nayaindia Rahul Gandhi congress मीडिया बीस साल से राहुल का विरोधी

मीडिया बीस साल से राहुल का विरोधी

Rahul Gandhi congress
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राहुल आज के टारगेट नहीं हैं। बीस साल से हैं। और जिसे गोदी मीडिया आज कह रहे हैं दरअसल वह यथास्थितिवादी मूल्यों को बनाए रखने वाला दक्षिणपंथी सोच का मीडिल क्लास है। उसे राहुल की प्रगतिशीलता पाखंड मुक्त सहजता बहुत परेशान करती है। Rahul Gandhi congress

शुरू से जब राहुल दलितों के घर जाते थे तो उसकी पारंपरिक सोच को चोट पहुंचती थी। इधर कांग्रेस में भी ऐसे लोग बड़ी तादाद में थे जो राहुल की धर्मनिरपेक्ष, दलित समर्थक, जनपक्षीय सोच के विरोधी थे। उन्होंने अपने अपने तरीके से राहुल विरोधी मीडिया और पार्टी के व्यक्तियों को खूब आगे बढ़ाया।

जो लोग यह कहते हैं कि मीडिया राहुल का विरोध आज कर रहा है क्योंकि उनकी पार्टी सत्ता में नहीं है तो उन्हें दस साल पहले के अख़बार और टीवी चैनल खंगालना चाहिए। राहुल का विरोध तब भी ऐसा ही होता था। और जिस तरह आज कांग्रेसी उनकी मदद नहीं करते उसी तरह उस समय भी नहीं करते थे।

मगर यह राहुल की हिम्मत और जज्बा ही है कि वे न पहले विचलित हुए और न अब।

ऐसा नहीं है कि राहुल में कमजोरियां न हों। कई होंगी। मगर वे इतना जोरदेने योग्य नहीं हैं कि उनके कारण हर किसी को राहुल पर चाहे जो टिप्पणीकरने का अधिकार मिल जाए। खास तौर पर मीडिया को जिसका चाहे जितना पतन होगया हो मगर सैद्धांतिक रुप से यह आज भी नहीं लिखा जा सकता, माना जा सकताकि वह सरकार का भौंपू है। हर दिन वह अपने पतन की नई कहानी लिख रहा है।

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अभी मुकेश अंबानी की शादी में एक सबसे बड़े चैनल का संपादक स्तर कापत्रकार हाथी को खुश करने के लिए या पता नहीं किसको खुश करने के लिएपूछता है कि क्या वह हाथी के लिए बनने वाली खिचड़ी को खा सकता है? उसकेलिए बनने वाला जूस पी सकता है?  और फिर खाकर और पीकर गदगद हो जाता है किइतना अच्छा आप हाथी को खिलाते हैं, मैंने तो कभी खाया नहीं। पहली बारमिला। उसकी मम्मी या घर की कोई महिला अगर यह देख रही होंगी तो दस गालियांदी होंगी कि नालायक तुझे कितना अच्छा बना बनाकर खिलाया है और तू एक सेठको खुश करने के लिए हाथी का खाना खाता है और उसे इंसान के खाने से अच्छाबताता है। Rahul Gandhi congress

ऐसी घटिया, पतनदायी मीडिया कहानियां पचासों हैं। जो आन कैमरा हैं। आफ कैमरा तो आप पूछो ही नहीं कि गोदी मीडिया और उसके मालिक कहां तक गिर जाते हैं। अभी जो इतनेपत्रकार गया है शादी में। क्या इसको शादी में शामिल होने का निमंत्रण भीहै? पहले शादी में या किसी और फंक्शन में पत्रकार निमंत्रण होने पर हीजाता था। और कवर नहीं करते थे।

अगर शादी या ऐसे ही किसी फंक्शन का कोईसार्वजनिक महत्व होता था तो उसके लिए कवरेज टीम अलग होती थी। संपादक कवरनहीं करते थे। मगर अब तो मोदी जी क्या मोदी जी के बाद वाले नेता उनके भीबाद वाले नेता या सेठ और उनके भी बाद वालों के सामने यह मीडिया कितना भीझुकने को तैयार रहता है।

अभी जिस सबसे बड़े चैनल के संपादक स्तर के पत्रकार का जिक्र किया कि हाथीका खाना खाकर भी वह कितनी तारीफ कर रहा है उसने इससे कुछ दिन पहले हीकांग्रेस के एक नेता के यहां इंसानों वाला खाना खाया था। और उसके बादअपने चैनल पर बताया था कि कांग्रेसियों के इस जमघट में सब कांग्रेस कीहार की बात कर रहे थे। वहां बहुत पत्रकार थे। Rahul Gandhi congress

किसी और ने तो सुना नहीं कि कांग्रेसी कह रहे थे कि हम यह चुनाव भी नहीं जीत रहे। सिर्फ उसने सुना और खबर बनाई। मजेदार बात यह है कि किसी कांग्रेसी ने जो वहां था इस बात का खंडन नहीं किया। पूछा नहीं कि किसने कहा?

