देश्य सिर्फ वोट हासिल करना नहीं है। अगर ऐसा होता और जैसा कि विपक्षी पार्टियों के नेता कह रहे हैं कि यह वोट लेने का आसान तरीका है तो नरेंद्र मोदी ने यह तरीका पहले चुनावों में क्यों नहीं आजमाया? सबने देखा कि पहले चुनावों में उन्होंने विकास की बात की, महंगाई और भारत के स्वाभिमान की बात की, भ्रष्टाचार मिटा कर साफ सुथरी व्यवस्था बनाने की बात की, कारोबार सुगमता की बात की, भारत को दुनिया भर में वह सम्मान दिलाने की बात की, जिसका भारत हकदार रहा है और काफी हद तक इसमें सफल भी रहे। प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने उन लंबित कार्यों को पूरा किया, जिनके बारे में पिछली सरकारें सोचने से भी डरती थीं। उन्होंने अनुच्छेद 370 समाप्त करके जम्मू कश्मीर के विकास के रास्ते की सबसे बड़ी बाधा को दूर किया। अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण से हर भारतवासी की पांच सौ साल की प्रतीक्षा पूरी हुई। उनके कार्यकाल में दुनिया भर में भारत की आवाज बुलंद हुई। जी-20 का सम्मेलन भारत में हुआ और भारत ग्लोबल साउथ के नेता के तौर पर स्थापित हुआ।
इस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दशकों की नकारात्मता को समाप्त कर भारतीय राजनीति को सकारात्मक और रचनात्मक रास्ते पर ले जाने की कोशिश करते रहे। वे ऐसा समझ रहे थे कि अंत में विपक्षी पार्टियां भी सकारात्मक राजनीति के रास्ते पर लौटेंगी और भारतीय लोकतंत्र को कमजोर करने वाली तमाम बुराइयां स्वतः समाप्त हो जाएंगी। लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ है। 10 साल तक विपक्ष में रहने के बाद अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रही देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने सकारात्मक राजनीति के रास्ते पर चलने की बजाय मुस्लिम तुष्टिकरण के अपने एजेंडे को और धार दिया। पिछले साल कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बजरंग दल पर पाबंदी का वादा किया था और इसे चुनावी मुद्दा बना कर जीती थी। तभी से उसको ऐसा लग रहा है कि वह इसी तरह के मुद्दों के दम पर लोकसभा का चुनाव भी जीत सकती है।
इसके अलावा यह प्रवृत्ति भी दिखी कि कांग्रेस और अलग अलग राज्यों की प्रादेशिक पार्टियों के बीच मुस्लिम वोट हासिल करने की होड़ मची है। इस होड़ में सब एक से बढ़ कर एक तुष्टिकरण वाले वादे कर रहे हैं। कांग्रेस हो या ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी हो या एमके स्टालिन की डीएमके, सबको मुस्लिम वोट के दम पर ही अपना अस्तित्व बचाना है। अन्यथा कोई कारण नहीं था कि डीएमके नेता सनातन धर्म को बीमारी बता कर इसे मिटाने की बात करें। इसी तरह कोई कारण नहीं था पश्चिम बंगाल के संदेशखाली में आरोपियों को बचाने के लिए ममता बनर्जी की सरकार सारी सीमाएं पार कर दे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका जिक्र करते हुए कहा कि तृणमूल कांग्रेस पार्टी और उसकी सरकार संदेशखाली में दलित बहनों के साथ अत्याचार करने वाले को इसलिए बचाने में लगी रही क्योंकि आरोपी का नाम शाहजंहा शेख था। कर्नाटक में कांग्रेस के पार्षद रहे निरंजन हिरेमत की बेटी नेहा हिरेमत की नृशंस हत्या पर राज्य की कांग्रेस सरकार का रवैया भी सबने देखा है। इससे यह भी पता चलता है कि जहां इनकी सरकार बनेगी वहां संदेशखाली जैसी घटनाएं होंगी या नेहा हिरेमत जैसी बेटियों को जान गंवानी पड़ेगी और आरोपी सरकारी संरक्षण में बेखौफ घूमेंगे। प्रधानमंत्री तुष्टिकरण की राजनीति का जो विरोध कर रहे हैं और उससे देश के नागरिकों को आगाह कर रहे हैं उसे उपरोक्त पृष्ठभूमि में समझने की जरुरत है।
यह भी समझने की जरुरत है कि प्रधानमंत्री जो कह रहे हैं वह विभाजन का नहीं, बल्कि एकीकरण का मुद्दा है। ऐसा नहीं है कि मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करने वाली पार्टियां मुस्लिम समुदाय का भला करती हैं। वे उनका सिर्फ वोट के तौर पर इस्तेमाल करती हैं और उनको पिछड़ा बनाए रखती हैं। अन्यथा कोई कारण नहीं था कि आजादी के इतने दशक बाद भी मुस्लिम बहनों को तीन तलाक का दंश झेलना पड़ता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने इसे समाप्त किया और तीन तलाक को अपराध बनाया। बहुविवाह से लेकर मदरसा शिक्षा तक की व्यवस्था में सुधार के प्रयास पिछले कुछ बरसों में ही शुरू हुए हैं। हैरानी की बात है कि एक तरफ मोदी सरकार देश के सभी नागरिकों के लिए एकसमान कानून लाने की तैयारी कर रही है तो दूसरी ओर कांग्रेस मुस्लिम समाज के लिए अलग पर्सनल कानून की तैयारी किए हुए हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपनी सभाओं में इसका जिक्र किया है। यह सब मुस्लिम समाज को पिछड़ा और अनपढ़ बनाए रखने की साजिश का हिस्सा है।