तो कांग्रेसी ऐसे ही होते हैं। बीजेपी और मीडिया ने राहुल को बदनाम करनेके लिए जो आलू से सोना बनाने वाला वीडियो चलाया था उसका सबसे ज्यादाप्रचार कांग्रेसियों ने ही किया था। जिन पदाधिकारियों के उपर इसका खंडनकरने का और सच बताने की जिम्मेदारी थी कि यह वीडियो कूटरचित है। राहुल नेऐसा कहा ही नहीं वे ही पदाधिकारी इसका मजा ले लेकर बात को और आगे बढ़ातेथे।

ऐसे ही अब मध्य प्रदेश से जो वीडियो दिखाया जा रहा है जिसमें राहुल एकपत्रकार से कह रहे हैं कि आप मालिक नहीं हो वह बीच में से दिखाकर राहुलको पत्रकार विरोधी बताने के लिए उपयोग किया जा रहा है। मगर क्या मजाल किकिसी कांग्रेसी ने पूरा वीडियो डालकर बताया हो कि राहुल जनता से बात कररहे हैं और बीच में पत्रकार के बोलने पर उससे पूछते हैं कि आप कौन?

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ऐसा ही इसी यात्रा के दौरान यूपी में भी हुआ। वहां राहुल जब जनता से बातकर रहे थे। एक पत्रकार बीच में सवाल करने लगता है। उसे लेकर भी बड़ा हंगामा मचाया गया। Rahul Gandhi congress

राहुल जो पत्रकारों को इतना समय देते हैं। उनकी और जनता की बातचीत में पत्रकार का आना क्या सामान्य बात है? नहीं। इसे ऐसे समझिए कि क्या मोदी,अमित शाह या रविशंकर प्रसाद की बातचीत के बीच में कोई पत्रकार बोल सकताहै? मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे। अन्तरराष्ट्रीय ख्याति केअर्थशास्त्री। सिर्फ संपादकों को बुलाया था। अर्नब गोस्वामी एक सवाल केबाद दूसरा सवाल और फिर बहस करने लगा।

कोई रिएक्शन होना तो दूर की बातउसके बाद राहुल का पहला इंटरव्यू ठीक 2014 के चुनाव से पहले उससे हीकरवाया गया। इसे आप कांग्रेसियों की बेवकूफी, जानबूझकर कांग्रेस कोनुकसान पहुंचाने की कोशिश कुछ भी कह लीजिए मगर राहुल या मनमोहन सिंह कापत्रकारों के साथ विरोध रखना तो नहीं कह सकते।

दूसरी तरफ प्रधानमंत्री मोदी प्रेस कान्फ्रेंस तो करते ही नहीं हैं।इंटरव्यू भी उन्हीं को देते हैं जो पूछ सके कि आप थकते क्यों नहीं हैं?और अब तो एक नया ट्रेंड और शुरू कर दिया है कि बड़े समारोह में भी पत्रकारों की एंट्री बैन कर दी जाती है। प्रेस को बुलाया जाता है। मगरबाहर बिठाया जाता है। बाद में वीडियो और प्रेस नोट दे दिया जाता है। अभीजी 20 और पी 20 के अन्तरराष्ट्रीय कार्यक्रमों में ऐसा ही हुआ। मगर कभीइसके खिलाफ पत्रकारों से एक शब्द भी सुना है।

तो राहुल आज के टारगेट नहीं हैं। बीस साल से हैं। और जिसे गोदी मीडिया आजकह रहे हैं दरअसल वह यथास्थितिवादी मूल्यों को बनाए रखने वाला दक्षिणपंथीसोच का मीडिल क्लास है। उसे राहुल की प्रगतिशीलता पाखंड मुक्त सहजता बहुतपरेशान करती है।

शुरू से जब राहुल दलितों के घर जाते थे तो उसकी पारंपरिक सोच को चोट पहुंचती थी। इधर कांग्रेस में भी ऐसे लोग बड़ी तादाद में थेजो राहुल की धर्मनिरपेक्ष, दलित समर्थक, जनपक्षीय सोच के विरोधी थे। ऐसेलोग सरकार और संगठन दोनों में थे। और उन्होंने अपने अपने तरीके से राहुलविरोधी मीडिया और पार्टी के व्यक्तियों को खूब आगे बढ़ाया।

राहुल कभी अपनी पार्टी के और अपने आसपास को लोगों को नहीं पहचान पाए।अमेठी में उन्हें हराने वाले कौन हैं ये अमेठी रायबरेली में बच्चा बच्चाजानता है। मगर वे आज भी नहीं हटाए गए। स्मृति ईरानी दोबारा वहां से चुनावलड़ने को क्यों तैयार हो गईं यह इसी से समझा जा सकता है कि उन्हें मालूमहै कि अमेठी में कांग्रेसियों ने ही कांग्रेस का क्या हाल कर रखा है।

राहुल जब तक विश्वासघातियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करेंगे उनका सफर लंबाहोता चला जाएगा। पार्टी उन्हें झौकें रहेगी। एक यात्रा के बाद दूसरीयात्रा। राजनीति में आउट कम चाहिए।

राहुल के पास टीम नहीं है। जो लोग आसपास हैं वे केवल अपना प्रचार, अपनास्वार्थ देखते हैं। सलाहकार की पहली परिभाषा है कि अपना नुकसान उठाकर भीजिसके लिए काम कर रहे हैं उसका नुकसान नहीं होने देना।

राहुल के निकट के लोगों में ऐसा कौन है?

राजनीति आज की स्थिति में अकेले नहीं हो सकती है। राहुल कितनी ही मेहनत कर लें। मोदी शिखर पर अकेले खड़े होते हैं। पूरी भाजपा को अपना परिवार बना लिया। व्यक्ति पूजा की सारी हदें पार कर दीं। मगर काम कई टीमों केसाथ करते हैं। इसे अपनी विचारधारा के अनुसार अच्छे बुरे में मत सोचिए। यह तो यह बताने के लिए है कि मोदी दिखते अकेले हैं, मगर हैं नहीं। और राहुल के साथ दिखते सब हैं। मगर वे अकेले हैं।

By शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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