तभी प्रधानमंत्री जिस खतरे की ओर ध्यान दिला रहे हैं या जिससे आगाह कर रहे हैं उसकी गंभीरता को समझने की जरुरत है। उस पर वस्तुनिष्ठ तरीके से विचार करने की जरुरत है। यह सवाल उठाया जा रहा है कि प्रधानमंत्री ऐसा क्यों कह रहे हैं कि कांग्रेस आएगी तो महिलाओं का मंगलसूत्र छीन लेगी या उनके पास दो घर हैं तो एक घर ले लेगी या दो मवेशी हैं तो एक ले लेगी। असल में यह लोगों को वह बात आसान तरीके से समझाने का प्रयास है, जिसका जिक्र कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में किया है। कांग्रेस ने संपत्ति के पुनर्वितरण की बात लिख दी। अगर लोगों को इसे बारीकी से और सरल भाषा में नहीं समझाया जाएगा तो वे कांग्रेस की मानसिकता को नहीं समझ पाएंगे। संपत्ति के पुनर्वितरण का सिद्धांत पूरी तरह से माओवादी मानसिकता पर आधारित है, जिसका मतलब यह होता है कि सरकार मेहनतकश लोगों से, नौकरीपेशा लोगों से, कारोबारियों से उनकी खून पसीने की कमाई छीन कर अपने वोट बैंक के बीच बांट दे। यह बेहद खतरनाक विचार है, जिसके बारे में लोगों को निश्चित रूप से आगाह किया जाना चाहिए। यह इसलिए भी और चिंता की बात है क्योंकि प्रधानमंत्री रहते मनमोहन सिंह ने कहा है कि देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। इस पृष्ठभूमि में क्या यह समझना मुश्किल है कि कांग्रेस अगर लोगों की इकट्ठा की हुई संपत्ति कब्जा करेगी तो वह किसके बीच बांटेगी?
प्रधानमंत्री अगर कह रहे हैं कि कांग्रेस देश की अनुसूचित जातियों, जनजातियों और पिछड़े समुदायों को मिलने वाला आरक्षण छीन कर मुसलमानों को दे देगी, तो क्या यह कोई अतिश्योक्ति है? क्या कांग्रेस की सरकारों ने कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में एससी, एसटी, ओबीसी कोटे में से चोरी करके मुस्लिम आरक्षण का प्रावधान नहीं किया है? प्रधानमंत्री देश के करोड़ों करोड़ दलितों, पिछड़ों और वंचितों को आगाह कर रहे हैं कि कांग्रेस तुष्टिकरण की राजनीति में उनका कितना बड़ा नुकसान कर सकती है। यह समझाने के क्रम में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां तक कहा कि वे अपनी जीते जी ऐसा नहीं होने देंगे। उलटे प्रधानमंत्री के लिए कहा जाने लगा कि वे आरक्षण खत्म कर देंगे। हकीकत यह है कि उन्होंने आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देकर आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा तोड़ी और कई ऐसी जगहों पर आरक्षण लागू किया, जहां पहले की सरकारों ने नहीं लागू किया था।
प्रधानमंत्री ने अनुच्छेद 370 को लेकर भी देश के लोगों को आगाह किया है। आजादी के बाद से देश इसका इंतजार कर रहा था कि कब यह ऐतिहासिक गलती सुधारी जाएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने अगस्त 2019 में इस गलती को सुधार दिया। इसके साथ ही जम्मू कश्मीर में विकास का नया रास्ता खुल गया। प्रधानमंत्री ने जम्मू कश्मीर को दिल्ली और नागरिकों के दिल के नजदीक ला दिया। पिछले पांच साल में जम्मू कश्मीर में सब कुछ बदल गया है। न कहीं पत्थरबाजी सुनने को मिल रही है और न कहीं बंद और प्रदर्शन दिखाई देते हैं। राज्य के लोग अमन चैन से रह रहे हैं। तभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगाह किया कि कांग्रेस अनुच्छेद 370 की वापसी कराना चाहती है। यह सीधे तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरे की बात होगी। जिस तरह से पाकिस्तान में कांग्रेस और राहुल गांधी की तारीफ हो रही है वह भी कम चिंताजनक बात नहीं है। देश के लोगों को इन बातों से आगाह रहना चाहिए और देश की एकता व अखंडता और सामाजिक एकता को प्राथमिकता में रखना चाहिए। (लेखक सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के प्रतिनिधि हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)